अयप्पा मंदिर में प्रवेश के लिए इस खास उम्र तक ‘इंतजार’ करेंगी हिंदू संगठनों की महिलाएं
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अयप्पा मंदिर में प्रवेश के लिए इस खास उम्र तक ‘इंतजार’ करेंगी हिंदू संगठनों की महिलाएं

‘भारत हिन्दू मुन्नानी’ की कार्यकर्ताओं ने श्री गंगादीस्वरा मंदिर में बैठक की और कहा कि वे 50 साल की आयु और मासिक धर्म की उम्र पार होने तक मंदिर नहीं जाएंगी. 

सबरीमाला एक प्रमुख हिंदू मंदिर है जहां प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं.

चेन्नई: हिंदू संगठनों की महिला कार्यकर्ताओं ने शनिवार को दीप जलाकर तमिलनाडु के मंदिरों में पूजा-अर्चना की और कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के प्रवेश की अनुमति संबंधी फैसले के बावजूद सबरीमला के भगवान अयप्पा मंदिर में जाने के लिए 50 साल की उम्र पार करने तक का ‘इंतजार’ करेंगी. ‘भारत हिन्दू मुन्नानी’ की कार्यकर्ताओं ने श्री गंगादीस्वरा मंदिर में बैठक की और कहा कि वे 50 साल की आयु और मासिक धर्म की उम्र पार होने तक मंदिर नहीं जाएंगी.

सबरीमाला एक प्रमुख हिंदू मंदिर है जहां प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं. पहाड़ी की चोटी पर स्थित यह मंदिर साल में चार महीने से कुछ अधिक वक्त ही श्रृद्धालुओं के लिये खुलता है और यहां तक पहुंचने का रास्ता जंगल से गुजरता है जिसमें पंपा नदी के आधार शिविर से पांच किलोमीटर की दुरूह चढ़ाई भी शामिल है.

प्रार्थनासभा में शामिल एक प्रतिभागी ने कहा, "हमारे लिए प्राचीन परंपरा हमेशा सही होती है, फिर चाहे कोई अदालत इसका समर्थन करे या नहीं करे." हिंदू मक्कल कातची प्रमुख अर्जुन संपथ ने कहा कि उनके संगठन ने कोयम्बटूर, कुडालोर और तिरुपुर सहित कई स्थानों के कई मंदिरों में प्रार्थना सभाएं कीं. उन्होंने कहा, "ये प्रार्थना बैठक हमारी प्रथाओं में हमारे विश्वास की फिर से पुष्टि करने के लिए है. ऐसी बैठकों में, महिलाएं केवल हमारी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंदिर में दर्शन के लिए आएंगी." 
 
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश पर हटाई है पाबंदी
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में केरल के सबरीमाला में स्थित अय्यप्पा स्वामी मंदिर में एक खास आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी शुक्रवार को हटा दी है और मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति प्रदान कर दी। न्यायालय ने कहा कि एक आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाने वाली सदियों पुरानी यह हिन्दू परंपरा गैरकानूनी और असंवैधानिक है. इस मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाले इस निर्णय का महिला कार्यकर्ताओं ने स्वागत करते हुए कहा कि यह लैंगिक समानता की जीत है जबकि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि यह फैसला हिन्दुत्व को कहीं अधिक समावेशी बनाएगा. इस मंदिर में 10 से 50 साल आयुवर्ग की राजस्वला महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. 

पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत से सुनाया था फैसला
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत के फैसले में कहा कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश से रोकना लैंगिक आधार पर भेदभाव है और यह परिपाटी हिन्दू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सबरीमाला मंदिर द्वारा लगाये गये प्रतिबंध को अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं माना जा सकता. साथ ही उन्होंने कहा कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है. 

धार्मिक परंपराओं की न्यायिक समीक्षा नहीं होनी चाहिए: जस्टिस इंदु मल्होत्रा
जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस डीवाई. चन्द्रचूड़ ने प्रधान न्यायाधीश तथा जस्टिस एएम खानविलकर के फैसले से सहमति व्यक्त की जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने बहुमत के निर्णय से असहमति व्यक्त करते हुए अलग फैसला सुनाया. संविधान पीठ में एक मात्र महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने कहा कि देश में पंथनिरपेक्ष माहौल बनाए रखने के लिए गहराई तक धार्मिक आस्थाओं से जुड़े विषयों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए. न्यायमूर्ति मल्होत्रा का मानना था कि ‘सती’ जैसी सामाजिक कुरीतियों से इतर यह तय करना अदालत का काम नहीं है कि कौन सी धार्मिक परंपराएं खत्म की जाएं. जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि समानता के अधिकार का भगवान अय्यप्पा के श्रद्धालुओं के पूजा करने के अधिकार के साथ टकराव हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस मामले में मुद्दा सिर्फ सबरीमाला तक सीमित नहीं है. इसका अन्य धर्म स्थलों पर भी दूरगामी प्रभाव होगा. 

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