इस ऐतिहासिक भाषण के 125वें वार्षिक दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के जनता को संबोधित करने का फैसला भी आज इसकी प्रासंगिकता को बताता है. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि एक सदी से भी अधिक बीत जाने के बावजूद स्वामी विवेकानंद का भाषण इतना सामयिक और प्रासंगिक क्यों है?
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11 सितंबर, 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में अपने भाषण के माध्यम से पश्चिम को जिस पूर्व के बारे में बताया था, उस भाषण का 125वां वार्षिक दिवस मनाया जा रहा है. इस भाषण को दुनिया के उन चुनिंदा ऐतिहासिक भाषणों में याद किया जाता है जिसको इतना लंबा अरसा बीतने के बाद भी इतने चाव से याद किया जाता है. बुद्धिजीवियों द्वारा अनगिनत बार इसके गूढ़ अर्थों की व्याख्या की जा चुकी है. पीएम नरेंद्र मोदी के इस ऐतिहासिक भाषण के 125वें वार्षिक दिवस पर जनता को संबोधित करने का फैसला भी आज इसकी प्रासंगिकता को बताता है. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि एक सदी से भी अधिक बीतने के बावजूद स्वामी विवेकानंद का भाषण इतना सामयिक और प्रासंगिक क्यों है? आइए जानें इस भाषण की 5 बातें:
1. स्वामी विवेकानंद ने उस भाषण की शुरुआत 'मेरे अमेरिकी भाईयों और बहनों' कहकर शुरू की थी. यह संबोधन 19वीं सदी में कई मायनों में अनोखा था. दरअसल उस वक्त मोटे तौर पर महिला और पुरुष को अलग बांटकर देखने की दुनिया आदी थी. उस परिप्रेक्ष्य में दोनों को बराबरी के दर्जे से नवाजा था. उस वक्त दुनिया में नारीवादी आंदोलन भी बहुत सक्रिय नहीं हुए थे. आधी आबादी का हक दूर की कौड़ी थी.
2. स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में कहा कि वे ऐसी भारत भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं जो संन्यासियों की परंपरा के लिहाज से सबसे प्राचीन है, जिसने दुनिया को धर्म का मार्ग दिखाया है और जो पूरब में ज्ञान का सूरज रहा है. इसके साथ ही यह बात भी कही कि दुनिया में यही ऐसी इकलौती धरती है जिसने सभी धर्मों को जरूरत के वक्त आश्रय दिया, चाहें वे पारसी हों या इजरायली या फिर कोई और. दरअसल इसके माध्यम से स्वामी विवेकानंद ने भारत की सहिष्णुता और सनातन संस्कृति की बात कही.
3. स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में कहा कि दुनिया में धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा रक्तपात हुआ है, कट्टरता और सांप्रदायिकता की वजह से सबसे ज्यादा खून बहे हैं जिसे हर हाल में रोकना होगा. आज धर्म के नाम पर जिस तरह से दुनिया में आतंकवाद को फैलाया जा रहा है, उसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि आज ही के दिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में अब तक का सबसे आतंकी हमला हुआ. भारत, आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीडि़त रहा है.
4. स्वामी विवेकानंद ने धर्म के प्रचार-प्रसार के बारे में कहा कि जबरन दूसरे धर्म को नष्ट करना किसी धर्म का प्रचार करने का तरीका नहीं हो सकता. उन्होंने दुनिया भर के धर्मावलंबियों से धर्मांधता का विरोध करने और मानवता को प्रतिष्ठित करने की वकालत की.
5. आज दुनिया में बढ़ रही धर्मांधता, कट्टरता के बीच शांति और भाईचारा स्थापित करने की मांग बढ़ रही है. इस मामले में भारत दुनिया में अगुआ की भूमिका निभा सकता है. स्वामी विवेकानंद ने भी यही कहा था.