Viral News: आज के समय में बेशक महिलाएं हर वो काम कर रही हैं जो पुरुष करते हैं, उन्हें बराबरी का हक भी मिल रहा है, लेकिन अब भी कई जगह पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए जिंदगी आसान नहीं है. तमिलनाडू की एक महिला ने वही भेदभाव देखा, हालांकि वह इससे टूटी नहीं, बल्कि मजबूती से खड़ी होकर इसका मुकाबला किया. 30 साल से वह महिला पुरुष वाली जिंदगी जी रही है.
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Woman Living as Man: अगर मन में कुछ करने की जिद और आत्मविश्वास हो ता बड़ी से बड़ी लड़ाई जीती जा सकती है, किसी भी मुसीबत का सामना किया जा सकता है. कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है तमिलनाडु की रहने वाली एस पेटचियाम्मल ( S Petchiammal) ने. पेटचियाम्मल का संघर्ष और काम साधारण नहीं है और इसे शायद ही हर कोई कर पाए. आइए जानते हैं क्या पेटचियाम्मल का संघर्ष. दरअसल, 30 साल पहले पेटचियाम्मल के पति की मौत हो गई थी. अपनी और बेटी की जिंदगी को बेहतर बनाने की हसरत लिए उन्होंने अपनी पहचान बदलकर रहना शुरू किया. वह 30 साल से ऐसा कर रही हैं. उन्होंने दुनिया के सामने अपना जेंडर भी पूरी तरह बदल लिया. वह पेटचियाम्मल से मुथु बन गईं. उनके पति की मौत शादी के सिर्फ 15 दिन बाद ही हो गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, पेटचियाम्मल तमिलनाडू के कतुनायाकनपट्टी गांव की रहने वाली हैं. उन्होंने महिला से पुरुष वाली पहचान बनाकर पुरुष वाले काम ही किए. वह कहती हैं कि पति की मौत के बाद उन्होंने मजदूरी की और चाय की दुकानों पर भी काम किया, लेकिन इन सब जगहों पर शोषण हुआ. इन सबसे वह काफी टूट गईं, हालांकि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अपनी पहचान बदलने का फैसला किया. वह तिर्चेंदुर मुरुगन मंदिर में पहुंचीं और अपने बाल कटा लिए. इसके बाद उन्होंने लड़कों की तरह शर्ट और लुंगी पहनना शुरू कर दिया. इसी रूप में उन्होंने हर वह काम किया जो पुरुष करता है. उन्होंने पेंटर, टी मास्टर, पराठा मास्टर और 100 दिन रोजगार स्कीम वाला काम भी किया. अभी तक किसी को पता नहीं चला है कि वह मूल रूप से औरत हैं. वह बताती हैं कि उनकी बेटी और कुछ करीबी रिश्तेदारों को छोड़कर यह बात किसी को भी नहीं पता है कि वह मुथु नहीं पेटचियाम्मल हैं.
पेटचियाम्मल ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी और बैंक अकाउंट के अलावा अन्य सरकारी कागजों में भी अपना नाम मुथु ही लिखवा रखा है. वह कागजों में भी पुरुष की पहचान के साथ जी रही हैं. पेटचियाम्मल की बेटी की शादी भी हो चुकी है, लेकिन वह अब अपनी असली स्वरूप यानी औरत की जिंदगी जीने को तैयार नहीं हैं. वह अपनी मर्द वाली पहचान ही कायम रखना चाहती हैं. वह कहती हैं कि पुरुष प्रधान इस समाज में अकेली औरत के लिए जीना कितना मुश्किल है उसको वह झेल चुकी हैं. इसलिए अब इसी पहचान के साथ जीना है.