1967 के इस लोकसभा चुनाव में भी राजनैतिक दल से जुड़े तमाम नेता कमोवेश इन्हीं विषयों पर जनता को जवाब देने की कोशिश कर रहे थे. बस अंतर इतना है कि मौजूदा प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस उन दिनों सत्ता में थी और सत्तारूढ़ बीजेपी उस दौर में जनसंघ के रूप में विपक्ष में थी. चुनावनामा में आपको बताते हैं कि 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश में क्या हालत थे और चुनाव के बाद बहुमत के जादुई आंकड़े पर किस पार्टी का कब्जा कायम हुआ था.
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केरल, मद्रास और दिल्ली में लगा कांग्रेस को बड़ा झटका
देश की आजादी में कांग्रेस पार्टी की अग्रणी भूमिका रही है. यही वजह थी कि आजादी के बाद कांग्रेस का प्रभाव मतदाताओं में सर्वाधिक था. देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले दम 364 संसदीय सीटें जीतने में कामयाब रही थी. हालांकि यह बात दीगर है कि जैसे जैसे समय बीतता गया, कांग्रेस पार्टी का असर देश से कम होने लगा. 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 1951 की अपेक्षा 81 सीटें खोकर महज 283 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी.
1967 के इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका केरल, मद्रास और दिल्ली से लगा था. केरल में के दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 19 में एक, मद्रास में 39 में तीन और दिल्ली में सात में एक सीट ही जीत सकी. इतना ही नहीं, मणिपुर, गोवा और चंडीगढ़ में कांग्रेस अपना खाता खोलने में नाकाम रही. इस लोकसभा चुनाव में गुजरात, मैसूर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाम में कांग्रेस की सीटों में 40 से 50 फीसदी से अधिक की कमी आई.
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संसद पहुंचने में नाकाम रहे भारतीय राजनीति के ये दिग्गज
1967 का लोकसभा चुनाव के साथ भारतीय राजनीति एक नया मोड़ ले रही थी. भारतीय राजनीति में एक अलग मुकाम बनाने वाले कई राजनेताओं को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इन राजनेताओं में जेबी कृपलानी, जनेश्वर मिश्र और किशन पटनायक का नाम भी शामिल है. जेबी कृपलानी ने मध्य प्रदेश की रायपुर (वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ में) संसदीय सीट से जन कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था. इस सीट से कांग्रेस के एल. गुप्ता की जीत हुई थी.
वहीं, इस चुनाव में जनेश्वर मिश्र को फूलपुर संसदीय सीट से हार का सामना करना पड़ा. इस सीट से जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने जीत हासिल की थीं. 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद विजयलक्ष्मी ने फूलपुर सीट से उपचुनाव भी जीता था. 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार जीत हासिल करने वाले समाजवादी नेता किशन पटनायक भी आडिसा की संबलपुर सीट से चुनाव हार गए थे. पटनायक को कांग्रेस के केएस सुधाकर ने शिकस्त दी.
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अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर सीट से पहुंचे संसद
भारतीय जन संघ की टिकट पर चुनाव लड़ रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इस चुनाव में बलरामपुर सीट से दर्ज की. बलरामपुर सीट से अटल बिहारी बाजपेयी की दूसरी जीत थी. अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा, 1967 का लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाले राजनेताओं में जार्ज फर्नांडीस, रवि राय, नीलम संजीव रेड्डी और तुर्क रामधन भी शामिल हैं. इस चुनाव में इंदिरा गांधी अपने पति फिरोज गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव जीत कर संसद पहुंची थीं.
1967 लोकसभा चुनाव में समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया भी कन्नौज से जीतकर संसद पहुंच गए. जार्ज फर्नांडीस मुंबई दक्षिण से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे. बिहार की मधेपुरा सीट से बीपी मंडल और ओडिसा से रवि राय जीते. आंध्र प्रदेश की हिंदुपुर सीट से नीलम रेड़डी और इलाहाबाद सीट से हरिकृष्ण शास्त्री चुनाव जीत गए. हरिकृष्ण शास्त्री, पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे थे. मध्य प्रदेश की गुना सीट से सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीत गईं.
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पहली बार कांग्रेस ने लड़ा इंदिरा गांधी के नाम पर चुनाव
1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया. महज एक सप्ताह के भीतर लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया. 1965 की भारत-पाक जंग के बाद समझौते पर हस्ताक्षर करने काशकंद गए लालबहादुर शास्त्री की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई. जिसके बाद, जिसके बाद एक बार फिर गुलजारी लाल नंदा को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया.
कुछ दिनों के पश्चात कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया. उस समय इंदिरा, लाल बहादुर शास्त्री मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्री थीं. प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद 1967 का चुनाव इंदिरा के नाम पर लड़ा गया. इस चुनाव में कांग्रेस की न केवल सीटें कम हुई, बल्कि वोट प्रतिशत भी गिर गए. इस चुनाव में कांग्रेस ने 283 सीटें हासिल की. ये सीटें 1951 की अपेक्षा 81 कम थी. इस चुनाव में कांग्रेस के मतदान प्रतिशत में भी करीब 5 फीसदी की कमी आई.