आर्टिकल 370 और 35A हटाए जाने पर कश्मीरी पंडितों ने जताई खुशी, बोले- 'हमें जान बचाकर भागना पड़ा था'
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand559549

आर्टिकल 370 और 35A हटाए जाने पर कश्मीरी पंडितों ने जताई खुशी, बोले- 'हमें जान बचाकर भागना पड़ा था'

कश्मीरी पंडित डॉ विजय बकाया के परिवार की कहानी तो रोंगटे खड़े करने वाली है. 64 वर्षीय डॉ विजय बकाया उस समय श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में नौकरी कर रहे थे.

कश्मीर से धारा 370 और आर्टिकल 35A को हटाया तो कश्मीरी पंडितों की 30 साल पुरानी यादें ताजा हो गईं.

देहरादूनः केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाने के बाद देहरादून में रह रहे कश्मीरी परिवारों में खुशी की लहर है. 1990 में अपनी घर छोड़कर कश्मीरी पंडित देश के अलग अलग हिस्सों  में रह रहे हैं. केंद्र सरकार ने जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 और आर्टिकल 35A को हटाया तो कश्मीरी पंडितों की 30 साल पुरानी यादें ताजा हो गई. देहरादून में करीब 300 कश्मीरी परिवार रहते हैं, जिसमें डेढ़ सौ परिवार 1990 में विस्थापित होकर यहां बसे.

देहरादून के जोगीवाला चौक पर पिछले 30 सालों से रह रहे अशोक कौल का परिवार भी 1990 में आतंकवाद का शिकार हुआ. अशोक कौल पुलवामा जिले के मूल निवासी हैं, जो वर्तमान में अलग जिला शोफियां के रुप में अस्तित्व में आ चुका है. अशोक कौल बताते हैं कि उनका पैतृक गांव अडोरा है, जहां उनकी पुश्तैनी जमीन और मकान है. अडोरा गांव में 2 हिन्दू परिवार थे और 25 मुस्लिम परिवार रहते थे. 1990 में जब कश्मीरी पंडितों पर आतंक और उन्हें कश्मीर छोड़ने के लिए विवश किया गया तो उनके गांव के मुस्लिम परिवारों ने उनका काफी सहयोग था. 

देखें लाइव टीवी

3 भाई और 2 बहनों के साथ छोड़ दिया कश्मीर
अशोक कौल ने बताया कि जून 1990 में वे अपने 3 भाई और 2 बहनों के साथ कश्मीर छोड़ कर आ गए उसके बाद जून 2006 तक कोई संपर्क नही हुआ. अशोक बताते हैं कि उनके भाई और बहन अलग-अलग शहरों में रहते हैं, लेकिन 2006 में उनके बचपन का दोस्त अली वेग उन्हें ढूंढते-ढूंढते देहरादून पहुंच गया. उसके बाद वे अपने पैतृक गांव अडोरा गए. अशोक कहते हैं उन्होंने देहरादून में रीता से शादी की जो उत्तराखंड की रहने वाली हैं और जब 2006 में वो अपनी पत्नी को लेकर अपने गांव गए तो गांववालों ने भव्य स्वागत किया.

आर्टिकल 370 हटाने पर पूर्व सैनिकों ने मनाया जश्न, कही ये बड़ी बात

वहीं रीता कौल कहती हैं, जब वे अपने पति के गांव गई तो छोटे बच्चों से लेकर महिलाओं और पुरुषों ने ऐसा स्वागत किया कि उनकी आंखों में आंसू आ गए. अशोक ने बताया कि उनके अपने गांव में करीब 30 बीघा जमीन थी और 3 मकान और एक दुकान थी जिसे आतंकियों ने जला दिया. वे कहते हैं कि अगर सुरक्षा, आदर, सत्कार और रोजगार मिल जाये तो वे कश्मीर दोबारा बसने को तैयार हैं.

हिन्दू पुरुषों को भी मस्जिद में बुलाया गया
कश्मीरी पंडित डॉ विजय बकाया के परिवार की कहानी तो रोंगटे खड़े करने वाली है. 64 वर्षीय डॉ विजय बकाया उस समय श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में नौकरी कर रहे थे. 19 जनवरी की रात की घटना को याद पर डॉ बकाया सिहर उठते हैं. वह बताते हैं कि श्रीनगर के छानपूरा कॉलोनी में रहते थे और मस्जिद में लाउडस्पीकर से कश्मीर की आजादी की आवाजें आ रही थीं जो हिन्दू परिवार थे वे काफी डरे हुए थे. 19 जनवरी की रात को सभी हिन्दू पुरुषों को भी मस्जिद में बुलाया गया और कहा गया कि कश्मीर की आजादी की लड़ाई में उनका साथ दें.

जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल पर चर्चा के दौरान लोकसभा में बोले अमित शाह- PoK और अक्‍साई चिन भी हमारा हिस्‍सा है

डॉक्टर बकाया कहते हैं कि वे रात को काफी डर गए थे. उन्हें अपने परिवार और 3 महीने के छोटे बच्चे की चिंता सता रही थी. 19 जनवरी 1990 की सुबह 6 बजे अपने 4 महीने के बच्चे अपनी पत्नी और माता-पिता के साथ श्रीनगर से अपनी मारूति कार लेकर निकल गए. निकले तो रास्ते में एक आतंकी भी मिला जिसने उनसे लिफ्ट ली. डॉ विजय बकाया की पत्नी डॉ ललिता बकाया ने बताया कि 1990 के दशक में श्रीनगर में हालात बहुत खराब हो चुके थे.

fallback

अनंतनाग के डीएम थे डॉ ललिता के पिता
उस दौर को याद करते हुए डॉ ललिता बताती हैं कि महिलाओं के लिए कश्मीर में स्थिति बहुत खराब थी. उनके पिता डिप्टी कमिश्नर थे जो बाद में अनंतनाग के डीएम भी बने. उनके पैतृक घर को भी आतंकियों ने तहस-नहस कर दिया. डॉ बकाया का परिवार 30 सालों से देहरादून में रह रहा है और उनकी जम्मू कश्मीर में वापस जाने की कोई मतलब नही है क्योंकि अब केवल मन में बुरी यादें हैं.

हम कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने का न विरोध करते हैं और न ही समर्थन : ममता बनर्जी

1990 के दशक में कश्मीरी पण्डितों ने आतंकियों और अलगाववादियों की प्रताड़ना को सहा है. अपना घर परिवार को छोड़ कर देश के अलग शहरों में विस्थापितों का जीवन जी रहे हैं. मोदी सरकार ने कश्मीर से 370 और 35 A को हटाया तो आज उनके जख्मों में जैसे मरहम लग गया. देहरादून में 350 परिवार है रहते हैं जो जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग जिलों से 1990 में विस्थापित हुए थे. कश्मीरी पंडितों ने कहा अब देश का हर नागरिक वहां बस सकेगा.

Trending news