भारत में काल बनकर आती है बाढ़, 64 सालों में ली 1 लाख जानें, और बिगड़ेंगे हालात
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भारत में काल बनकर आती है बाढ़, 64 सालों में ली 1 लाख जानें, और बिगड़ेंगे हालात

1953 से 2017 के बीच बाढ़ की वजह से 60 लाख से ज़्यादा पशु भी अपनी जान गंवा चुके हैं. मतलब हर साल औसतन 93,067 पशुओं की भी मौत बाढ़ की वजह से हो जाती है. अगर ये आंकड़े आपको परेशान करते हैं तो ये खबर और भी ज्यादा परेशान करने वाली है. 

जलवायु परिवर्तन का देश में बाढ़ की स्थिति पर व्यापक असर होगा. इसकी वजह से बार-बार बाढ़ आएगी और पीने के पानी की मांग बढ़ेगी.

नई दिल्लीः पिछले कई दिनों से बाढ़ की वजह से देश का एक बड़ा हिस्सा बुरी तरह प्रभावित है, दक्षिण भारत के केरल और कर्नाटक, पश्चिम भारत के महाराष्ट्र, मध्य भारत समेत देश के दूसरे हिस्सों में आई बाढ़ ने इस साल अब तक 113 लोगों की जान ले ली है. केंद्र सरकार की तरफ से जारी आकड़ों के मुताबिक 1953 से 2017 के बीच 64 सालों में बाढ़ की वजह से देश में 1 लाख से ज्यादा (1,07,535) लोगों की मौत हो चुकी है. यानी हर साल औसतन 1,654 लोगों की मौत बाढ़ की वजह से हो जाती है. इतना ही नहीं 1953 से 2017 के बीच बाढ़ की वजह से 60 लाख से ज़्यादा पशु भी अपनी जान गंवा चुके हैं. मतलब हर साल औसतन 93,067 पशुओं की भी मौत बाढ़ की वजह से हो जाती है. अगर ये आंकड़े आपको परेशान करते हैं तो ये खबर और भी ज्यादा परेशान करने वाली है. 

आईआईटी गांधीनगर के वैज्ञानिकों की एक रिसर्च के मुताबिक आने वाले समय में बाढ़ की घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हो सकती है. जर्नल वेदर एंड क्लाइमेट एक्स्ट्रीम में प्रकाशित इस रिसर्च में कहा गया है कि कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत में भारी बारिश और बाढ़ अब आम घटना बनती जा रही है. वैज्ञानिकों विमल मिश्रा, पार्थ मोदी और हैदर अली ने इस रिसर्च के लिए 1901 से 2015 के बीच के भारत के मौसम विभाग से जलवायु और वर्षा के आंकड़ों का इस्तेमाल किया है.

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अब सवाल ये उठता है कि बार-बार आ रही इस बाढ़ के पीछे आखिर वजह क्या है. रिसर्च के मुताबिक तेजी से हो रहे क्लाइमेट चेंज यानि जलवायु परिवर्तन की वजह से ही ये घटनाएं बढ़ रही हैं. इस रिसर्च के लिये वैज्ञानिकों ने अलग-अलग क्लाइमेटिक परिस्थितियों में बारिश और बाढ़ की भविष्यवाणी का अध्ययन किया तो पाया कि बाढ़ आने की घटनाएं पहले के मुकाबले में तेजी से बढ़ी हैं. क्लाइमेट चेंज की वजह से एक्सट्रीम वेदर ईवेंट्स की संख्या बढ़ रही है जैसे भारी से बहुत भारी बारिश आ जाना और उसका लगातार कई दिनों तक चलना. अगर भारी बारिश और बाढ़ की घटनाएं बढ़ेंगी तो इससे होने वाला नुकसान भी बढ़ेगा. 

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सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 1953 से 2017 तक बाढ़ की वजह से देश भर में 8 करोड़ से ज्यादा घर क्षतिग्रस्त हो गए. जिससे 53,774 करोड़ रुपयों का नुकसान हो गया. बाढ़ की वजह से फसलों को भी भारी नुकसान होता है 2017 तक बाढ़ की वजह से 1 लाख करोड़ से ज़्यादा कीमत की फसल बर्बाद हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1953 से 2017 के दौरान बाढ़ की वजह से हुए कुल नुकसान का आंकलन करें तो ये आंकड़ा 3,78,247 करोड़ रुपयों तक पहुंच जाता है. 

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भारत में 70 से 90 फीसदी बारिश मॉनसून के चार महीनों यानि जून से सितंबर के बीच में ही हो जाती है. ऐसा भी नहीं है कि इस दौरान सभी जगह एक समान बारिश होती है. कहीं ज्यादा तो कहीं पर कम बारिश देखी जाती है. यही वजह है कि इस दौरान बाढ़ जैसी घटनाओं का खतरा बना रहता है, लेकिन बाढ़ के पीछे सिर्फ यहीं एक वजह नहीं है. बाढ़ आने के पीछे ऐसी तमाम वजहें हैं जो खुद इसानों ने पैदा की हैं. बड़े स्तर पर शहरीकरण और लकड़ी की जरूरत की वजह से जंगलों को साफ किया गया और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई. जिससे पर्यावरण में असंतुलन पैदा हुआ. इसकी वजह से एक तरफ जहां मॉनसून प्रभावित हुआ तो वहीं दूसरी तरफ नदियों के कटाव की घटनाएं भी बढ़ी हैं. 

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वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों में से 20 फीसदी भारत में होती है. रिपोर्ट में ये चेतावनी भी दी गई है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से 2050 तक देश की आधी आबादी के रहन-सहन में और ज्यादा गिरावट आ सकती है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, "पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है और यह अगले कुछ दशकों तक लगातार बढ़ता रहेगा. जलवायु परिवर्तन का देश में बाढ़ की स्थिति पर व्यापक असर होगा. इसकी वजह से बार-बार बाढ़ आएगी और पीने के पानी की मांग बढ़ेगी.'' दरअसल, हमारा सारा ध्यान बाढ़ आने पर बचाव और राहत कार्यों की तरफ ही रहता है, जबकि हम ऐसे काम कर सकते हैं जिससे बाढ़ की स्थिति को पैदा होने से रोका जा सके. 

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