फेसबुक, गूगल, ट्विटर, एप्पल, अमेज़ान जैसी बड़ी कम्पनियों के डाटा सेन्टर जब भारत में स्थापित होंगे तो बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होना स्वाभाविक है.
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रिटायर्ड जज बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में डाटा सुरक्षा पर बनी 10 सदस्यीय समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को सौंपने के बाद 213 पेज की रिपोर्ट और डाटा सुरक्षा पर कानून के मसौदे को आम जनता के लिए भी जारी कर दिया गया है. सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा परामर्श और कैबिनेट के अनुमोदन के बाद ही संसद द्वारा इस पर कानून बनाये जाने की बात की जा रही है. इन सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी कानून (आईटी एक्ट), आरटीआई कानून और आधार कानून में बड़े बदलाव के साथ 50 अन्य कानूनों में भी संशोधन करना पड़ सकता है. कैम्ब्रिज डाटा लीक जैसे अन्तर्राष्ट्रीय अपराध और साइबर जगत में बच्चों की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मसलों पर कानून के अमल के लिए रेगुलेटरी नेटवर्क को सुदृढ़ करने की चुनौती सरकार के सम्मुख रहेगी. परन्तु समिति की सिफारिशों को यदि जल्द लागू कर दिया जाए तो देश की अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के साथ आईटी क्षेत्र में रोजगार सृजन में भारी बढ़ोत्तरी हो सकती है.
भारत की आईटी कम्पनियों की तरक्की होगी
डिजिटल इंडिया में डाटा का बड़े पैमाने पर सृजन हो रहा है, जिसके इस्तेमाल से विदेशी कम्पनियां बड़े पैमाने पर विस्तार कर रही हैं. समिति की सिफारिशों के अनुसार जनता के संवेदनशील या क्रिटिकल डाटा को भारतीय सर्वर या डाटा सेंटर में रखना अनिवार्य होगा. ऐसा करने के लिए अमेरिका, यूरोप और चीन की कम्पनियों को भारत में अपने कार्यालय और सर्वर्स स्थापित करने पड़ेंगे. सिलिकॉन वैली की कम्पनियां भारत में व्यापार तो बढ़ाना चाहतीं हैं पर यहां पर अपने सर्वर्स नहीं लगाना चाहतीं. भारत में कानून का सख्ती से पालन करने पर विदेशी कम्पनियों के व्यापार पर लगाम लगेगी, जिसके फलस्वरूप भारतीय कम्पनियों और स्टार्ट-अप्स को विकास का सुनहरा मौका मिल सकता है.
भारत में सर्वर्स लगाने से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा
भारतीय कम्पनियों का विस्तार यदि न भी हो पाए तो भी सिफारिशों के लागू होने पर भारत के सर्वर्स में डाटा को रखने के लिए विदेशी कम्पनियां बाध्य होंगी. गोविंदाचार्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अगस्त 2013 में दिये गये फैसले के अनुसार सरकारी ई-मेल के डाटा को पब्लिक रिकार्डस कानून के तहत भारतीय सर्वर्स में रखना जरूरी बना दिया गया था. केन्द्र, राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र में लगभग 3 करोड़ कर्मचारियों को सरकारी ई-मेल देने के लिए एनआईसी नेटवर्क के विस्तार से अनेक युवाओं को रोजगार मिला. इन सिफारिशों पर अमल होने से प्रत्येक सर्वर या डाटा सेन्टर जो स्थापित होगा, उसके फलस्वरूप औसतन एक हजार लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिल सकता है. फेसबुक, गूगल, ट्विटर, एप्पल, अमेज़ान जैसी बड़ी कम्पनियों के डाटा सेन्टर जब भारत में स्थापित होंगे तो बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होना स्वाभाविक है.
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यूरोप की तर्ज पर डाटा सुरक्षा अधिकारियों का तंत्र
यूरोप औद्योगिक क्रांति का अगुवा रहा है परन्तु डिजिटल क्षेत्र में भारत ने बराबरी की छलांग लगाई है. यूरोपीय देशों की तर्ज पर डाटा सुरक्षा के लिए जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रूल) अधिकारियों की नियुक्ति के प्रावधान के लिए, श्रीकृष्णा समिति की सिफारिशें भारत में प्रगतिशील मानी जाएंगी. निजी डाटा, संवेदनशील डाटा, वित्तीय डाटा, स्वास्थ्य डाटा, सरकारी डाटा जैसे अनेक नये क्षेत्रों की पहचान और उन पर नया कानून लागू करने के लिए आईटी, मैनेजमेंट, एकाउंटस और कानून क्षेत्र में अनेक नए रोजगारों का सृजन होना स्वाभाविक है.
डाटा कानून से भारत में बढ़ेगी टैक्स की आमदनी
विदेशी कम्पनियों द्वारा भारत में खरबों डालर का व्यापार करने के बावजूद, बहुत छोटे हिस्से पर ही टैक्स दिया जाता है. सर्वर लगाने से, विदेशी कम्पनियां भारत में इन्कम टैक्स कानून के दायरे में आ जाएंगी. बिजनेस वर्ल्ड की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार गूगल अकेले की भारत में आमदनी 4.29 लाख करोड़ की थी. जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार गूगल की भारतीय कम्पनी द्वारा सिर्फ 6000 करोड़ की आमदनी पर ही टैक्स दिया जाता था. गूगल जैसी कम्पनियों द्वारा भारतीय डाटा के कारोबार से 20 लाख करोड़ से ज्यादा की आमदनी हो रही है. इन कानूनों को लागू करने के बाद सरकार यदि विदेशी कम्पनियों से टैक्स वसूली करे तो जनता की प्राइवेसी सुनिश्चित होने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत सुधर सकती है.
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एससी/एसटी, तीन तलाक और बच्चियों के रेप मामले में मृत्युदण्ड के कानून की पहल से यह स्पष्ट है, कि सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति से लालफीता शाही पर लगाम लगाई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों के फैसले के बाद श्रीकृष्णा समिति ने सभी पक्षों के साथ मशवरे के बाद ही अपनी रिपोर्ट सौंपी है. 2019 के आम चुनावों के पहले इन सिफारिशों को कानून मे तब्दील करने से डिजिटल इंडिया में गांवों की बदहाली खत्म होने के साथ पूरे देश की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकती हैं.
(लेखक सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)