कल्याण सिंह: ऐसी शख्सियत जिसने वाजपेई से ठान ली थी रार, राम के लिए कुर्बान कर दी CM की कुर्सी
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कल्याण सिंह: ऐसी शख्सियत जिसने वाजपेई से ठान ली थी रार, राम के लिए कुर्बान कर दी CM की कुर्सी

उनका पूरा राजनीतिक करियर कई उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा. आइए जानते हैं कल्याण सिंह के व्यक्तिगत व राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ रोचक व ऐतिहासिक जानकारी...

फाइल फोटो.

नई दिल्ली:  उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Kalyan Singh) का 89 वर्ष की उम्र में लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI-MS) में शनिवार को निधन हो गया. उनका पूरा राजनीतिक करियर कई उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा. आइए जानते हैं कल्याण सिंह के व्यक्तिगत व राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ रोचक व ऐतिहासिक जानकारी...

'राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं'
कल्याण सिंह को उनके पहले कार्यकाल में बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए याद किया जाता है. मस्जिद विध्वंस और सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद मीडिया से बातचीत में कल्याण सिंह ने कहा था 'बाबरी मस्जिद विध्वंस भगवान की मर्जी थी. मुझे इसका कोई अफसोस नहीं है. कोई दुख नहीं है. कोई पछतावा नहीं है. ये सरकार राममंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ. ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान. राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं. केंद्र सरकार कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकती है, क्योंकि मैं ही हूं, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है.'

कारसेवकों पर गोली चलवाने से कर दिया था इनकार
मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह ने बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था. 'कोर्ट में केस करना है तो मेरे खिलाफ करो. जांच आयोग बिठाना है तो मेरे खिलाफ बिठाओ. किसी को सजा देनी है तो मुझे दो. केंद्रीय गृह मंत्री शंकरराव चह्वाण का मेरे पास फोन आया था. मैंने उनसे कहा कि ये बात रिकॉर्ड कर लो चह्वाण साहब कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा.' 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कार सेवकों पर गोली चलवाने से साफ मना कर दिया था.

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जब अटल बिहारी वाजपेयी से ठन गई, बना ली पार्टी
अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का भद्र पुरुष माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अटल के मित्र हर दल में थे, लेकिन दुश्मन कोई नहीं. लेकिन कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से रार ठान ली और नाराज होकर भाजपा से नाता तोड़ लिया था. कल्याण ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली थी. हालांकि बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर ही वे भाजपा में वापस आ गए थे.

2013 में भाजपा में दोबारा की वापसी
साल 2009 में फिर भाजपा से अलग होकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. साल 2013 में फिर भाजपा में शामिल हो गए. साल 2014 में मोदी सरकार आने के बाद कल्याण सिंह को राज्स्थान और हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. कल्याण सिंह के बारे में जॉर्ज फर्ना फर्नांडिस ने एक बार कहा था, ''राजनीति में कामयाबी के लिए धैर्य की ज़रूरत होती है. अगर कल्याण सिंह ने धैर्य दिखाया होता तो वही अटल के बाद भाजपा के कप्तान होते.''

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मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल- कल्याण सिंह
वहीं कल्याण सिंह ने कहा, ''मेरे राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल थी कि मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात स्वीकार कर ली. अगर मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ होता, तो अटल जी मुझे हटा नहीं सकते थे.'' कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं और 2014 में एटा से सांसद बने थे. फिर 2019 में दोबारा लोकसभा के लिए चुने गए. वहीं कल्याण सिंह के पौत्र संदीप कुमार सिंह योगी आदित्यनाथ की सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री हैं.

1967 में कल्याण सिंह की सियासी पारी की हुई थी शुरुआत 
कल्याण सिंह की सियासी पारी की शुरुआत वर्ष 1967 में शुरू हुई थी, जब वह पहली बार अतरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक विधायक रहे.  जून 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा 425 में से 221 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई.  शानदार जीत के बाद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. 

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