समान नागरिक संहिता के पक्ष में बोले शिवसेना सांसद संजय राउत, "यह देश हित का निर्णय है"
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समान नागरिक संहिता के पक्ष में बोले शिवसेना सांसद संजय राउत, "यह देश हित का निर्णय है"

शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, "जनसंख्या को नियंत्रित और संतुलित करना यह शिवसेना की स्थायी भूमिका रही है. बालासाहेब ठाकरे से ही यह शिवसेना की भूमिका है."

समान नागरिक संहिता को लेकर शिवसेना सांसद संजय राउत का नया बयान आया है (फाइल फोटो)

देवेंद्र कोल्हाटकर, मुंबई: संसद में तीन तलाक बिल पास होने के बाद कॉमन सिविल कोड (यूसीसी) को लेकर एक नई बहस शुरू हो चुकी है. एक ओर जहां कुछ मुस्लिम नेता यह मुद्दा उठाते नजर आ रहे हैं. ओवैसी ने सवाल उठाया था कि हिंदू व्यक्ति को एक साल की सजा जबकि मुस्लिम व्यक्ति को तीन साल साल की सजा का प्रावधान है. जिसके पलटवार में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने ओवैसी को सलाह देते हुए कहा था, "अगर वह समानता की बात करते हैं तो वह सरकार से देश के प्रत्येक नागरिक के लिए पारिवारिक कानूनों को लागू करने के लिए क्यों नहीं कहते. वह कॉमन सिविल कोड का समर्थन करें." अब समान नागरिक संहिता को लेकर शिवसेना सांसद संजय राउत का बयान आया है.

शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, "जनसंख्या को नियंत्रित और संतुलित करना यह शिवसेना की स्थायी भूमिका रही है. बालासाहेब ठाकरे से ही यह शिवसेना की भूमिका है. मोदी सरकार द्वारा लाया ट्रिपल तलाक का कानून जनसंख्या नियंत्रण में रखने का एक हिस्सा है. समान नागरिक संहिता के दिशा में उठाया गया एक कदम है." उन्होंने आगे कहा, "एनडीए में शिवसेना ने जो मुद्दे उठाए थे, उन्हें मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है. इस पर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं, यह देश हित का निर्णय है."

यूनिफॉर्म सिविल कोड आखिर है क्या
- यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ है भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून.
- समान नागरिक संहिता एक सेक्यूलर यानी पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है.
- आसान भाषा में कहा जाए तो अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग क़ानून का ना होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है.
- यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के सभी नागरिकों पर लागू होता है. फिर चाहे वो किसी भी धर्म या क्षेत्र से संबंधित क्यों ना हों.
- ये किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है.
- देश के संविधान में समान नागरिक संहिता का उल्लेख है.
- संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का ज़िक्र किया गया है.
- लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू नहीं होने से हम वर्षों से संविधान की मूल भावना का अपमान कर रहे हैं.  

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर क्या हैं दिक्कतें
- कई लोगों का ये मानना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने से देश में हिन्दू क़ानून लागू हो जाएगा. जबकि सच्चाई ये है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड एक ऐसा क़ानून होगा जो हर धर्म के लोगों के लिए बराबर होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा.
- ऐसी भी बातें कही जाती हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाने के बाद लोगों की धार्मिक आज़ादी ख़त्म हो जाएगी. जबकि सच्चाई ये है कि समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने के बाद लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता बाधित नहीं होगी बल्कि इसके लागू होने से सभी को एक समान नज़रों से देखा जाएगा.
- फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख...जैन और बौद्ध आते हैं.
- अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाए तो सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून होगा.
- यानी शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा, फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों ना हो.
- फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी क़ानूनों के तहत करते हैं.
- मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़रिए लागू होता है.
(वर्ष 2005 में भारतीय शिया मुसलमानों ने असहमतियों की वजह से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से नाता तोड़ दिया था और उन्होंने ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के रूप में एक स्वतंत्र लॉ बोर्ड का गठन किया था.)
- वैसे निजी कानूनों का ये विवाद अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा है.
- उस दौर में अंग्रेज, मुस्लिम समुदाय के निजी कानूनों में बदलाव करके उनसे दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते थे.

यूनिफॉर्म सिविल कोड पर डॉ. अम्बेडकर की सोच
संविधान निर्माण के समय भीमराव अम्बेडकर को जिस इकलौते मुद्दे पर सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा से गुज़रना पड़ा था. उसका नाम है ‘समान नागरिक संहिता’ यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड. इसे लेकर भीमराव अम्बेडकर को इतना अपमान झेलना पड़ा कि उन्होंने देश के पहले क़ानून मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्हें देश के पहले आम चुनाव में भी हार का मुंह देखना पड़ा. संविधान लिखते वक़्त ‘समान नागरिक संहिता’ की चुनौती सबसे बड़ी थी क्योंकि पर्सनल लॉ के नाम पर देश में दर्जनों क़ानून और मान्यताएं परम्परागत ढंग से क़ायम थीं. संविधान में जब अनुच्छेद 44 के रूप में ‘समान नागरिक संहिता’ पर चर्चा की बारी आयी तो संसद के भीतर और बाहर सड़कों पर भी ख़ूब हंगामा हुआ. यहां तक कि संविधान सभा के सभापति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और तमाम दिग्गज कांग्रेसी डॉक्टर अम्बेडकर से सहमत नहीं थे.

डॉक्टर अम्बेडकर का कहना था कि पर्सनल लॉ में सुधार लाए बग़ैर देश को सामाजिक बदलाव के युग में नहीं ले जाया जा सकता. डॉ भीमराव अम्बेडकर का ये भी कहना था कि रूढ़िवादी समाज में धर्म भले ही जीवन के हर पहलू को संचालित करता हो लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में धार्मिक क्षेत्राधिकार को घटाये बग़ैर असमानता और भेदभाव को दूर नहीं किया जा सकता. इसीलिए देश का ये दायित्व होना चाहिए कि वो ‘समान नागरिक संहिता’ यानी यूनिफॉर्म सिविल को को अपनाये.

अन्य देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड
- फ्रांस में कॉमन सिविल कोड लागू है जो वहां के हर नागरिक पर लागू होता है.
- यूनाइटेड किंग्डम के इंग्लिश कॉमन लॉ की तर्ज पर अमेरिका में फेडरल लेवल पर कॉमन लॉ सिस्टम लागू है.
- ऑस्ट्रेलिया में भी इंग्लिश कॉमन लॉ की तर्ज पर कॉमन लॉ सिस्टम लागू है.
- जर्मनी और उज़बेकिस्तान जैसे देशों में भी सिविल लॉ सिस्टम लागू हैं.

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