पंजाब में AAP की प्रचंड जीत के क्या हैं मायने? कांग्रेस को दलित CM बनाने पर भी नहीं मिले वोट
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पंजाब में AAP की प्रचंड जीत के क्या हैं मायने? कांग्रेस को दलित CM बनाने पर भी नहीं मिले वोट

Punjab Election Result 2022: पंजाब में लगभग सभी बड़े नेता बड़ी-बड़ी SUV गाड़ियों में चलते हैं. लेकिन इन नेताओं को स्कूटी चलाने वाले उम्मीदवारों ने आसानी से हरा दिया.

पंजाब में AAP की प्रचंड जीत के क्या हैं मायने? कांग्रेस को दलित CM बनाने पर भी नहीं मिले वोट

नई दिल्ली: पंजाब की जीत ने अरविंद केजरीवाल को आज से राष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा नेता बना दिया है, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के बाद देश की दूसरी ऐसी पार्टी बन गई है, जिसने पार्टी के गठन के 10 वर्षों के अन्दर दो प्रदेशों में अपनी सरकारें बना ली हैं, ये कारनामा बीजेपी भी अपनी स्थापना के 10 वर्षों में नहीं कर पाई थी, इसलिए पंजाब की जीत से ये बात तो स्पष्ट है कि अब आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी का रूप ले रही है और अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़े नेता के तौर पर उभर रहे हैं, इस जीत से अरविंद केजरीवाल की महत्वकांक्षाएं बढ़ेंगी और इन महत्वकांक्षाओं को लेकर उनका सबसे बड़ा मुकाबला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से होगा, आज अरविंद केजरीवाल ने अपनी अपकमिंग इनिंग को लेकर क्या नए संकेत दिए है, सबसे पहले आप ये जान लीजिए.

  1. पंजाब में कांग्रेस की बुरी हार
  2. AAP ने पंजाब में रचा इतिहास
  3. धुरंधरों को मिली बुरी पटखनी

पंजाब में बड़े-बड़े धुरंधर फेल

इन चुनावों में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने राजनीति के बड़े-बड़े महाराजाओं को धाराशायी कर दिया. पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रकाश सिंह बादल लंबी सीट से चुनाव हार गए, जबकि इस सीट को अकाली दल का गढ़ माना जाता था. प्रकाश सिंह बादल के पुत्र सुखबीर सिंह बादल जलालाबाद से चुनाव हार गए और आज लोग ये कह रहे हैं कि पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान बादल गरजे तो बहुत, लेकिन बरसे नहीं. पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी अपनी दोनों सीटों से चुनाव हार गए. जबकि नवजोत सिंह सिद्धू भी अमृतसर ईस्ट सीट से हार गए, यानी सिद्धू कांग्रेस के लिए Titanic जहाज पर सवार उन Musicians की तरह साबित हुए, जो ना तो खुद को बचा पाए  और ना ही अपनी पार्टी के जहाज को. सिद्धू के अलावा बिक्रम सिंह मजीठिया, कैप्टन अमरिंदर सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और कांग्रेस नेता हरीश रावत भी चुनाव हार गए हैं, ये सारे बड़े-बड़े नेता थे, जो खुद को राजनीति का महाराजा मानते थे, लेकिन इन सब नेताओं की बुरी तरह हार हई.

मोबाइल रिपेयर करने वाले ने चन्नी को हराया

पंजाब में लगभग सभी बड़े नेता बड़ी-बड़ी SUV गाड़ियों में चलते हैं. लेकिन इन नेताओं को स्कूटी चलाने वाले उम्मीदवारों ने आसानी से हरा दिया. सिद्धू को लगभग सात हजार वोटों से हराने वाली आम आदमी पार्टी की नेता जीवन ज्योत कौर स्कूटी पर चुनाव प्रचार करती थीं, यानी एक तरफ तो उनकी स्कूटी थी और दूसरी तरफ सिद्धू की SUV गाड़ी, लेकिन सिद्धू उनसे हार गए. सिद्धू के अलावा इस सीट पर उनका मुकाबला, अकाली दल के बिक्रम सिंह मजीठिया से भी था. जिन्होंने बताया है कि उनके पास 11 करोड़ रुपये की सम्पत्ति है और SUV गाड़ी भी है. लेकिन जीवन ज्योत कौर ने इन सभी बड़े नेताओं को हरा दिया. इसी तरह पंजाब की भदौर सीट से मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को हराने वाले आम आदमी पार्टी के नेता लाभ सिंह, मोबाइल फोन रिपेयर करने वाली एक छोटी से दुकान पर काम करते थे. लाभ सिंह के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वो चुनाव प्रचार के दौरान कार्यकर्ताओं की बाइक में पेट्रोल डलवा पाते, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने चरणजीत सिह चन्नी को हरा दिया.

