SC ने केंद्र से कहा, पेंशन प्रक्रिया की खिचड़ी बनाने की बजाय रिटायर्ड कर्मचारियों का जीवन सुगम बनाए
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SC ने केंद्र से कहा, पेंशन प्रक्रिया की खिचड़ी बनाने की बजाय रिटायर्ड कर्मचारियों का जीवन सुगम बनाए

न्यायालय ने कहा, ‘‘ हम भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से इस बात की सिफारिश करते हैं कि वह दिशा- निर्देशों, कार्यालय ज्ञापन, स्पष्टीकरण, शुद्धिपत्र की खिचड़ी बनाने की बजाय संसद में उचित कानून पारित करवाकर या पेंशन नियमों को लागू कर सरकारी सेवकों के सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को सुगम बनाए.’’ 

फाइल फोटो

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से कहा कि उसे पूरी प्रक्रिया की खिचड़ी बनाने की बजाय उचित पेंशन नियम लागू कर सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के जीवन को सुगम बनाना चाहिए. न्यायमूर्ति एम बी लोकूर और दीपक गुप्ता की पीठ ने रेलवे के एक सेवानिवृत्त अधिकारी के 27 वर्ष पहले के पेंशन मामले पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. याचिकाकर्ता ने अपनी पेंशन में पांचवे वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक बढ़ोत्तरी की मांग की है. पीठ ने कहा कि मामला एक रेलवे कर्मचारी आर सेतु माधवन का है जो ट्रेन निरीक्षक के पद से 31 मार्च, 1991 को सेवानिवृत्त हुआ और 27 साल बाद उसके पेंशन से जुड़ा फैसला किया गया और दुर्भाग्यपूर्ण रूप से वह भी उसके पक्ष में नहीं है.

न्यायालय ने कहा, ‘‘ हम भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से इस बात की सिफारिश करते हैं कि वह दिशा- निर्देशों, कार्यालय ज्ञापन, स्पष्टीकरण, शुद्धिपत्र की खिचड़ी बनाने की बजाय संसद में उचित कानून पारित करवाकर या पेंशन नियमों को लागू कर सरकारी सेवकों के सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन को सुगम बनाए.’’ 

इससे पहले 7 मार्च को केंद्र ने एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि पूर्व सांसदों को पेंशन और दूसरे लाभ का हकदार बनाना न्यायोचित है क्योंकि संसद सदस्य के रूप में कार्यकाल पूरा होने के बाद भी उनकी गरिमा बनाये रखनी होगी. न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में काम करना होता है और हर पांच साल बाद चुनाव लड़ना होता है, उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा भी करना होगा.

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वेणुगोपाल ने गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की याचिका का विरोध करते हुये ये दलीलें दीं. याचिका में सांसदों द्वारा खुद ही अपना वेतन और भत्ते निर्धारित करने सहित अनेक मुद्दे उठाये गये हैं. याचिका में सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों के लिये पेंशन भी निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘‘संसद कानून बनाने वाली संस्था है. संसद को यह सुनिश्चित करना है कि जहां तक सांसदों का संबंध है वे प्रभावी तरीके से काम कर सकें. सांसदों को हर पांच साल में चुनाव में जाना पड़ता है और दौरे करने पड़ते हैं.

अत: उन्हें पेशन देना न्यायोचित है.’’ सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता संगठन के महासचिव एस एन शुक्ला ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुये दावा किया कि 62 फीसदी सांसद करोड़पति हैं और करदाताओं पर पूर्व सांसदों और उनके परिवार के सदस्यों को पेंशन देने का भार नहीं डाला जा सकता. इस पर पीठ ने कहा, ‘‘ करदाताओं को वोट देकर उन्हें बाहर कर देना चाहिए. उन्हें ऐसा करने दीजिए. हम उन्हें रोक नहीं सकते. आप एक अच्छा बयान दे रहे हैं.

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