Zee जानकारी : एग्जिट पोल में पंजाब छोड़ सभी राज्यों में कमल खिलने के संकेत
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Zee जानकारी : एग्जिट पोल में पंजाब छोड़ सभी राज्यों में कमल खिलने के संकेत

Zee जानकारी : एग्जिट पोल में पंजाब छोड़ सभी राज्यों में कमल खिलने के संकेत

शनिवार यानी 11 मार्च को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे, लेकिन उससे पहले ही गुरुवार को पूरे देश की नज़रें तमाम News Channels पर टिकी हुई थीं। आपको कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि DNA में हम आपको महा Exit Poll दिखा रहे हैं। आप इसे Poll of Polls भी कह सकते हैं। हालांकि ये नतीजे नहीं हैं और Exit Polls गलत भी हो सकते हैं। लेकिन आज शाम से इन Exit Polls ने देश का माहौल ऐसा कर दिया है जैसा T20 के Matches के दौरान होता है। आप इसे एक तरह का Political Entertainment भी कह सकते हैं।

इन चुनावों में जिस राज्य पर सबसे ज्यादा नज़रें टिकी हैं, वो है उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश के महा Exit Poll के मुताबिक वहां बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बन सकती है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 219 सीटें मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन सिर्फ 122 सीटों पर सिमट सकता है। 

महा Exit Poll के मुताबिक उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बन सकती हैं। बीजेपी को उत्तराखंड में 70 में से 43 सीटें मिल सकती हैं। यानी उत्तराखंड में कांग्रेस हार रही है। वहीं पंजाब में अकाली दल और बीजेपी के गठबंधन पर जनता ने झाड़ू मार दी है.. यानी सफाई कर दी है। दोनों पार्टियां मिलकर सिर्फ 12 सीटें जीत सकती हैं। पंजाब में कांग्रेस सरकार बनाने के सबसे नज़दीक नज़र आ रही है। 

इसके अलावा मणिपुर में पहली बार बीजेपी की सरकार बन सकती है। मणिपुर में पिछले 15 वर्षों से कांग्रेस की सरकार है, यानी इस बार कांग्रेस मणिपुर में सत्ता से बाहर हो सकती है और इस तरह से North East के दूसरे राज्यों में बीजेपी की Entry हो सकती है। इससे पहले असम में पिछले साल ही बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। गोवा में भी बीजेपी एक बार फिर सरकार बना सकती है। 

यानी महा Exit Poll के नतीजे बताते हैं कि 5 में से 4 राज्यों में बीजेपी की स्थिति बेहतर हो सकती है। महा Exit Poll के नतीजों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ी जीत मिल सकती है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें हैं, लेकिन महा Exit Poll 402 सीटों का है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की एक विधानसभा सीट पर आज ही चुनाव हुआ है। महा Exit Poll के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 402 में से 219 सीटें मिल सकती हैं। वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस  के गठबंधन को 122 सीटें मिल सकती है। वहीं मायावती की पार्टी BSP को सिर्फ 54 सीटें मिलने का अनुमान है। 

आपको बता दें कि जनसंख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा राज्य है। यहां से लोकसभा की 80 सीटें हैं। इस लिहाज़ से उत्तरप्रदेश में बीजेपी की जीत देश की राजनीति में बड़े फेरबदल कर सकती है। इस बीच चुनावी नतीजों से पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का एक महत्वपूर्ण बयान आया है। अखिलेश यादव ने एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि बीजेपी को रोकने के लिए उनकी पार्टी कुछ भी करेगी। 

अखिलेश यादव से ये सवाल पूछा गया था कि अगर उनकी पार्टी को और उनके गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है, तो क्या वो मायावती का समर्थन लेंगे? इस सवाल पर अखिलेश यादव ने गोलमोल जवाब दिया, लेकिन साथ ही ये भी कहा कि वो नहीं चाहते हैं, कि उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगे और फिर केन्द्र सरकार रिमोट कंट्रोल से उत्तर प्रदेश की सरकार चलाए। यानी नतीजों से पहले ही अखिलेश यादव कुछ राजनीतिक संकेत दे रहे हैं। 

