Parenting Tips: पैरेंट्स की 10 गंदी आदतें जो बच्चों का भविष्य कर देती हैं तबाह, ध्यान से पढ़ें
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Parenting Tips: पैरेंट्स की 10 गंदी आदतें जो बच्चों का भविष्य कर देती हैं तबाह, ध्यान से पढ़ें

Parenting Tips for parents: किसी भी बच्चे के पहले शिक्षक उसके पैरेंट्स होते हैं. माता-पिता बच्चे के साथ जैसा सुलूक करते हैं. बच्चे के दिमाग पर ठीक वैसा असर पड़ता है. ऐसे में आपको पैरेंट्स की उन आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे उनके बच्चों की जिंदगी बर्बाद हो सकती है.

Parenting Tips: पैरेंट्स की 10 गंदी आदतें जो बच्चों का भविष्य कर देती हैं तबाह, ध्यान से पढ़ें

Parenting Tips India: आज के जमाने में बच्चे की सही परवरिश करना आसान काम नहीं है. आप जैसा बरताव बच्चों के साथ करेंगे वो भी ठीक वैसा ही आचरण दूसरों के साथ करने लगेंगे. आज की आपाधापी भरी जिंदगी में पैरेंट्स के पास अपने बच्चों के लिए वैसे ही समय की कमी होती है ऐसे में कई चुनौतियों के बीच अक्सर कुई पैरेंट्स ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिससे उनके बच्चे बिगड़ने लगते हैं. ऐसे में आपको भारतीय पैरेंट्स की उन आदतों के बारे में बताते हैं जिससे बच्चों की जिंदगी तबाह हो सकती है.

1. फोन का इस्तेमाल करने की छूट - आजकल लाखों बच्चे खासकर कोरोना महामारी के बाद मैदान में जाकर खेलने जिससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है के बजाय स्मार्टफोन, लैपटॉप या कंप्यूटर में गेम खेलना पसंद करते हैं. जिन बच्चों को गेम खेलना नहीं पसंद होता है वो यू-ट्यूब पर घंटों वीडियोज देखते हैं. जिससे न सिर्फ बच्चे की आंखों और मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है बल्कि उसका ओवरऑल विकास प्रभावित हो जाता है. 

2. सिखाने की बजाय डांटना - कई पैरेंट्स जरा-जरा सी बात पर अपने बच्चों को डांटने लगते हैं, खासकर पढ़ाते समय बच्चे को कुछ समझ ना आने पर वो उसे डांटने लगते हैं. इससे बच्चा आगे कुछ भी पूछने के लिए डरने लगता है. पैरेंट्स के चीखने चिल्लाने और गुस्से का साइड इफेक्ट ये हो सकता है कि आगे चलकर आपका बच्चा भी काफी गुस्सैल प्रवृति वाला बन सकता है. 

3. धैर्य रखने की सीख न देना - एक चीज जिसका सामना आजकल की पीढ़ी को करना पड़ता है वह है धैर्य यानी सब्र की कमी. ऐसे में जरूरी है कि आप खुद धैर्यवान हों यानी पहले खुद में सब्र लेकर आएं खासकर उन विपरीत परिस्थितियां में जब आप परेशान हों. यानी आपके लिए ये ध्यान रखना भी काफी जरूरी है कि आप अपने बच्चे को धीरज धरना यानी सब्र करना सिखाएं. 

4. हमेशा जीतने का प्रोत्साहन - आजकल के बच्चों में बात-बात पर जीतने की भावना तेजी से बढ़ी है. ये कॉम्पटीशन के दौर की कोई मजबूरी नहीं है बल्कि वो प्रवत्ति है जिसका चलन काफी ज्यादा इसलिए बढ़ा है. क्योंकि ऐसे मामलों में अधिकतक पेरेंट्स बच्चों को जीतने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. ऐसा करना गलत नहीं है लेकिन इसके साथ-साथ पैरेंट्स को अपने बच्चों को फेलियर यानी फेल होने जैसी स्थिति से निपटना भी सिखाना चाहिए. क्योंकि कुछ मामलों में असफलता से सीख लेना भी बच्चे की ग्रोथ और विकास के लिए बहुत जरूरी होता है. 

5. नखरों को प्यार समझना - बहुत से मां-बाप अपनी सिरदर्दी और टाइम बचाने के लिए बच्चों की हर जिद को प्यार समझकर बिना कुछ बोले ही पूरा कर देते हैं. ऐसे में उनके लाड़ले ये नहीं सीख पाते कि उन्हें अपनी भावनाओं पर कैसे काबू पाना है. वहीं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों की हर जिद तुरंत पूरी होने से वो अपनी जिंदगी में सही और गलत के बीच अंतर करना नहीं सीख पाते.

6. तुलना करना - सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते. हर किसी में कोई ना कोई अच्छाई या बुराई हो सकती है. हो सकता है आपका बच्चा किसी एक काम में दूसरों से बेहतर ना हो लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी होंगी जिसमें वह सबसे आगे और अच्छा होगा. तो इस स्थिति में अपने बच्चे की तुलना किसी और से ना करें.  

7. चीजों को ना छोड़ पाना - बच्चों की अच्छी हेल्थ और भविष्य के लिए जरूरी है कि आप खुद में भी बदलाव लाएं. ऐसे में बच्चों पर कुछ भी थोपने से पहले जरूरी है कि आप बच्चे के आगे अपनी कुछ आदतों को बदलें. 

8. मांग से पहले इच्छा पूरी करना - कई बार पैरेंट्स बच्चों के मांगने से पहले ही उन्हें चीजें लाकर दे देते हैं. ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि आप अपने बच्चे की उन्हीं जरूरतों को पूरा करें जो सही हो और जिन चीजों की उसे असल में जरूरत हो. 

9. बच्चे को दोष देना - अगर आपको अपने बच्चा का बर्ताव खराब लगता है तो इसके लिए उसे भला-बुरा ना बोलें क्योंकि कहीं न कहीं उसने वह चीज जो आपको अपने लिए अच्छी लगती है लेकिन दूसरों के लिए नहीं ये उसने आपसे या आपके करीबी लोगों से सीखी होगी. अच्छी पैरेंटिंग ये है कि भले ही आपको कितना भी गुस्सा क्यों ना आ रहा हो लेकिन बच्चों पर उस गुस्से को ना निकालें. 

10. फैसला करने की आजादी - कई बार पैरेंट्स किसी परिस्थिति से निपटने के लिए बच्चे को बहुत से ऑप्शन दे देते हैं और उन्हें खुद से फैसला लेने के लिए कहते हैं. वैसे तो खुद से फैसला लेने पर बच्चों में एक समझ आती है लेकिन कई बार इससे बच्चे किसी भी परिस्थिति का सामना करने की बजाय और दूसरों के साथ एडजस्ट करने की बजाय कोई दूसरा विकल्प चुनने लगते हैं.

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