लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) में सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर घोटालों का आरोप लगाकर चुनावी जीत हासिल करने की कोशिश में लगे हैं. अतीत की सरकारें भी इन घोटालों के आरोप से अछूती नहीं रही हैं. देश की दूसरी लोकतांत्रिक सरकार पर घोटाले का पहला आरोप लगा था.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok sabha elections 2019) के आते ही विपक्ष ने राफेल खरीद में घोटाले का आरोप लगाते हुए सत्तारूढ़ दल को घेरना शुरू कर दिया. कुछ यही हाल बीते 2014 के लोकसभा चुनाव में था. तब मौजूदा सत्तारूढ़ दल विपक्ष में था. उस दौरान, विपक्ष ने सत्ता पक्ष पर कोयला, टूजी सहित अन्य कई घोटालों में संलिप्त होने का आरोप लगाया था. क्या आपको पता है कि आजाद भारत का पहला कौन सा था, यह घोटाला कब हुआ और इस घोटाले को सामने लाने वाला कौन था? यदि आपको नहीं पता तो चुनावनामा में हम आपको बताते हैं आजाद भारत के पहले घोटाले के बारे में:-
मूंदड़ा कांड था आजाद भारत का पहला घोटाला
मूंदडा कांड को देश का सबसे पहला घोटाला कहा जाता है. आजादी से महज एक दशक बाद 1958 में यह घोटाला देश के सामने आया था. इस घोटाले में सीधे तौर पर तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी को दोषी माना गया. जिसके चलते उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि यह बात दीगर है कि वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देने के कुछ समय बाद ही उन्हें बिना विभाग का मंत्रालय सौंप दिया गया. इस घोटाले में दोषी पाए गए अन्य लोगों में तत्कालीन वित्त सचिव एचएम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष को दोषी माना गया था.
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भारतीय जीवन बीमा निगम से जुड़ा था मूंदड़ा कांड
1956 में संसद ने बीमा विधेयक पारित किया गया. बीमा विधेयक पारित होने के बाद देश की करीब 245 कंपनियों का चरणवद्ध तरीके से विलय करके भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) नामक सरकारी संस्था बनाई गई. इसी दौरान, एलआईसी ने अपने नियमों के तहत उस दौर की बड़ी कंपनियों में निवेश करना शुरू किया. एलआईसी ने जिन कंपनियों में निवेश किया, उसमें हरिदास मूंदड़ा नामक कारोबारी की छह कंपनियां भी शामिल थी. एक साल के बाद यह खुलासा हुआ कि एलआईसी ने हरिदास मूंदड़ा की कंपनियों के शेयरों को बढ़ी हुई कीमतों में खरीदा गया है.
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फिरोज गांधी ने किया था मूंदड़ा कांड का खुलासा
एलआईसी के बड़े अधिकारियों की मदद से किए गए मूंदड़ा कांड का खुलासा फिरोज गांधी ने किया था. मूंदड़ा कांड की जानकारी मिलने के बाद फिरोज गांधी ने इस मामले को पहली बार संसद में उठाया था. फिरोज गांधी के इस खुलासे के बाद पूरे देश में हलचल बढ़ गई थी. फिरोज गांधी के ही दबाव का नतीजा था कि तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. फिरोज गांधी वित्तमंत्री के इस्तीफे के बाद भी नहीं रुके. फिरोज गांधी के विरोध को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पूरे मामले की जांच के लिए मुंबई उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज एमसी छागला की अध्यक्ष में जांच आयोग का गठन किया था.
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जनता के सामने हुई मूंदड़ा कांड की सुनवाई
आजाद भारत के इतिहास में मूंदड़ा कांड पहला ऐसा मामला था, जिसकी सुनवाई जनता के बीच हुई थी. पहली बार न्यायालय के बाहर बड़े-बड़े लाउड स्पीकर लगाए गए थे, जिससे अदालत के भीतर जिन लोगों को जगह नहीं मिली है, वे अदालत के बाहर कार्रवाई को सुन सकें. इस मामले ने हंसमुख ठाकोरदास पारेख को बतौर गवाह पेश किया गया. पारेश ने अपनी गवाही में हरिदास मूंदडा की साजिश का भंडाफोड़ कर दिया. उन्होंने अदालत को बताया कि शेयर को उंचे दाम में बेंचकर लाभ कमाने के इरादे से यह घोटाला किया गया था. जांच में यह बात भी सामने आई की इस घोटाले से एलआईसी को करीब 50 लाख रुपए का नुकसान हुआ था.
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लोकसभा चुनाव में दिखा मूंदड़ा कांड का असर
1962 में हुए देश के तीसरे लोकसभा चुनाव में मूंदड़ा कांड का असर नजर आया. माना जाता है कि मूंदड़ा कांड के चलते कांग्रेस की छवि को चोट पहुंची थी. 1962 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पिछले चुनाव की अपेक्षा करीब दस सीटें कम मिली थीं. हालांकि यह बात दीगर है कि मूंदड़ा कांड के चलते वित्तमंत्री का पद गंवाने वाले टीटी कृष्णामाचारी 1962 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर निर्विरोध सांसद चुन लिया गया.