भारत की इस कामयाबी से बौखलाया चीन, इसलिए बॉर्डर पर बढ़ा रहा तनाव
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भारत की इस कामयाबी से बौखलाया चीन, इसलिए बॉर्डर पर बढ़ा रहा तनाव

गलवान घाटी में चीन बड़ी तादाद में अपने बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट के सैनिकों को आगे ले आया है. इनके साथ सैनिकों के रहने की जगह बनाने के लिए भारी उपकरण भी आगे लाए गए हैं.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली: कई दौर की कूटनीतिक चर्चाओं के बाद भी भारत और चीन की सेनाओं के बीच लद्दाख में चल रहा तनाव खत्म नहीं हो पाया है. दोनों ही तरफ से सैनिकों की तादाद में कोई कमी नहीं हुई है लेकिन राहत की बात ये है कि अभी तक दोनों की सीमा यानि 4056 किमी लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर कोई और घटना नहीं हुई है. 22 मई को भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने भी लेह जाकर हालात का जायजा लिया. साफ है कि हालात 2017 में सिक्किम की सीमा पर 73 दिन तक चले डोकलाम तनाव से कम गंभीर नहीं हैं. खबरों के मुताबिक गलवान नदी और पेंगांग झील के किनारे दोनों ओर के हजारों सैनिक एक-दूसरे के सामने जमे हुए हैं.   

  1. भारत-चीन तनाव जारी, चर्चाएं बेनतीजा
  2. भारत इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने का काम जारी रखेगा
  3. भारत की सड़कें हैं चीन की परेशानी की वजह

गलवान घाटी में चीन बड़ी तादाद में अपने बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट के सैनिकों को आगे ले आया है. इनके साथ सैनिकों के रहने की जगह बनाने के लिए भारी उपकरण भी आगे लाए गए हैं. कई सैटेलाइन इमेज में चीनी सेना की टैंक और गाड़ियां साफ नजर आ रही हैं. गलवान नदी काराकोरम पहाड़ से निकलकर अक्साइ चिन के मैदानों से होकर बहती है जिसपर चीन 1950 के दशक में अवैध कब्जा कर लिया था. चीन पहले ये मानता रहा कि उसका इलाका नदी के पूर्व तक ही है लेकिन 1960 से उसने इस दावे को नदी के पश्चिमी किनारे तक बढ़ा दिया. जुलाई 1962 में गोरखा सैनिक के एक प्लाटून ने जब गलवान घाटी में अपना कैंप लगाया तो चीनी सेना ने उसे घेर लिया. ये 1962 के युद्ध की सबसे लंबी घेरेबंदी थी जो 22 अक्टूबर तक जारी रही जब चीनी सेना ने भारी गोलाबारी कर पोस्ट को तबाह कर दिया. युद्ध के बाद भी चीनी सेना उसी सीमा तक वापस गई जो उसने 1960 में तय की थी यानि अवैध कब्जा बरकरार रखा. इस बार भी चीन ने अपने सैनिकों को उस जगह तक तैनात कर दिया है जो उसके दावे के मुताबिक उसकी सरहद यानि चाइनीज क्लेम लाइन है. 

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ये लाइन भारतीय दावे के हिसाब से 2 किमी तक भारतीय सीमा के अंदर श्योक घाटी के पहाड़ों के पास तक है. गलवान नदी आगे आकर श्योक नदी में मिलती है जो पीओके में जाकर सिंध से मिल जाती है. गलवान नदी पर चीनी दावा उस दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DS-DBO) सड़क को खतरे में डाल देगा जिसे भारत ने बड़ी मुश्किल उठाकर 2019 में खोला था. अगर ऐसा हुआ तो लद्दाख मे सबसे दूर स्थित सैनिक तैनाती दौलत बेग ओल्डी अलग-थलग हो जाएगी. यहां भारत ने मई 2008 में हवाई पट्टी पर AN 32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतारा था और उसके बाद C 130 J सुपर हर्क्युलिस जैसे एयरक्राफ्ट भी उतरने लगे हैं. यहां के कई हिस्सों पर चीन अपना दावा करता है और अप्रैल 2013 में यहां कई दिनों तक तनाव बना रहा था. इसीलिए भारत किसी भी कीमत पर चीन का दावा मानने के लिए तैयार नहीं है.

हालांकि भारत और चीन के सैनिकों के बीच गर्मियों में LAC पर कई बार झड़प होती है लेकिन इस बार हालात अलग हैं. इसकी वजह भारत का तेजी से LAC पर इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना है. भारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद चार दशक से ज्यादा समय तक LAC पर कोई सड़क या पुल नहीं बनाया गया. ये एक ऐसी रणनीति के तहत किया गया जिसपर आज यकीन करना तक मुमकिन नहीं है. ये रणनीति थी किसी भी इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण न करना यानी एक तरह की स्कॉर्च्ड अर्थ पॉलिसी (Scorched Earth Policy). लेकिन 2006 में भारत ने अपनी रणनीति में बड़ा परिवर्तन करते हुए हिमालय के इलाकों में 73 रणनैतिक महत्व की सड़कें बनाने का काम बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को सौंप दिया. हालांकि इनकी रफ्तार सुस्त थी लेकिन 2014 में नई सरकार ने भी इसे जारी रखा.