हार के बावजूद तय नहीं होती नेताओं की जवाबदेही

एक बड़ा सवाल इन नेताओं की Accountability यानी जवाबदेही को लेकर भी है. आप जिस भी कम्पनी में काम करते होंगे या आपका कोई कारोबार होगा, अगर उसमें आप बार-बार फेल होते हैं और अच्छा प्रदर्शन नहीं करते तो आपकी ग्रोथ रुक जाती है. आपका वेतन नहीं बढ़ाया जाता और कुछ मामलों में कम्पनियां खराब प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को नौकरी से भी निकाल देती हैं. ये हर जगह होता है, हमारे साथ भी होता है. लेकिन हमारे देश की राजनीति ही एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें हार के बावजूद नेताओं की कोई जवाबदेही तय नहीं होती. पंजाब में कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी, लेकिन जब पार्टी हार गई तो उनकी कोई जवाबदेही नहीं है.

राहुल गांधी ने ट्वीट कर हार स्वीकारी

राहुल गांधी ने आज ट्वीट करके इन चुनावी नतीजों को स्वीकार करके इनसे सीख लेने की बात कही है. लेकिन उन्होंने कहीं ये नहीं लिखा है कि वो इस हार के लिए खुद को दोषी मानते हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में लड़ा गया, लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन 2017 के मुकाबले और खराब रहा. 2017 में पार्टी 7 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार वो दो सीटों पर सिमट कर रह गई. इसके अलावा 2017 के मुकाबले कांग्रेस का वोट शेयर लगभग 6 प्रतिशत से ढाई प्रतिशत पर आ गया. इस बार कांग्रेस रायबरेली और अमेठी में एक भी सीट नहीं जीत पाई. पिछली बार उसने रायबरेली में दो सीटें जीती थी, अब सवाल है कि प्रियंका गांधी वाड्रा इस हार की जिम्मेदारी लेकर कांग्रेस में पार्टी महासचिव के पद से इस्तीफा देंगी?

मायावती का खत्म होता वजूद?

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आज तक समाजवादी पार्टी को एक भी चुनाव नहीं जिता पाए हैं. 2012 में जब वो मुख्यमंत्री बने थे, उस समय वो चुनाव उनके पिता मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर लड़ा गया था. लेकिन इसके बाद अखिलेश यादव ने जितने भी चुनाव लड़े, उनमें समाजवादी पार्टी को कभी कामयाबी नहीं मिली. इस बार भी वो अपनी पार्टी को जिता नहीं पाए. इसलिए वही सवाल हमारा उनसे भी है कि क्या वो इस हार की जिम्मेदारी लेकर पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देंगे? मायावती की बीएसपी पार्टी को तो पूरे उत्तर प्रदेश में केवल एक सीट मिली है, लेकिन क्या बीएसपी के नेता मायावती से उनका इस्तीफा मांगने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

सिद्धू ने हार के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं माना

सिद्धू पंजाब में कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लेकिन वो खुद भी चुनाव हार गए और पार्टी को भी चुनाव हरवा दिया. आज अगर सिद्धू भारतीय क्रिकेट टीम में खेल रहे होते और दो मैचों में लगातार जीरो पर आउट हो गए होते तो, उन्हें टीम से बाहर कर दिया जाता. लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं है, सिद्धू ने भी बाकी नेताओं की तरह हार को स्वीकार किया है. लेकिन उसके लिए खुद को जिम्मेदार नहीं माना है. इसी तरह क्या अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल आज हार की जिम्मेदारी लेंगे, सच ये है कि... ये पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह चलाई जाती हैं. ये इनके घर की पार्टियां हैं तो ये इन्हें क्यों निकालेंगी? केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर कहा कि वो पार्टी में जान फूंकने आई थी लेकिन पार्टी फूंककर चली गई.

कांग्रेस का ये दांव नहीं चला

पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत और कांग्रेस की हार से ये बात भी स्पष्ट हुई है कि केवल दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने से चुनाव में दलित वोट नहीं मिलते. गांधी परिवार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर चरणजीत सिंह चन्नी को इसलिए मुख्यमंत्री बनाया क्योंकि वो दलित समुदाय से आते हैं. लेकिन कांग्रेस का ये दांव नहीं चला, और चरणजीत सिंह चन्नी पार्टी को जीत नहीं दिला पाए और इसका सबसे ज्यादा फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया.

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