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने मायावती के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा, और मायावती ने भी समाजवादी पार्टी या कांग्रेस पर कोई बड़ा ज़ुबानी हमला नहीं किया। उनके निशाने पर भी नरेन्द्र मोदी और बीजेपी ही रही है। हालांकि अब से कुछ दिन पहले जब मैंने खुद अखिलेश यादव का इंटरव्यू किया था, तब उन्होंने बहुत ही आत्मविश्वास के साथ ये कहा था कि वो पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रहे हैं। लेकिन अब लगता है कि उनका ये Stand बदल रहा है। 

फिल्म रिलीज़ होने से पहले हर हीरो यही दावा करता है कि उसकी फिल्म हिट होगी.. इसी तरह नेता भी चुनाव से पहले ऐसे ही दावे करते हैं। अब से कुछ दिन पहले जब मैंने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का इंटरव्यू किया था, तब वो भी बड़े आत्मविश्वास में नज़र आ रहे थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा किया था। लेकिन सच ये है कि अखिलेश यादव और अमित शाह दोनों उत्तर प्रदेश में एक साथ नहीं जीत सकते.. दोनों में से एक को हारना होगा और इनमें से कौन हारेगा.. इसके बारे में आपको 11 मार्च को पता चलेगा।

महा Exit Poll से पंजाब के लिए एक साफ संकेत मिला है और वो ये कि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल हार रहा है। हालांकि पंजाब में ये अनुमान चुनावों से पहले ही लगाया जा रहा था। लेकिन महा Exit Poll के मुताबिक पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को 117 सीटों में से सिर्फ 12 सीटें मिलने का अनुमान है। जबकि अभी मौजूदा विधानसभा में दोनों के पास कुल मिलाकर 68 सीटें थीं। यानी पंजाब में बीजेपी और अकाली दल गठबंधन की बड़ी हार तय मानी जा रही है। और ये साफ लग रहा है कि पिछले 10 वर्षों से पंजाब की सत्ता पर काबिज़ अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन इस बार Out हो जाएगा। 

महा Exit Poll के मुताबिक पंजाब में कांग्रेस सरकार बनाने के सबसे नज़दीक दिख रही है। सरकार बनाने के लिए 59 सीटों की ज़रूरत है। कांग्रेस को 54 सीटें मिलती हुई दिख रही हैं। वहीं पहली बार पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा हो सकता है। लेकिन आम आदमी पार्टी का सरकार बनाना मुश्किल है। महा Exit Poll के नतीजे बताते हैं कि आम आदमी पार्टी को करीब 50 सीटें मिल सकती हैं।

महा Exit Poll के मुताबिक उत्तराखंड में BJP की पूर्ण बहुमत की सरकार बन सकती है। उत्तराखंड में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं, जिनमें से BJP को 43 सीटें मिल सकती हैं। वहीं कांग्रेस सिर्फ 23 सीटों पर सिमट सकती है। महा Exit Poll के मुताबिक उत्तराखंड में 4 सीटें अन्य के खाते में जा सकती हैं। 

महा Exit Poll के नतीजों से ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में कांग्रेस को आपसी फूट की वजह से हार झेलनी पड़ेगी। 2016 में उत्तराखंड कांग्रेस में बड़ी बगावत हो गई थी, तब कांग्रेस के 9 बड़े नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी। बाद में कांग्रेस के ये नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे। बीजेपी ने इस बार के चुनावों में कांग्रेस के इन बागी नेताओं को टिकट दिया था। और महा Exit Poll से ऐसा लगता है कि इसका फायदा बीजेपी को मिला है। 
 
उत्तराखंड में पिछली बार Hung Assembly बनी थी। किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। लेकिन कांग्रेस ने तीन निर्दलीय विधायकों और BSP के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। अब महा Exit Poll में उत्तराखंड में BJP की सरकार बन सकती है। यानी 5 वर्षों के बाद उत्तराखंड की सत्ता में BJP की वापसी हो सकती है।

गोवा और मणिपुर में भी बीजेपी की सरकार बन सकती है। मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटें हैं, और महा Exit Poll के नतीजे बताते हैं कि मणिपुर में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। बीजेपी को 30 सीटें मिलने का अनुमान है। वहीं पिछले 15 वर्षों से सरकार चला रही कांग्रेस को 20 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। जबकि अन्य को 10 सीटें मिल सकती हैं। 

