DNA: क्या उदयपुर हत्याकांड का कारण सिर्फ इस्लामिक कट्टरपंथ है? आतंकवाद का भी धर्म होता है!
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DNA: क्या उदयपुर हत्याकांड का कारण सिर्फ इस्लामिक कट्टरपंथ है? आतंकवाद का भी धर्म होता है!

DNA Analysis: उदयपुर घटना की जड़ में सिर्फ इस्लामिक कट्टरपंथ के बीज नहीं हैं. बल्कि ये घटना मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का भी एक परिणाम है. सोचिए, ऐसा कैसे हो सकता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा को हिन्दू बता कर उनका विरोध किया जाता है.

DNA: क्या उदयपुर हत्याकांड का कारण सिर्फ इस्लामिक कट्टरपंथ है? आतंकवाद का भी धर्म होता है!

DNA Analysis: आज हम उदयपुर में मारे गए कन्हैया लाल को इंसाफ दिलाने की अपनी मुहिम जारी रखेंगे और आपको बताएंगे कि इस घटना की जड़ में सिर्फ इस्लामिक कट्टरपंथ के बीज नहीं हैं. बल्कि ये घटना मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का भी एक परिणाम है. सोचिए, ऐसा कैसे हो सकता है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी करने वाली नूपुर शर्मा को हिन्दू बता कर उनका विरोध किया जाता है. लेकिन जब मुस्लिम समुदाय के दो लोग कन्हैया लाल का सिर धड़ से अलग करके उसकी हत्या कर देते हैं तो हमारे देश का एक वर्ग ये कहता है कि आरोपियों का कोई धर्म नहीं होता.

हमारे देश में बसते हैं दो भारत

आज हमने उदयपुर के उस इलाके से खास रिपोर्ट तैयार की है जिससे आपको पता चलेगा कि हमारे देश में कैसे दो भारत बसते हैं. एक भारत वो है, जहां नूपुर शर्मा के मामले में विरोध करने वाली हिंसक भीड़ को शांतिदूत बताया जाता है और कहा जाता है कि ये तमाम विरोध प्रदर्शन अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में हैं. लेकिन दूसरे भारत में नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले कन्हैया लाल को साम्प्रदायिक बता कर उसकी हत्या कर दी जाती है और विडम्बना ये है कि इस दूसरे भारत में लोगों के पास अभव्यक्ति की आजादी का कोई अधिकार नहीं है. भारत का संविधान कहता है कि इस देश के सभी 140 करोड़ नागरिकों को अपने विचार और मत प्रकट करने का अधिकार है और कन्हैया लाल को यही लगा था कि वो इस धर्मनिरपेक्ष देश में अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन जैसे ही उसने अपनी अभव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल किया, उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया और गला काटने की इस सोच ने आज भारत को खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है.

उदयपुर में निकाला गया विशाल जुलूस

आज उदयपुर में इस घटना के खिलाफ विशाल जुलूस निकाल गया, जिसमें 10 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए और बड़ी बात ये है कि ये विरोध प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण था. इस दौरान कोई हिंसक घटना नहीं हुई. लेकिन आपको वो तस्वीरें भी याद होंगी, जब पिछले दिनों देशभर में एक खास धर्म के लोगों ने नूपुर शर्मा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए थे और इस दौरान कई स्थानों पर तोड़फोड़ हुई, आगजनी की गई और हिंसा भड़काई गई. इन दोनों विरोध प्रदर्शनों में जो मूल अंतर है, वो आप इन तस्वीरों से समझ सकते हैं. इससे ये भी पता चलता है कि हिन्दू समुदाय आज भी कानून व्यवस्था को मानने वाला है.

फेसबुक पोस्ट से हुई मामले की शुरुआत

कन्हैया लाल की हत्या के बाद से पूरे देश में गुस्से की लहर है. इस मामले में एक दिन पहले ही इलाके के SHO और ASI को सस्पेंड कर दिया गया था. क्योंकि आरोप है कि पुलिस ने कन्हैया लाल पर समझौता करने के लिए दबाव बनाया था. असल में ये पूरा मामला एक फेसबुक पोस्ट से शुरू हुआ था. 15 जून को कन्हैया लाल ने पुलिस को दी अपनी शिकायत में बताया था कि जिस समय उनके बच्चे मोबाइल फोन पर गेम खेल रहे थे, उस दौरान गलती से एक तस्वीर उनके मोबाइल फोन से फेसबुक पर पोस्ट हो गई थी, जिसमें नूपुर शर्मा का समर्थन किया गया था.

माफी भी मांगी लेकिन शांत नहीं हुआ मामला

इस घटना के बाद उनके पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और उनसे माफी मांगने के लिए कहा. इसके बाद कन्हैया लाल ने बिना देर किए माफी भी मांग ली और फेसबुक पोस्ट को भी डिलीट कर दिया. हालांकि इसके बावजूद तब भी ये मामला शांत नहीं हुआ और 11 जून को मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए पुलिस में FIR दर्ज करा दी. जिसके बाद कन्हैया लाल को गिरफ्तार कर लिया गया और वो एक दिन तक जेल में बन्द रहे. जेल से बाहर आने के बाद जब उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गईं तो उन्होंने पुलिस में एक शिकायत देकर सुरक्षा की मांग की और अपनी दुकान पर जाना भी बन्द कर दिया.