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भारत ने जनवरी 2019 में LAC तक तेजी से सैनिक साजोसामान पहुंचाने के लिए 21000 करोड़ रुपये की लागत से 44 रणनैतिक महत्व की सड़कें बनाने की भी घोषणा की. ये सड़कें पूरी LAC यानी लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में बनाई जाएंगी. लद्दाख में रणनैतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचने के लिए बनाई गई 255 किमी लंबी दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी या DS-DBO रोड भी पिछले साल अप्रैल में यातायात के लिए खोल दी गई. इस सड़क के जरिए डेपसांग मैदान, रूकी नाला होते हुए काराकोरम तक आसानी से और बहुत कम वक्त में पहुंचा जा सकता है. यानि जो सफर 90 के दशक में 20 दिनों में पूरा होता था उसे अब 12 घंटे में पूरा किया जा सकता है. दौलत बेग ओल्डी जिसे भारतीय सेना सब सेक्टर नॉर्थ कहती है में सैनिकों और साजोसामान को पहुंचाने के लिए अब साल भर हवाई जहाज के बजाए इस सड़क का इस्तेमाल किया जा सकता है.  

मौजूदा तनाव की जगह गलवान घाटी तक पहुंचने का रास्ता भी इस सड़क के बनने से आसान हुआ है. जाहिर है एलएसी पर तेजी से हो रहे इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण से चीन परेशान है क्योंकि इससे एलएसी पर उसकी अब तक मजबूत रही स्थिति कमजोर हो रही है. 

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सड़कों के अलावा 2017 में भारत ने एलएसी पर 17 रणनैतिक टनल बनाने की भी शुरुआत की. इनमें लद्दाख तक पूरे साल आवागमन खोले रखने के लिए मनाली से लेह के बीच लाचुंग ला, बारालाच ला और तंगलांग ला के अलावा श्रीनगर से लद्दाख को जोड़ने वाले जोजिला पास बनने वाली टनल शामिल हैं. इन्हीं टनल में से एक अरुणाचल प्रदेश के सेला पर बन रही है जिसका काम पिछले साल फरवरी में शुरू हो चुका है. सेला वही जगह है जहां 1962 में भारतीय सेना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. इस टनल से असम के तेज़पुर से एलएसी तक पहुंचना बेहद आसान हो जाएगा. सिक्किम में भी रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण टनल इस सूची में शामिल हैं.

8 मई को उत्तराखंड से मानसरोवर मार्ग को आसान करने के लिए एक महत्वपूर्ण सड़क खुलने से चीन की परेशानी और बढ़ गई. ये सड़क धारचुला को लिपलेक पास से जोड़ती है जो इस मार्ग में भारत की सीमा पर पड़ता है. हालांकि इस सड़क का मुख्य उद्देश्य मानसरोवर यात्रियों की सुविधा है लेकिन इससे रणनैतिक रूप से महत्वपूर्ण ट्राई जंक्शन तक सैनिक आवागमन में आसानी होगी. चीन ने यहां नेपाल को आगे किया और एक नया नक्शा पेश करवाया जिसमें भारत के कई हिस्से नेपाल में शामिल दिखाए गए हैं. इन सभी जगहों पर बहुत लंबे अरसे से भारत का ही कब्ज़ा है और नेपाल को कभी आपत्ति नहीं हुई. यहां चीन ने नेपाल को अपनी रणनीति सिखाई यानि पुरानी संधियों और नक्शों को नकारकर, तथ्यों को तोड़मरोड़कर नया विवाद पैदा करना.

भारत ने 2017 में डोकलाम तनाव के दौरान चीन को एकदम साफ संदेश दिया था चीन के किसी भी दबाव के आगे न तो झुकेगा और न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की अपनी रफ्तार को कम करेगा. चीन के साथ चल रहे तनाव के बीच भी 18 मई को भारतीय रक्षामंत्रालय ने सीमा के इलाक़ों में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के काम में रफ्तार लाने के लिए बनाई गई शेकटकर कमेटी की सिफारिशों को लागू कर दिया. इसके तहत सीमा पर निर्माण के लिए ज़िम्मेदार बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन को खुद फैसला लेने के लिए तय रकम को 7.5 करोड़ से बढ़ाकर 100 करोड़ कर दिया गया. इसके साथ ही काम की रफ्तार बढ़ाने के लिए नई तकनीक और कुछ प्रोजेक्ट्स को आउटसोर्स करने जैसे फैसले शामिल हैं. 

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