बात गोवा की करें तो गोवा में विधानसभा की 40 सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी को 21 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। कांग्रेस को 11, आम आदमी पार्टी को 1 और अन्य को 7 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। 5 राज्यों के चुनावी नतीजे शनिवार को आएंगे। सब जानना चाहते हैं कि किस पार्टी के चेहरे पर सत्ता का गुलाल लगेगा। 

राजनीति की पहेली को सुलझाना आसान काम नहीं है। लेकिन हमारी टीम ने रिसर्च के आधार पर ये पता लगाने की कोशिश की है, कि हार और जीत के बाद किस नेता की हैसियत क्या होगी। सबसे पहले हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करेंगे। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री तो है हीं..वो बीजेपी का सबसे बड़ा राजनीतिक चेहरा भी हैं। अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश जीत जाती है। गोवा में सरकार बचा लेती है और उत्तराखंड और मणिपुर में भी सत्ता में आ जाती है, तो नरेंद्र मोदी राजनीति की दुनिया के सुपरमैन बन जाएंगे। और उनके साथ साथ अमित शाह का कद भी बढ़ जाएगा। 

बीजेपी को जीत से दूर करने के लिए कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और यहां तक कि आम आदमी पार्टी एक दूसरे से भी हाथ मिला सकते हैं। ऐसे में मोदी की जीत में एक बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश होगा। सबसे बड़ी बात ये होगी कि राज्यसभा में बीजेपी की ताकत काफी बढ़ जाएगी। बीजेपी को महत्वपूर्ण  बिल पास कराने के लिए कम विरोध झेलना पड़ेगा। अभी बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। लेकिन अगर बीजेपी को यूपी में बड़े अंतर से जीत मिलती है तो राज्यसभा में बीजेपी के सांसदों की संख्या बढ़ जाएगी। इसी तरह बीजेपी को जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में भी फायदा होगा। 

राष्ट्रपति का चुनाव 4 हज़ार 896 जनप्रतिनिधि मिलकर करते हैं। इनमें से 776 सांसद लोकसभा और राज्यसभा से होते हैं। जबकि देश के अलग-अलग राज्यों के 4 हज़ार 120 विधायक भी राष्ट्रपति चुनावों में वोटिंग करते हैं। इन विधायकों के वोटों का मूल्य राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होता है। इसलिए बीजेपी के जितने विधायक इन चुनावों में जीत दर्ज करेंगे उतना ही फायदा बीजेपी को होगा। और इनमें उत्तर प्रदेश के विधायकों का सबसे बड़ा रोल होगा, क्योंकि जनसंख्या के हिसाब से उत्तरप्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है।

5 राज्यों के चुनावों में अगर बीजेपी को जीत मिलती है। तो इससे Brand मोदी को भी काफी मज़बूती मिलेगी। इसका सीधा सीधा मतलब ये भी होगा कि जनता ने सरकार के सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के फैसले का समर्थन किया है। ऐसे में विपक्षी नेताओं को ये साफ संदेश मिलेगा कि देशहित के फैसलों पर सवाल उठाना जनता को पसंद नहीं है।

बीजेपी के प्रदर्शन का असर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति की दुनिया पर भी पड़ेगा। आपको सुनकर लग रहा होगा कि भला भारत के 5 राज्यों के चुनावों का अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से क्या लेना देना है। तो हम आपको बता दें कि इन चुनावों पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की भी पैनी नज़र है। क्योंकि अगर नतीजे बीजेपी के पक्ष में रहते हैं तो पूरी दुनिया में  नरेंद्र मोदी का साख बढ़ेगी। भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर उनका सम्मान बढ़ेगा। 

यहां आपको ये नहीं भूलना चाहिए, अगर अकेले उत्तर प्रदेश की जनसंख्या की तुलना दुनिया के देशों से की जाए तो उत्तर प्रदेश आबादी के हिसाब से दुनिया का छठा सबसे बड़ा देश होता। वैसे अगर सभी 5 राज्यों की जनसंख्या जोड़ ली जाए तो ये 25 करोड़ हो जाती है।यानी इन चुनावों के नतीजे किसी बड़े देश के चुनावी नतीजों जितने ही महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन नतीजों का असर कूटनीति की दुनिया पर भी ज़रूर पड़ेगा।