इस दौरान लगभग एक हफ्ते तक कन्हैया लाल की दुकान बन्द रही और हमें पता चला है कि पुलिस ने उनकी दुकान और घर के बाहर दो पुलिस कॉन्सटेबल भी तैनात किए थे. लेकिन घटना से एक दिन पहले इन पुलिसकर्मियों को वापस बुला लिया गया, जिसके बाद मोहम्मद रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद नाम के दो लोगों ने सुनियोजित तरीके से उसकी हत्या कर दी. हत्या भी ऐसे की गई, जैसे तालिबान के आतंकवादियों द्वारा लोगों को जेहाद के लिए मारा जाता है. कन्हैया लाल की जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई है, उसमें पता चला है कि आरोपियों ने उसके गले पर सात से आठ बार वार किए. इसके अलावा कन्हैया लाल के शरीर पर कई तरह की चोट के निशान हैं और उनका हाथ भी हमले के दौरान काट दिया गया.

NIA कर रही मामले की जांच

फिलहाल इस मामले की जांच NIA को सौंप दी गई है और NIA द्वार इस केस में FIR दर्ज कर ली गई है. इसके अलावा राजस्थान सरकार ने भी NIA को जांच में सहयोग करने की बात कही है और आरोपियों के खिलाफ UAPA की धाराओं में केस दर्ज किया है. भारत के संविधान में देश के हर नागरिक की जान को समान महत्व दिया गया है. जब किसी नागरिक की हत्या होती है, चाहे वो किसी भी धर्म का हो, या किसी भी जाति का हो, तब एक जैसी धाराएं लगती हैं और एक जैसी सजा दी जाती है. लेकिन कड़वा सच ये है कि हमारे देश में अब मौत को भी धर्म के आधार पर बांट दिया गया है. आज अगर किसी अल्पसंख्यक के खिलाफ कोई घटना होती है तो ये बड़ी हेडलाइन बन जाती है. लेकिन जब कन्हैया लाल जैसे किसी व्यक्ति को मारा जाता है तो इस पर सन्नाटा छा जाता है और इसे आप कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.

इन घटनाओं से हमने क्या सीखा?

पिछले दिनों कर्नाटक में हर्षा नाम के एक 23 साल के लड़के की इसलिए हत्या कर दी गई थी क्योंकि वो हिन्दू था और उसने स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग के खलाफ विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. तब भी इस घटना पर हमारे देश का एक खास वर्ग चुप रहा. इसी साल 25 जनवरी को गुजरात में किशन भारवाड़ नाम के एक युवक की दो लोगों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. किशन भारवाड़ की गलती भी यही थी कि वो हिन्दू थे और उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद साहब को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की थी और कन्हैया लाल की तरह किशन भारवाड़ ने भी अपनी इस पोस्ट के लिए माफी मांग ली थी लेकिन इसके बावजूद उन्हें मार दिया गया.

ऐसे ही हुई कमलेश तिवारी की हत्या 

इसी तरह 18 अक्टूबर 2019 को कुछ लोगों ने हिन्दू महासभा के नेता कमलेश तिवारी की लखनऊ में बेरहमी से हत्या कर दी थी. कमलेश तिवारी पर 2015 में पैगम्बर मोहम्मद साहब पर विवादित टिप्पणी करने का आरोप लगा था और बड़ी बात ये है कि तब अदालत ने उन पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट यानी NSA के तहत कार्रवाई करने को गलत माना था और ये धाराएं हटा दी थीं. लेकिन इसके बावजूद कट्टरपंथियों ने उन्हें भी मार दिया.

हमारे देश में शुरुआत से आम लोगों के बीच ये धारणा बनाने की कोशिश की गई कि अल्पसंख्यक कभी गलत नहीं हो सकते और बहुसंख्यक कभी पीड़ित नहीं हो सकते. इस फॉर्मुले पर चलते हुए हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों ने मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की. यानी मुसलमानों को खुश करने के लिए हमारे देश के नेताओं ने इस्लामिक कट्टरपंथ को नजरअंदाज किया और यही वजह है कि इस देश में संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी पर आंसू बहाए गए. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आतंकवादी ओसामा बिना लादेन को लादेनजी कह कर संबोधित किया और 2008 के बाटला हाउस एनकाउंटर पर सोनिया गांधी की आंखों में आंसू आ गए थे और आज भी हमारे देश का एक वर्ग ऐसा है, जो कन्हैया लाल की मौत पर जश्न मना रहा है और कह रहा है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब का अपमान करने के लिए ये सजा जायज है.

कैसे चलेगा देश?

मुस्लिम तुष्टिकरण की इस राजनीति को आप एक और उदाहरण से समझ सकते हैं. वर्ष 2005 में जब डेनमार्क के एक अखबार ने पैगंबर मोहम्मद साहब का कार्टून छापा था तब भी दुनियाभर के इस्लामिक देशों ने डेनमार्क का ऐसा ही विरोध किया था. जैसा आज वो भारत का कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस समय भारत ने इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाया था. तब भारत में UPA की सरकार थी और चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे और UPA की सरकार देश के अल्पसंख्यकों को नाराज नहीं करना चाहती थी. इसलिए पहले तो तत्कालीन भारत सरकार ने इस कार्टून को लेकर डेनमार्क की सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया और फिर डेनमार्क के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया. इससे आप समझ सकते हैं कि हमारे देश में कैसे मुस्लिम तुष्टिकरण के सहारे धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा दिया गया और आज एक बड़ा सवाल ये भी है कि ये देश संविधान के हिसाब से चलेगा? या शरिया कानून के हिसाब से चलेगा?

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