What is CAA: राम मंदिर के बाद अब क्या 'तुरुप का इक्का' चलने वाली है BJP, ममता यूं ही नहीं बौखलाईं
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What is CAA: राम मंदिर के बाद अब क्या 'तुरुप का इक्का' चलने वाली है BJP, ममता यूं ही नहीं बौखलाईं

Controversies on CAA-NRC: नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA साल 2019 में संसद से पास हुआ था. यानी 5 साल पहले. लेकिन अभी तक यह लागू नहीं हो पाया है. इसे लेकर देशभर में कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन हुए थे. 

What is CAA: राम मंदिर के बाद अब क्या 'तुरुप का इक्का' चलने वाली है BJP, ममता यूं ही नहीं बौखलाईं

CAA Protests: देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पर बहस एक बार फिर तेज हो गई है. केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने एक जनसभा में कहा कि एक हफ्ते में बंगाल समेत पूरे देश में CAA लागू हो जाएगा. बंगाल बीजेपी के नेता सुवेंदु अधिकारी ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा, गृह मंत्री अमित शाह ने नवंबर में ही बताया था कि सीएए जल्द लागू होगा. चुनाव में अब और कुछ ही महीने बाकी हैं. उससे पहले हमें उम्मीद है कि फरवरी में ही CAA लागू हो जाएगा. यानी राम मंदिर के बाद अब बीजेपी एक और बड़ा दांव खेलने जा रही है. खैर तस्वीर तो आने वाले दिनों में साफ हो ही जाएगी लेकिन उससे पहले सीएए को लेकर बयानबाजियों का दौर तेज हो गया है.

ममता बोलीं-मैं बाघिन की तरह रक्षा करूंगी

बनर्जी ने आरोप लगाया कि केंद्र राजनीति करने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले सीएए का मुद्दा उठा रहा है. उन्होंने कहा, 'बीजेपी ने  फिर से सीएए के बारे में बोलना शुरू कर दिया है. यह राजनीति के अलावा कुछ नहीं है. हमने सभी को नागरिकता दी है (और) उन्हें (सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को) सब कुछ मिल रहा है. वे नागरिक हैं, इसलिए उन्हें वोट देने का अधिकार है.' 

टीएमसी सुप्रीमो ने कहा, 'बीएसएफ लोगों पर अत्याचार कर रही है... वह सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को अलग पहचान पत्र जारी करने की कोशिश कर रही है. ये कार्ड कभी न लें. अगर वे आपसे पूछें, तो उन्हें बताएं कि आपके पास आधार और राशन कार्ड हैं और किसी अन्य कार्ड की जरूरत नहीं है. अगर आप उनके कार्ड लेते हैं, तो आप एनआरसी के जाल में फंस जाएंगे और (वे) आपको (नागरिक सूची) से बाहर कर देंगे. लेकिन डरिये नहीं... मैं आपकी रक्षा के लिए बाघिन की तरह हमेशा मौजूद हूं.'

2019 में CAA हुआ था संसद से पास 

नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA साल 2019 में संसद से पास हुआ था. यानी 5 साल पहले. लेकिन अभी तक यह लागू नहीं हो पाया है. इसे लेकर देशभर में कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन हुए थे. इसके विपक्ष में जो लोग हैं, उनका कहना है कि यह कानून देश को धर्म के आधार पर बांटता है. जबकि सरकार ने कहा कि यह सिर्फ नागरिकता देने वाला कानून है. सीएए के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिजिटन्स ने आग में घी जैसा काम किया. 

सीएए के लागू होने के बाद भारत के तीन मुस्लिम बाहुल्य पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले ऐसे लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो दिसंबर 2014 तक प्रताड़ना के कारण भारत आए. इनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. मुस्लिमों को इसमें शामिल नहीं किया गया है. 

राज्यसभा में अटका था बिल

नागरिकता संशोधन बिल (CAB) को साल 2016 में लोकसभा में रखा गया और वहां से इसे हरी झंडी मिल गई. लेकिन इसकी राह रुकी राज्यसभा में. इसके बाद बिल को संसदीय समिति के पास भेजा गया. इतने में साल 2019 का लोकसभा चुनाव आ गया. मोदी सरकार पहले से ज्यादा सीटें हासिल करके दोबारा सत्ता में आई. मोदी सरकार ने दिसंबर 2019 में एक बार फिर इस बिल को लोकसभा के पटल पर रखा और दोनों ही सदनों से यह पास हो गया. तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी 10 जनवरी 2020 को इसे मंजूरी दे दी. मगर फिर कोरोना ने दस्तक दी और यह लटक गया. साल 2020 से ही सीएए पर मोदी सरकार विस्तार यानी एक्सटेंशन ले रही है. 

किसे मिलेगी नागरिकता?

यह फैसला केंद्र सरकार के हाथों में है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से जो सिख, हिंदू, बौद्ध, जैन और पारसी शरणार्थी आए हैं, उनको भारत की सिटिजनशिप दी जाएगी. लेकिन नागरिकता उन लोगों को ही दी जाएगी, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में रह रहे हैं. लेकिन वे लोग प्रवासी माने जाएंगे, जो या तो बिना पासपोर्ट या वीजा के बिना आ गए या फिर ठीक दस्तावेजों के साथ भारत तो आए लेकिन तय वक्त पर गए नहीं और यहीं ठहर गए. 

कैसे मिलेगी सिटिजनशिप?

मोदी सरकार ने इसकी प्रक्रिया ऑनलाइन रखी है. इसके लिए वेबसाइट भी बनाई गई है, जिस पर इन शरणार्थियों को तमाम जानकारियां देनी होंगी. जैसे वे किस वर्ष में भारत में घुसे. हालांकि इन लोगों से किसी तरह का डॉक्युमेंट नहीं मांगा जाएगा. बाद में गृह मंत्रालय इनके आवेदन की जांच करके फैसला लेगा. 

क्या है विपक्ष के आरोप?

सीएए-एनआरसी का विरोध करने वालों का तर्क है कि इस कानून में मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया जा रहा है.  तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों में जो अल्पसंख्यक रह रहे हैं, उनको बिना किसी डॉक्युमेंट के ही नागरिकता देने का प्रावधान है लेकिन मुस्लिमों को इसमें दरकिनार किया जा रहा है. विरोधियों ने इसे संविधान के आर्टिकल 14 यानी समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया है.

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