अब आपको ये भी समझना चाहिए कि अगर बीजेपी इन चुनावों में हारती है..तो फिर प्रधानमंत्री मोदी की छवि पर इसका क्या असर होगा। पहली बात ये समझनी होगी कि इन चुनावी नतीजों का असर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं पड़ेगा। यानी वर्ष 2019 तक मोदी ही देश के प्रधानमंत्री रहेंगे। लेकिन उनकी राजनीतिक चमक ज़रूर कमज़ोर हो जाएगी । इसका असर ब्रांड मोदी पर भी पड़ेगा और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। अमित शाह का कद भी कमज़ोर हो जाएगा।

विपक्षी राजनीतिक पार्टियां ये साबित करने की कोशिश करेंगी कि जनता ने नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक जैसे फैसलों को खारिज कर दिया है। आम बोल चाल की भाषा में कहें तो बीजेपी की हार चार लोगों को बातें बनाने का मौका दे देंगी। और ये चार लोग कहेंगे कि सरकार जनता का मूड समझ नहीं पाई। वैसे राजनीति के ये चार लोग अखिलेश, राहुल, मायावती और केजरीवाल हो सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की Bargaining पावर कम हो जाएगी। 25 करोड़ लोगों का साथ ना मिलने का मतलब ये होगा कि बड़े-बड़े World Leaders मोदी की नीतियों को शक की निगाहों से देखने लगेंगे। अंतर्राष्ट्रीय दुनिया में भी चार लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे। और भारत में विदेशी निवेश के माहौल पर भी इसका असर पड़ सकता है।

बीजेपी की हार का सबसे बुरा असर ये हो सकता है कि राज्यसभा में बीजेपी की ताकत और कमज़ोर हो जाएगी। सरकार के सभी महत्वपूर्ण फैसले Buffering Mode पर चले जाएंगे । यानी वो योजनाएं जिनका राज्यसभा से पास होना ज़रूरी है..जनता तक अटक अटक कर पहुंचेगी।  

अखिलेश जीते तो 2019 का बन सकते हैं चेहरा

अब हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि अखिलेश यादव के लिए जीत और हार का मतलब क्या होगा। ऐसा माना जा रहा है कि अगर अखिलेश यादव जीत गए तो वो मोदी विरोधी राजनीति के केंद्र बिंदु बन जाएंगे। क्योंकि अखिलेश इन चुनावों से पहले ना सिर्फ अपने पिता से लड़े बल्कि उन्होंने ये साबित करने की भी कोशिश की कि ईमानदार राजनीति उनकी प्राथमिकता है और इसके लिए अगर उन्हें अपनों का विरोध भी करना पड़े, तो वो इसके लिए तैयार हैं। 

अखिलेश एक युवा नेता हैं उनकी उम्र सिर्फ 43 वर्ष है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में जीत मिलने पर वो वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एक बड़ा चेहरा बनकर उभरेंगे। अखिलेश के साथ अच्छी बात ये है कि वो पिछले 5 वर्षों में एक नेता के तौर पर काफी परिपक्व हो गए हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों का गठबंधन अखिलेश के चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ सकता है। अखिलेश की जीत ये भी साबित कर देगी कि वो अपने पिता मुलायम सिंह की छाया से पूरी तरह बाहर निकल गए हैं। वो खुद फैसले ले सकते हैं, उन्हें सही साबित कर सकते हैं और जीत कर दिखा सकते हैं। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी भी पूरी तरह से अखिलेश यादव के नियंत्रण में आ जाएगी।  और चुनावों से पहले जो भी नुकसान उनकी पार्टी को हुआ है..वो उसकी भरपाई कर पाएंगे।

