पूर्वांचल में की लगभग 25 लोकसभा सीटों पर निषाद मतदाताओं की अच्छी पैठ मानी जाती है. यूपी की वाराणसी और गोरखपुर लोकसभा सीट पर निषाद मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं.
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण का बोलबाला हमेशा से रहा है. चुनाव कोई भी हो, राजनीतिक दल अपने अपने जातीय समीकरण को फिट करने की कोशिश में जुटे रहते हैं. हाल ही में गोरखपुर उप चुनाव के नतीजे और वाराणसी में प्रियंका गांधी की बोट यात्रा ने पूर्वांचल में निषाद वोट बैंक को चर्चा में ला दिया है. पूर्वांचल में की लगभग 25 लोकसभा सीटों पर निषाद मतदाताओं की अच्छी पैठ मानी जाती है. यूपी की वाराणसी और गोरखपुर लोकसभा सीट पर निषाद मतदाता सबसे ज्यादा संख्या में हैं.
निषाद मतदाता पूर्वी यूपी में अपना असर समय समय दिखाते रहे हैं. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी, सपा और कांग्रेस जैसे दल निषाद वोट बैंक को अपने पाले में लाने की कवायद में जुटे हैं. प्रियंका गांधी ने प्रयागराज से लेकर वाराणसी तक नाव यात्रा कर निषाद यानि मछुआरों को प्रभावित करने की कोशिश की. तो वहीं, समाजवादी पार्टी ने निषाद पार्टी से लोकसभा चुनाव को लेकर गठबंधन किया है.
ये वहीं निषाद पार्टी है, जिसके साथ गठबंधन कर अखिलेश ने गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हरा दिया था और प्रवीण निषाद गोरखपुर से सांसद बन गए. यही नहीं सपा ने वाराणसी से सटी हुई सीट मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल के खिलाफ राजेश बिंद को टिकट दिया है, जो कि निषाद बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं.
अगर हम बीजेपी की बात करें, तो निषाद मतदाताओं को लुभाने में बीजेपी भी जी जान से जुटी है. गोरखपुर में सपा के पूर्व सांसद रहे यमुना निषाद की पत्नी राजमति निषाद और उनके बेटे अमरेन्द्र निषाद अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. फतेहपुर लोकसभा सीट से सांसद साध्वी निरंजन ज्योति का टिकट बीजेपी ने सिर्फ इसलिए नहीं काटा क्योंकि वो निषाद बिरादरी से हैं.
वहीं, पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से सटी हुई लोकसभा मछलीशहर से बीजेपी के रामचरित्र निषाद सांसद हैं. रामचरित्र की निषाद बिरादरी में अच्छी पैठ मानी जाती हैं. रामचरित्र निषाद को भी दोबारा टिकट मिलने की संभावना जताई जा रही है.
बीजेपी गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव एससी वोट बैंक पर यूपी में पूरी तरह से फोकस कर रही है. दरअसल बीजेपी को लगता है कि निषाद वोट अगर एकजुट होकर पूर्वी यूपी में उनके पास आ गया तो लड़ाई में बीजेपी आगे निकल सकती है.
आंकड़ों पर गौर करें तो पूरे यूपी में लगभग पांच प्रतिशत के आसपास निषाद मतदाता हैं और इनकी कई उपजातियां है. जैसे- मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप और सोरहिया. पूर्वी यूपी में वाराणसी और गोरखपुर के बाद सबसे ज़्यादा निषाद मतदाता भदोही, मिर्ज़ापुर, जौनपुर, अंबे़डकरनगर, अयोध्या, बस्ती, देवरिया, आजमगढ़, मछलीशहर, लालगंज, डुमरियागंज, फतेहपुर में हैं. इसीलिए यूपी में सपा-बसपा और आरएलडी का गठबंधन हो या फिर बीजेपी-अपना दल का गठबंधन. हर कोई इस गंगा किनारे वाले मतदाताओं को अपने साथ रखने की पूरी कवायद कर रहा है.