Allahabad High Court Decision: बुजुर्ग माता- पिता की देखभाल करने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि माता- पिता की देखभाल करना बच्चों की नैतिक जिम्मेदारी और कर्तव्य है. जानें और क्या कहा कोर्ट ने?...
Trending Photos
मोहम्मद गुफरान/ प्रयागराज: बुजुर्ग माता पिता की देखभाल न करने वाले युवाओं को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि हमारा भारतीय समाज और परंपरा बुजुर्ग माता पिता की देखभाल को नैतिक जिम्मेदारी और कर्तव्य मानता है. लेकिन आज के युवा बहक गए हैं, हमें अपने बुजुर्ग माता पिता की देखभाल के लिए अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि भारत महान श्रावण कुमार की जमीन है, रामायण में जिक्र है कि श्रावण कुमार ने अपने कंधो पर बैठाकर अपने बुजुर्ग माता पिता को तीर्थ यात्रा कराई थी. आज के युवाओं को श्रावण कुमार से सीखने की जरूरत है. जस्टिस महेश चंद्र चतुर्वेदी और जस्टिस प्रशांत कुमार की डिविजन बेंच ने प्रयागराज के छविनाथ की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये अहम बाते कही है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका
दरअसल प्रयागराज के हंडिया निवासी बुजुर्ग छविनाथ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिसमें उन्होंने देखभाल और भावनात्मक आश्रय देने के बजाय बेटों पर परेशान करने का आरोप लगाया था. याचिका में उन्होंने कहा कि उनके बेटे उनकी देखभाल नहीं करते हैं, लेकिन उनकी संपत्ति पर अधिकार जमाते हैं, उन्हे ही उनकी संपत्ति से बेदखल कर रहें हैं. हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए संबंधित एसडीएम को छः सप्ताह में सभी पक्षों को सुनकर कानून के अनुसार निर्णय लेने का निर्देश दिया है. याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने माता- पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 का भी हवाला दिया.
ये खबर भी पढ़ें- Aligarh News: पत्नी की हत्या के बाद शव को संदूक में भरकर लगाने जा रहा था ठिकाने, तभी पुलिस ने धर दबोचा
कोर्ट ने की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता की देखभाल करने और उनकी गरिमा को बनाए रखने और बुढ़ापे में उनका सम्मान बनाए रखने के लिए बाध्य है. कोर्ट ने कहा कि कई बार ऐसा देखा गया है कि संपत्ति हासिल करने के बाद बच्चे अपनी बुजुर्ग माता पिता को छोड़ देते हैं. कोर्ट ने कहा कि जब कोई बूढ़ा माता-पिता अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति दान करता है, उस समय जब वह बूढ़ा, कमजोर, बीमार, लगभग कमाने वाला नहीं, आश्रित और थका हुआ होता है, तो यह न केवल अपेक्षित होता है, बल्कि दान करने वाले बच्चे नैतिक और कानूनी दायित्व और बाध्यता दोनों के अधीन होते हैं. अपने दाता माता-पिता की देखभाल करने का कर्तव्य, हमारा देश संस्कृति, मूल्य और नैतिकता की भूमि रहा है. यह महान "श्रवण कुमार" की भूमि है जिन्होंने अपने अंधे माता-पिता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. भारतीय समाज के पारंपरिक मानदंड और मूल्य बुजुर्गों की देखभाल के कर्तव्य पर जोर देते हैं. हमारे पारंपरिक समाज में, माता-पिता के प्रति बच्चों के कर्तव्यों को उन पर कर्ज माना जाता था. कोर्ट ने इस तरह की अहम टिप्पणियां करते हुए याचिका का निपटारा कर दिया.
Paper Queen के नाम से मशहूर है देवभूमि की ये कलाकार, अखबार से बनाती है 53 तरह के कपड़े