चुनावी नतीजों में नहीं दिखा किसान आंदोलन का असर, यूपी में हुई BJP की वापसी
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चुनावी नतीजों में नहीं दिखा किसान आंदोलन का असर, यूपी में हुई BJP की वापसी

विधान सभा चुनावों (Assembly Elections) के नतीजों पर कई लोगों ने अटकलें लगाते हुए कहा था कि इस पर किसान आंदोलन (Farmer's Protest) का भयंकर असर पड़ेगा. लेकिन नतीजे देखते हुए पता चल रहा है कि किसान आंदोलन का दांव चुनावी राज्यों में नहीं चला.

किसान आंदोलन का दांव नाकाम

नई दिल्ली: पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के नतीजे दर्शाते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर साल भर से ज्यादा वक्त तक चले किसान आंदोलन का चुनाव में कोई असर नहीं पड़ा. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जहां सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) सत्ता बरकरार रखने में सफल रही तो वहीं दूसरी ओर बदलाव की आंधी में पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) ने जबर्दस्त जीत हासिल की.

  1. कांग्रेस और सपा के मंसूबे हुए फेल
  2. किसान आंदोलन का दांव नाकाम
  3. आप ने उठाया फायदा
  4. भाजपा ने हासिल की जीत

सपा और कांग्रेस की कोशिशों पर फिरा पानी

माना जा रहा था कि वापस लिए गए कृषि कानूनों के मुद्दे पर चले किसान आंदोलन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश और किसानों (Farmers) के प्रभाव वाले इलाकों पर असर पड़ेगा. इसे ध्यान में रखते हुए ही समाजवादी पार्टी ने इस बार राष्ट्रीय लोक दल (RLD) से गठबंधन किया था ताकि जयंत चौधरी के साथ आने के बाद समाजवादी पार्टी (SP) को जाट मतदाताओं का साथ मिलेगा. हालांकि, चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि किसानों की नाराजगी को भुनाने के समाजवादी पार्टी गठबंधन और कांग्रेस (Congress) के प्रयास विफल साबित हुए हैं.

भाजपा का इन क्षेत्रों पर छाया वर्चस्व

पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की सीटों में मुजफ्फरनगर, दादरी, गंगोह, गाजियाबाद, देवबंद, बागपत, बदायूं, बाह, जेवर, हरदोई, हापुड़, चंदौसी, छाता, मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, अलीगढ़, खतौली, खुर्जा, लोनी, लखीमपुर, आगरा ग्रामीण, आगरा दक्षिण, मेरठ कैंट, मिसरिख, शाहजहांपुर, सिकंदरा, खैर, नकुर, मीरापुर, हस्तिनापुर, आंवला, अतरौली, फतेहपुर सिकड़ी, हाथरस, नोएडा और चरथावल सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) या तो निर्णायक बढ़त बनाए हुए है या जीत चुकी है.

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विपक्षी दलों के मुद्दे हुए नजरअंदाज

चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी दलों ने कोविड-19 महामारी के दौरान गंगा में तैरती लाशों के मुद्दे को भी जोरशोर से उठाया था. लेकिन चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि चुनाव पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में किसानों को गाड़ी से कुचले जाने और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे के इसमें शामिल होने से जुड़े आरोपों का विषय भी उठाया था. लेकिन इस जिले की सीटों पर भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया.

भाजपा ने रचा इतिहास

उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन 2017 की तरह तो नहीं रहा, लेकिन राज्य में भाजपा की निर्णायक जीत से साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बाद कोई मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता में आ रहा है. भाजपा उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी सत्ता में वापसी कर रही है. उत्तराखंड (Uttarakhand) में पहली बार ऐसा हुआ है कि राज्य की सत्ताधारी पार्टी ने फिर से सत्ता में वापसी की है. उत्तराखंड में किसानों के प्रभाव वाली कई सीटों पर भाजपा ने निर्णायक बढ़त बनाई या जीत दर्ज की. इनमें हरिद्वार, कोटद्वार, काशीपुर, रूड़की आदि सीट शामिल हैं.

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किसान आंदोलन का 'आप' को हुआ फायदा

किसान आंदोलन का प्रभाव पंजाब (Punjab) में दिखा लेकिन इसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी को हुआ. 117 सदस्यीय पंजाब विधान सभा के लिए हुए चुनाव में आम आदमी पार्टी 90 से ज्यादा सीटों पर जीत की ओर बढ़ रही है और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने पार्टी की जीत को 'क्रांति' करार दिया है. चुनावी दृष्टि से पंजाब माझा, मालवा और दोआबा यानी तीन हिस्सों में बंटा है. मालवा में 69 सीट, माझा में 25 और दोआबा में 23 सीटें हैं. सबसे ज्यादा सीटों वाला मालवा क्षेत्र किसानों का गढ़ है. पंजाब के चुनाव में यही इलाका निर्णायक भूमिका निभाता है.

आप ने जीता पंजाबियों का दिल

विश्लेषकों के अनुसार आम आदमी पार्टी का आधार भी गांवों में ज्यादा है. पिछली बार उसकी 20 सीटों में अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से ही थी. चुनाव परिणाम से स्पष्ट है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी ने इस बार मालवा सहित सभी इलाकों में शानदार प्रदर्शन किया है और राज्य में उसकी सरकार तय है. ऐसा मालूम पड़ता है कि पार्टी का नारा 'इक मौका भगवंत मान ते, केजरीवाल नूं' मतदाताओं को भा गया था. आम आदमी पार्टी ने विद्यालयों और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के जरिए पंजाब में दिल्ली के शासन मॉडल को लागू करने की बात भी कही.

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कांग्रेस बुरी तरह हारी!

आप ने मतदाताओं को लुभाने के लिए महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये, 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 24 घंटे बिजली आपूर्ति जैसे वादे भी किए. पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस ने 117 सदस्यीय पंजाब विधान सभा में 18 सीटों पर जीत दर्ज है. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को बृहस्पतिवार को भदौर और चमकौर साहिब सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को भी पराजय का सामना करना पड़ा.

शिरोमणि अकाली दल को लगा झटका

पंजाब विधान सभा चुनाव के परिणाम से शिरोमणि अकाली दल (SAD) और बादल परिवार को तगड़ा झटका लगा है. चुनाव में पार्टी को सिर्फ 3 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. तीन दशकों में यह पहली बार होगा कि 117 सदस्यीय पंजाब विधान सभा में बादल परिवार का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा.

(इनपुट - भाषा)

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