सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच फि‍र मतभेद, चीफ जस्टिस को केस ट्रांसफर कर पूछा- 'सुनवाई करें या नहीं?'
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सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच फि‍र मतभेद, चीफ जस्टिस को केस ट्रांसफर कर पूछा- 'सुनवाई करें या नहीं?'

जस्टिस एमबी लोकुर के फैसले के बाद 22 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा ने मामले को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को रेफर कर दिया है. साथ में उन्होंने यह भी पूछा कि हम इस केस की सुनवाई करें या नहीं?

जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमबी लोकुर की बेंच के बीच एक केस को लेकर मतभेद. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में जजों के बीच मतभेद एकबार फिर से उभरकर सामने आया है. ताजा मामला सुप्रीम कोर्ट की दो बेंचों के बीच है. तीन जजों की एक बेंच, जिसका नेतृत्व जस्टिस एमबी लोकुर कर रहे हैं, उन्होंने जस्टिस अरुण मिश्रा के तीन सदस्‍यीय वाली बेंच के फैसले पर रोक लगा दी. जस्टिस लोकुर के फैसले के बाद गुरुवार को जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस केस को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को रेफर कर दिया. साथ में यह भी पूछा कि 'हम इस केस की सुनवाई करें या नहीं?'

  1. 21 फरवरी को जस्टिस एमबी लोकुर ने फैसले पर लगाई थी रोक
  2. हरियाणा सरकार बनाम जीडी गोयनका के बीच भूमि अधिग्रहण का मामला
  3. 8 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने सुनाया था फैसला

मामला चीफ जस्टिस को रेफर
इंडियन एक्‍सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, यह मामला हरियाणा सरकार बनाम जीडी गोयनका टूरिज्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड के बीच भूमि अधिग्रहण से जुड़ा है. 21 फरवरी को जस्टिस एमबी लोकुर की बेंच ने जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के फैसले पर रोक लगा दी थी. 22 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह मामला चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया और पूछा कि आप इस मामले को उचित बेंच को सौंप दें.

पढ़ें: CBI जज लोया मामले की सुनवाई से अलग हुए जस्टिस अरुण मिश्रा

जस्टिस लोया की मौत मामले में सुनवाई को लेकर उठे थे सवाल
पिछले कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट लगातार कामकाज और फैसले को लेकर विवाद देखने को मिले हैं. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के प्रशासनिक फैसले पर सवाल उठाए थे. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका गलत दिशा में आगे बढ़ रही है जिससे लोकतंत्र खतरे में है. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस लोया की मौत को लेकर भी कई सवाल उठे थे. जस्टिस लोया की मौत के मामले में टिप्पणी आने के बाद जस्टिस अरुण मिश्रा ने उस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. 21 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा के फैसले पर रोक लगाने वाली बेंच में शामिल जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी शामिल थे.

समर्थन में आए जस्टिस आदर्श कुमार गोयल
यह विवाद धीरे-धीरे गहराता जा रहा है. जस्टिस अरुण मिश्रा के समर्थन में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने भी भूमि अधिग्रहण के एक मामले से खुद को अलग कर लिया है. उन्होंने भी इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया है. 

क्या है जस्टिस अरुण मिश्रा का मामला?
8 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस एमएम शांतानागौदार की बेंच ने फैसला दिया था कि सरकारी एजेंसी अगर अधिग्रहीत भूमि के लिए मालिक को मुआवजे की पेशकश करें और मालिक मुआवजा लेने से इंकार कर दे तो इसे मुआवजा देना माना जाएगा. इस आधार पर मालिक मुआवजा नहीं मिलने को वजह बताकर भूमि अधिग्रहण रद्द नहीं करवा सकता है. इस फैसले को लेकर जस्टिस एमबी लोकुर, कुरियन जोसेफ और दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि यह मामला बड़ी बेंच के पास भेजे जाने की जरूरत है. बता दें कि 2014 में भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुआवजा नहीं देना भूमि अधिग्रहण रद्द करने का आधार बनेगा.

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