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लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव से पहले छोटे दलों की डिमांड बढ़ गई है. बीजेपी हो या समाजवादी पार्टी दोनों ही दल छोटे दलों से गठबंधन की पूरी कोशिश में जुटे हैं. दरअसल यूपी का चुनाव जातिगत समीकरण के इर्द-गिर्द ही लड़ा जाता है, इसलिए किसी खास जाति की राजनीति करने वाले छोटे दलों की डिमांड यूपी में बढ़ती जा रही है. यूपी की सियासत में इसीलिए कहा जा रहा है कि बड़े काम के हैं छोटे दल. यूपी में कल ही सपा और आरएलडी के बीच गठबंधन की बात फाइनल हुई है.
सबसे पहले आपको बीजेपी के बारे में बताते हैं. बीजेपी भी छोटे दलों के साथ यूपी में गठबंधन कर 2022 का चुनाव लड़ रही है. 2022 के चुनाव के लिए बीजेपी ने यूपी में अपना दल (एस) और निषाद पार्टी से गठबंधन किया है. अपना दल (एस) की पकड़ कुर्मी वोट बैंक पर मानी जाती है. यूपी में लगभग 5% कुर्मी मतदाता हैं, जो कि ओबीसी में आते हैं. अपना दल (एस) का प्रभाव पूर्वी यूपी और बुंदेलखंड के क्षेत्र में ठीक माना जाता है. बता दें कि अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल हैं.
इसके अलावा निषाद पार्टी का प्रभाव यूपी में निषाद वोट बैंक में ठीक-ठाक माना जाता है. यूपी में लगभग 5% निषाद मतदाता है. पूर्वांचल में ही निषाद मतदाता कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद हैं. यानी ओबीसी वोट बैंक को साथ रखने के लिए बीजेपी ने यूपी चुनाव में 2 छोटे दलों से गठबंधन किया है.
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वहीं अगर समाजवादी पार्टी के वोट बैंक पर नजर डाली जाए तो सपा भी ओबीसी और एमबीसी वोट बैंक को साधने के लिए कई छोटे दलों से गठबंधन कर रही है. सपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल, जनवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन किया है.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यूपी में राजभर वोट बैंक की राजनीति के लिए जानी जाती है. यूपी में लगभग 2% राजभर मतदाता हैं. पूर्वी यूपी में लगभग 8 जिलों में राजभर मतदाता की अच्छी खासी संख्या हैं. 2017 में सुभासपा का गठबंधन बीजेपी से था लेकिन अब समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं. बता दें कि सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हैं.
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महान दल ओबीसी राजनीति के लिए जाना जाता है. यूपी की मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी वोट बैंक की राजनीति करने वाले महान दल के साथ सपा का गठबंधन है. यूपी में लगभग 10% मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी वोट बैंक है, जो कि 2017 के चुनाव में पूरी तरह से बीजेपी के साथ गया था, इसी वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए अखिलेश ने महान दल से गठबंधन किया है. महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य हैं. इसके अलावा जनवादी पार्टी पूर्वी यूपी में लोनिया चौहान वोट बैंक पर काम करती है. इसके अध्यक्ष संजय चौहान हैं. पूर्वी यूपी के कुछ जिलों में चौहान मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. 2017 के चुनाव में दारा सिंह चौहान के बीजेपी में जाने के बाद से यह मतदाता भी बीजेपी के साथ चला गया था. पहले यह बीएसपी का वोट बैंक माना जाता था.
RLD पश्चिमी यूपी की सियासत के लिए जानी जाती है. जाट वोट बैंक और किसानों के मुद्दे पर RLD आगे रहती है. यूपी में सपा और आरएलडी का भी गठबंधन फाइनल हो चुका है. पश्चिमी यूपी की 29 सीटों पर जाट मतदाता ही हार-जीत तय करते हैं. 15 जिलों में जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. किसान आंदोलन के बाद जाट मतदाताओं को सपा और आरएलडी अपने साथ लाने की कोशिश में जुटे हैं. क्योंकि 2014, 2017 और 2019 में जाट मतदाता बीजेपी के साथ गए थे.
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इसके अलावा कई और छोटे दल ऐसे भी हैं जिन्हें अभी भी चुनावी हमसफर की तलाश है.
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (शिवपाल यादव)
AIMIM (असदुद्दीन ओवैसी)
अपना दल (क) (कृष्णा पटेल)
आम आदमी पार्टी
आजाद समाज पार्टी (चंद्रशेखर आजाद)
वहीं बीएसपी और कांग्रेस जैसे बड़े दलों के साथ कोई भी गठबंधन को तैयार नहीं है. इसलिए दोनों ही दलों ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है.
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