अखिलेश हारे तो सपा में एकजुटता हो जाएगी खत्म

लेकिन अगर अखिलेश हार जाते हैं। तो उनके लिए अपनी पार्टी को एकजुट रखना बहुत मुश्किल हो जाएगा। और उनके परिवार की दरार भी और गहरी हो जाएगी।
लोग कहेंगे कि अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर गलती की और ये इसी का नतीजा है। समाजवादी पार्टी में अखिलेश का विरोध करने वाले नेता..बिना जीते भी मज़बूत हो जाएंगे। और अखिलेश नए सिरे से मेहनत करनी पड़ेगी। यानी जिस राजनीतिक साइकिल को अभी तक अखिलेश तेज़ी  से चला रहे थे वो पंचर हो जाएगी और अखिलेश को इसकी Repairing में काफी वक्त लगेगा।  

राहुल गांधी के लिए भी चुनाव परिणाम अहम

पांच राज्यों के ये चुनाव कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि महा Exit Poll के अनुमान बता रहे हैं कि दो राज्यों में राहुल गांधी की पार्टी की सरकार जा रही है। ये दो राज्य हैं उत्तराखंड और मणिपुर। हालांकि कांग्रेस के लिए राहत की ख़बर पंजाब से आ सकती है। जहां पिछले 10 वर्षों से चला आ रहा कांग्रेस पार्टी का वनवास खत्म हो सकता है। यानी अगर कांग्रेस पार्टी पंजाब में जीतती है तो राहुल गांधी का डूबता हुआ सितारा कुछ हद तक बच जाएगा। 

हालांकि ये बात अलग है कि पंजाब में कांग्रेस की जीत नहीं बल्कि शिरोमणि अकाली दल की हार होगी। क्योंकि शिरोमणि अकाली दल की सरकार से पंजाब के लोग बहुत परेशान भी थे। अगर कांग्रेस पंजाब में जीतती है तो इसका श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को जाएगा, राहुल गांधी का इसमें कोई ख़ास रोल नहीं है। हालांकि कांग्रेस के बड़े नेता पूरा श्रेय अपने उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी देंगे। लेकिन अगर कहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर और सवाल उठेंगे। 

मायावती के लिए 'करो या मरो' की स्थिति

मायावती के लिए इन चुनावों में स्थिति करो या मरो की है। क्योंकि महा Exit Poll में मायावती की पार्टी को सिर्फ 54 सीटें मिलने का अनुमान है। यानी अभी ये माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मायावती बुरी तरह से हार जाएगी। इससे पहले लोकसभा चुनावों में भी मायावती की पार्टी का सफाया हो चुका है। अगर मायावती हार गईं तो उनके लिए बिना सत्ता के रहना बहुत मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि ऐसी स्थिति में मायावती के लिए सत्ता का वनवास 10 वर्षों का हो जाएगा.. जिसमें से 5 वर्ष वो काट चुकी हैं और उन्हें अगले पांच वर्ष का राजनीतिक वनवास और झेलना पड़ेगा।

लेकिन अगर मायावती जीत गईं तो उनकी पार्टी को संजीवनी मिल जाएगी। जिसकी उम्मीद अभी बहुत कम लग रही है। एक और बात जो संभव हो सकती है वो ये है कि उत्तर प्रदेश में हो सकता है कि त्रिशंकु विधानसभा यानी Hung Assembly बन जाए और ऐसी स्थिति में मायावती King Maker हो जाएंगी। यानी अगर ऐसे हालात हुए तो मायावती जिसको Support करेंगी उसकी सरकार बन जाएगी। हालांकि चुनावों के दौरान मायावती ये कह चुकी हैं कि वो विपक्ष में बैठना पसंद करेंगी, लेकिन बीजेपी को समर्थन नहीं देंगी। लेकिन राजनीति में संभावनाओं का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है। इसलिए कुछ भी हो सकता है। और किस्मत साथ दे तो मायावती KingMaker के बजाए खुद Queen भी बन सकती हैं।

पंजाब जीते तो केजरीवाल का बढ़ेगा कद 
वैसे इन चुनावों के नतीजे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए भी काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे। अगर पंजाब में आम आदमी पार्टी सत्ता में आती है। तो ये केजरीवाल के लिए एक बहुत बड़ी जीत होगी। उनकी पार्टी, एक पूर्ण राज्य में सरकार चलाने के सपने को पूरा कर पाएगी। केजरीवाल अपने विरोधियों को ये संदेश दे पाएंगे कि उन्हें कमज़ोर मानना एक बड़ी राजनीतिक भूल है। 

