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नई दिल्ली: देश में हर साल 1 फरवरी को बजट पेश होता है और इसी के इर्द-गिर्द हर कोई अपने फायदे-नुकसान की चर्चा में लग जाता है. हर साल लोगों को बजट से खासा उम्मीदें रहती हैं. बजट के अनुसार ही लोग अपने खर्चों को नियंत्रित करते हैं. सरकारें काफी तैयारी के साथ इसे तैयार करती हैं और उम्मीद की जाती है कि बजट से हर किसी को फायदा पहुंचे. लेकिन एक बार ऐसा हुआ था कि खुद पीएम ने बजट संबोधन के दौरान सदन और देश से माफी मांगी थी.
साल 1966 में लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shashtri) के निधन के बाद इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) देश की प्रधानमंत्री बनीं. उस समय मोरारजी देसाई (Morarji Desai) चाहते थे उन्हें PM बनाया जाए. लेकिन उन्हें पीएम नहीं बनाया गया और उप-प्रधानमंत्री पद के साथ वित्त मंत्रालय का कामकाज उनके जिम्मे सौंप दिया गया. लेकिन मोरारजी देसाई के भीतर प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक हमेशा बनी रही. तब पार्टी के नेता दो खेमों में बंट गए. इस गुटबाजी को देखते हुए 12 नवंबर 1969 को इंदिरा गांधी ने सख्ती दिखाते हुए मोरारजी देसाई को पार्टी से बाहर कर दिया.
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देसाई को पार्टी से बाहर करने के साथ इंदिरा गांधी ने वित्त मंत्रालय का पोर्टफोलियो अपने ही पास रखा. ऐसे में बजट पेश करने की चुनौती सामने आ गई. लेकिन ऐसे में भी इंदिरा गांधी पीछे नहीं हटी और ऐसा बजट पेश किया, जिसकी चर्चा आज भी होती है. उसी बजट के दौरान पीएम ने सदन में माफी तक मांगी, हालांकि यह माफी एक वाक्य की शुरुआत थी लेकिन जब पीएम ने माफी की लाइन कही तो सदन में सन्नाटा छा गया.
28 फरवरी 1970, को जब वित्त मंत्री इंदिरा गांधी सदन में खड़ी हुईं तो तालियां बजीं. भाषण के दौरान जब घोषणाओं की बारी आई तो इंदिरा गांधी बोलीं, ‘मुझे माफ करिएगा.’ यह लाइन सुनकर सदन में सन्नाटा छा गया. सन्नाटे को चीरते हुए इंदिरा मुस्कुराईं और दोहराया, 'माफ करिएगा, मैं इस बार सिगरेट पीने वालों के जेब पर बोझ बढ़ाने वाली हूं.' उस दौरान इंदिरा गांधी ने सिगरेट पर लगे 3% टैक्स को बढ़ाकर 22% कर दिया. सिगरेट पर एक बार में 633% टैक्स बढ़ गया. सदन में बैठे लोग मेज थपथपाने लगे. इंदिरा गांधी को आभास हुआ कि उनका यह फैसला सही है. उन्होंने कहा, 'सिगरेट पर ड्यूटी बढ़ाने से सरकार को 13.50 करोड़ रुपये का अतिरिक्त टैक्स मिलेगा.'
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आमतौर पर आज के समय में अगर किसी चीज पर 2 पैसे का भी इजाफा हो जाए तो बड़ा विरोध होने लगता है. लेकिन उस दौर में ऐसा नहीं हुआ. हालांकि दबी कुचली आवाज में इंदिरा के इस फैसले का विरोध तो हुआ लेकिन वो ज्यादा दिन नहीं चला. क्योंकि उस वक्त सिगरेट पीने का शौक अमीर लोग ही पालते थे.
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