चुनावनामा: बीके कृष्णमेनन को मिली थी चीन से हार की सजा, जानिए कौन हैं ये शख्सियत
लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में भारत और चीन के रिश्तों को लेकर बहस जारी है. भारत-चीन युद्ध 1962 के बाद शुरू हुई इस बहस में बीके कृष्णमेनन अहम किरदार रहे हैं. बीके कृष्णमेनन वही शख्स हैं जिन्हें भारत-चीन युद्ध के लिए जिम्मेदार माना गया था.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में भारत और चीन के रिश्तों को लेकर सत्तारूढ़ दल और विपक्षी पार्टियां एक दूसरे को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, दोनों देशों के रिश्तों को लेकर चल रही बहस की शुरूआत 1962 में ही हो गई थी. यह वह दौर था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर करने की कोशिश में लगे थे. इसी बीच, चीन ने पींठ में छुरा घोंपते हुए 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर हमला बोल दिया था.
1962 के इस युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था. इस हार के बाद देश आक्रोशित था. न केवल विपक्षी दल बल्कि देश की जनता नेहरू से इस हार के कारण पूछ रही थी. ऐसे में, तत्कालीन केंद्र सरकार की मजबूरी बन गई थी कि इस हार की जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई की जाए. तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस हार के लिए बीके कृष्णमेनन को जिम्मेदार ठहराकर कार्रवाई की. चुनावनामा में आपको बताते हैं कि बीके कृष्णमेनन कौन थे और उन पर ये कार्रवाई क्यों की गई.
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भारत-चीन युद्ध के दौरान देश के रक्षामंत्री थे बीके कृष्णमेनन
आजादी के बाद शायद यह पहला मौका था, जब देश एक बार फिर आक्रोश की आग में जल रहा था. इस आक्रोश की वजह युद्ध में चीन के हाथों भारत की पराजय थी. तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस हार की पूरी जिम्मेदारी तत्कालीन रक्षामंत्री बीके कृष्णमेमन पर डाल दी गई. बीके कृष्णमेमन को न केवल रक्षा मंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया, बल्कि उन्हें कांग्रेस से भी निकाल दिया गया. जिसके बाद, नेहरू के बेहद खास रहे बीके कृष्णमेनन ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
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कांग्रेस के खिलाफ बंबई से चुनाव में उतरे बीके कृष्णमेनन
1962 से 1967 के बीच देश बहुत सारे उतार-चढाव देख चुका था. इन पांच सालों में देश की जनता ने चीन और पाकिस्तान से युद्ध देखा. इसी बीच, देश ने अपने दो प्रधानमंत्री को खो दिया था. इस सबके बीच, देश की बागड़ोर इंदिरा गांधी के हाथों में थी. अपनी बर्खास्तगी से नाराज बीके कृष्णमेनन ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बंबई की उत्तर-पश्चिम सीट से चुनाव लड़ा. हालांकि, वे इस चुनाव में कांग्रेस के एमजी बर्बे से हार गए.
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1969 में लोकसभा पहुंचने में सफल रहे बीके कृष्णमेनन
बीके कृष्णमेनन ने भारत में अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत 1953 में की थी. नेहरू के बेहद करीबी माने जाने वाले बीके कृष्णमेनन को 1953 में राज्यसभा के लिए चुना गया था. 3 फरवरी 1956 को उन्हें नेहरू मंत्रिमंडल में बिना विभाग का मंत्री बनाया गया. 1957 में वे पहली बार बंबई (मुंबई) चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. मुंबई से 1967 का चुनाव हाने के बाद उन्होंने 1969 में मिदनापुर उपचुनाव में जीत हासिल की. 1971 के लोकसभा चुनाव में वे तिरुवनंतपुरम से सांसद चुने गए.
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मेनन ने लंदन से की थी अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत
बीके कृष्णमेनन ने अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत लंदन से की थी. 1934 में लेबर पार्टी का सदस्य बनने के बाद मेनन को सेंट पैंक्रास (लंदन) का काउंसलर नियुक्त किया गया. इसी बीच, वे जवाहर लाल नेहरू के संपर्क में आए. 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद मेनन को यूनाइटेड किंगडम में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया. वे इस पद पर 1952 तक रहे. बीके कृष्णमेनन 1957 में संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व भी किया था.