चुनाव वाले 5 राज्यों में पंजाब आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा बड़ा राज्य है। यानी इस राज्य में जीत से केजरीवाल की राजनीतिक हैसियत बढ़ जाएगी और वो राजनीति के Part Time Player से Full Time Player बन जाएंगे। लेकिन अगर केजरीवाल हारते हैं..तो ये हार उनके लिए बहुत बड़ा सबक होगी और एक तरह का Setback होगी। आम आदमी पार्टी को ये मानना पड़ेगा कि दिल्ली के बाहर उसकी राजनीतिक चमक बहुत फीकी है। और उसे अपनी सारी महत्वाकांक्षाएं.. दिल्ली में ही पूरी करनी पड़ेंगी। 

चुनावी मौसम आते ही हमारे देश में हर बार अलग-अलग Surveys की Race लग जाती है। कोई कहता है, कि बीजेपी को इतने वोट मिलेंगे, तो कोई कहता है, कि कांग्रेस को इतने वोट मिलेंगे। इन अलग-अलग Surveys को मुख्य तौर पर दो भागों में बांटा जाता है। पहला होता है Opinion Poll और दूसरा होता है Exit Poll...चुनाव की घोषणा के बाद जब वोटर्स से उनकी राय पूछी जाती है, तो उस सर्वे को Opinion Poll कहते हैं। इस सर्वे में मुख्य रूप से सैंपल साइज़ पर जोर दिया जाता है। जिसका जितना बड़ा सैंपल साइज़ होता है, उसके नतीजे उतने ही सटीक होते हैं।

जबकि, मतदान के दिन जब वोटर वोट डाल कर Polling Booth से निकलता है, तो सर्वे करने वाले उससे ये पूछते हैं, कि आपने कौन सी पार्टी को वोट दिया है या फिर आपकी नज़र में कौन सी पार्टी जीत सकती है। ऐसे सर्वे को Exit Poll कहते हैं। Exit Polls के साथ समस्या ये है कि वो वोटर के जवाब पर निर्भर होते हैं.. और अगर वोटर सही जवाब ना दे तो Exit Poll के नतीजे गलत हो जाते हैं। यही वजह है कि Exit Polls अक्सर गलत साबित हो जाते हैं। 

2015 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे। तब ज्यादातर Exit Polls ने जेडीयू-आरजेडी के गठबंधन को एनडीए से कड़ी टक्कर मिलने का अनुमान जताया था। लेकिन, 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन ने बीजेपी को हरा दिया था। तमिलनाडु को लेकर तमाम Exit Polls बुरी तरह गलत साबित हुए थे। लगभग सभी Exit Polls ने अनुमान लगाया था, कि सत्ताधारी AIADMK हार जाएगी। लेकिन जनता ने जयललिता को फिर से मुख्यमंत्री बनाया और AIADMK 136 सीटें जीतकर सत्ता में वापस आ गई थी।

हालांकि, पिछले साल अप्रैल और मई में पश्चिम बंगाल, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए थे। और तब ज़्यादातर Exit Polls काफी हद तक सही साबित हुए थे। वैसे दुनिया में Exit Polls का इतिहास कई वर्षों पुराना है। पहली बार वर्ष 1967 में अमेरिका के Kentucky राज्य के Governor के चुनाव में Exit Poll की शुरूआत हुई थी। जबकि भारत में Exit Polls की शुरूआत पहली बार वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में हुई थी।

इस विश्लेषण के अंत में हम अपने दर्शकों को Exit Polls से जुड़ी एक वैधानिक चेतावनी देना चाहते हैं और वो चेतावनी ये है कि आज जो आंकड़े Exit polls ने आपके सामने रखे हैं वो अंतिम नतीजे नहीं हैं। Exit polls गलत भी साबित हो सकते हैं और इसका एक लंबा इतिहास भी रहा है.. इसलिए पूरे देश को 11 मार्च की सुबह का इंतज़ार करना होगा। वो सुबह नतीजों की सुबह होगी और उस दिन आपका समय हमारे साथ सुरक्षित रहेगा।

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