Major Dhyanchand: पहलवानी का शौक, सेना की ब्राह्मण रेजीमेंट में नौकरी, जानें इलाहाबाद का छोरा कैसे बना हॉकी का जादूगर
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Major Dhyanchand: पहलवानी का शौक, सेना की ब्राह्मण रेजीमेंट में नौकरी, जानें इलाहाबाद का छोरा कैसे बना हॉकी का जादूगर

National Sports Day: भारत के सबसे सर्वश्रेष्ठ एथलीट और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की 119वीं जयंती 29 अगस्त 2024 को देश बना रहा है. इसके साथ ही मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत अपना 13वां राष्टीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है. पढ़िए पूरी खबर. 

Major Dhyanchand

Major Dhyanchand: भारत के सबसे 'सर्वश्रेष्ठ एथलीट' और 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद की 119वीं जयंती 29 अगस्त 2024 को देश बना रहा है. इसके साथ ही मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत अपना 13वां राष्टीय खेल दिवस के रूप में मना रहा है. खास बात तो यह है कि दुनिया के इस हॉकी के जादूगर को बचपन में हॉकी से नहीं पहलवानी से प्यार था. 

जीवनी
29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में समेश्वर दत्त सिंह और श्रद्धा सिंह के घर जन्म हुआ था. मात्र 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में शामिल हो गए थे. सेना में रहते हुए ही मेजर ध्यानचंद ने उस समय के ब्राह्मण रेजीमेंट में मेजर बले तिवारी से हॉकी खेलना सीखा था. 13 मई 1926 में भारत के लिए अपना पहला मैच न्यूजीलैंड में खेला. साल 1948 में मेजर ने हॉकी से  संन्यास लेने की घोषणा की थी. आपको बता दें कि ध्यानचंद जी के पास हॉकी खेलने की कोई जन्मजात प्रतिभा नहीं थी. लेकिन अपनी लगन और कड़ी मेहनत से उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी रुतबा मनाया. 

185 मैच में 570 गोल
मेजर ध्यानचंद ने भारत के लिए खेलते हुए कुल 185 मैचों में 570 गोल किए. विश्व में सबसे ज्यादा गोल करने वालों की सूचि में उनका नाम पहले स्थान पर है. इक दौरान उन्होंने औसतन हर मैच में 3 से ज्यादा गोल किए. उनके पीछे दूसरे नंबर पर गोल करने वाले खिलाड़ी के नाम 348 गोल हैं. खेलों में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए भारत सरकार ने 1956 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया था. 

कुछ अनसुने तथ्य
1. मेजर ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था. ध्यानचंद नाम उन्हें सेना में रहते हुए रात के समय हॉकी का अभ्यास करने के कारण 'चांद' नाम मिला. जो बाद में चलकर ध्यानचंद पड़ गया था. हालांकि उन्हें बचपन में हॉकी नहीं पहलवानी करना पसंद था. 
2. 'यह हॉकी का खेल नहीं है, बल्कि जादू है. ध्यानचंद वास्तव में हॉकी के जादूगर हैं'. यह रिपोर्ट 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक के बाद एक समाचार पत्र ने छापी थी. 
3. उनके शानदार हॉकि स्टिक के काम से प्रभावित होकर एक बार नीदरलैंड के अधिकारियों ने उनकी हॉकी स्टिक को यह जांचने के लिए तोड़ दिया था कि कहीं उसमें कोई चुंबक तो नहीं है.
4. 1932 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 से और जापान को 11-1 से हराया. भारत द्वारा किए गए 35 गोलों में से ध्यानचंद और उनके भाई ने 25 गोल का योगदान दिया था. 
5. 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत के पहले मैच के बाद एक जर्मन अखबार ने उनके बारे में लिखा था, 'ओलंपिक परिसर में अब जादू का शो भी होता है.' 
6. भारत सरकार ने साल 2021 में भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान को हॉकी के जादूगर के नाम समर्पित करते हुए उसका नाम मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया. 

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