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बिमल कुमार
कर्नाटक चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कारारी हार का सामना करना पड़ा है। दक्षिण भारत के इस इकलौते राज्य में जब भारतीय जनता पार्टी की पहली बार सरकार बनी थी तो उस समय यह उम्मीद जगी थी कि बाकी अन्य पड़ोसी राज्यों में भी बीजेपी धीरे-धीरे अपने पैर पसारेगी। मगर हुआ इसके ठीक उलट और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी।
कर्नाटक में बीजेपी का किला ढहने की कई वजह हैं। इसमें मुख्य रूप से पार्टी की अंदरुनी कलह, पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का पार्टी से अलग होना और पार्टी नेताओं का भ्रष्टाचार में लिप्त होना रहा है। बीजेपी सरकार लगातार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी रही और इसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी। दक्षिण भारत में बीजेपी की पहली सरकार के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार ने भी पार्टी की छवि खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में पार्टी को आम चुनाव के मद्देनजर नए सिरे से सोचने के लिए विवश होना पड़ेगा। चूंकि भ्रष्टाचार मामले पर केंद्र में विपक्ष के विरोध का सामना कर रही कांग्रेस के लिए यह जीत 2014 के आम चुनाव से पहले उसका मनोबल बढ़ाने जैसी है। यह जीत निश्चित तौर कांग्रेस के लिए `संजीवनी` का काम करेगी और बीजेपी के लिए यह शिकस्त एक सबक है।
दामन पर भ्रष्टाचार के छींटे पड़ने के बाद बीएस येदियुरप्पा को जब बीजेपी ने अलग थलग किया तो यह उन्हें काफी नागवार गुजरा। इसके बाद येदियुरपा ने अगल पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष का गठन कर लिया। हालांकि, येदियुरप्पा के अलग होने के बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि चुनाव में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ेगा। लिंगायत समुदाय में खासा प्रभावशाली नेता येदियुरप्पा ने एक समय बीजेपी कई नेताओं को अपने पाले में कर अपनी ताकत का एहसास करवाया और पार्टी में फूट भी पड़ी। मगर चुनाव के नतीजों से यह साफ है कि येदियुरप्पा की यह `दबंगई` आम जनता को पसंद नहीं आई।
ज्ञात हो कि दक्षिण भारत में बीजेपी की अब तक की पहली सरकार पिछले विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में बनी थी, इसीलिए यह राज्य पार्टी के लिए खास महत्व रखता है। येदियुरप्पा ने बीजेपी के मतों में सेंध लगाने के साथ साथ अन्य दलों के लिए भी मुश्किल बढ़ा दी थी। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 110 सीटें जीती थीं तथा पांच निर्दलीय उम्मीदवारों की मदद से राज्य में पहली बार सरकार बनाई थी।
बीजेपी के लिए दुखद सिर्फ यह नहीं है कि वह कर्नाटक में हार गई। दक्षिण भारत में अपने पहले और एकमात्र किले को गंवाने का दर्द उसे सालता रहेगा। अगर चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो कर्नाटक में बीजेपी की हार चौतरफा है और राज्य के कोई भी क्षेत्र से पार्टी के लिए अच्छी खबर नहीं आई। यानी हर क्षेत्र में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। यह अलग बात है कि बीजेपी के नेता अब विमर्श करेंगे कि चूक कहां हो गई। चाहे बेल्लारी बंधुओं के खनन कारोबार से जुड़ना हो या येदियुरप्पा की नुकसान पहुंचाने की क्षमता को कम आंकना या कोई और वजह, अंतत: खामियाजा पार्टी को ही भुगतना पड़ा।
सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने अपने पुराने दक्षिणी गढ़ में शानदार प्रदर्शन किया और बहुमत के लिए जादुई आंकड़े को आसानी से जुटा लिया।
कर्नाटक चुनाव में दमदार जीत से निश्चित तौर पर कांग्रेस का हौंसला बढ़ा है। इस चुनाव का नतीजा देश की राजनीति पर भी असर डाल सकता है। इस बात की संभावना है कि कांग्रेस की जीत के बाद इस साल के अंत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही देश में आम चुनाव करवा लिए जाएं। केंद्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार, घोटाला, महंगाई आदि गंभीर मसलों के साथ जूझ रही कांग्रेस के लिए इस जीत से उत्साहित होना लाजिमी है। बीजेपी और विपक्ष के हमलों का मुकाबला करने के लिए कर्नाटक के नतीजे के रूप में उसके पास एक अहम हथियार होगा।
चुनाव में मुंह की खाने के बाद यह भी हो सकता है कि बीजेपी के आक्रमण की धार थोड़ी कमजोर हो सकती है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरी तरह से आगे लाने या न लाने को लेकर भी पार्टी में चिंतन होगा। कर्नाटक चुनाव में मिले झटके बीजेपी को प्रदेश स्तर पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी महसूस हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि जिस नरेंद्र मोदी को आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी का सबसे बड़ा दांव माना जा रहा है, वह कर्नाटक चुनाव में बेअसर साबित हुए। मतदाताओं पर वे कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए। गुजरात में लगातार जीत दर्ज कराने के बाद यह पहला मौका था, जब अपने राज्य के बाहर मोदी को अपनी लोकप्रियता साबित करनी थी। मोदी की रैलियां तो भीड़ खींचने में सफल रहीं पर
मतदाताओं को अपेक्षा के अनुरुप आकर्षित नहीं कर पाए।
इस चुनाव के दौरान मोदी राज्य के 37 विधानसभा सीटों में प्रचार करने गए थे, मगर इनमें से सिर्फ 15-16 सीटें ही बीजेपी की झोली में आई। आने वाले दिनों में यदि मोदी के विरोधी इस हार को उनके खिलाफ इस्तेमाल करेंगे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। चूंकि पार्टी के अंदर केंद्रीय स्तर पर भी नेता एकमत नजर नहीं आ रहे हैं।
अपने ही गढ़ में बीजेपी का प्रदर्शन कितना कमजोर रहा यह बात दक्षिण कन्नड़ और उडुपी के तटीय जिलों से जाहिर होती है, जहां पार्टी का सूपड़ा लगभग साफ हो गया। येदियुरप्पा के गृह जिले शिमोगा और बेल्लारी में भी भाजपा की यही हालत रही। हालांकि, येदियुरप्पा की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष को महज पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा, लेकिन उसने बीजेपी को कई विधानसभा सीटों में भारी नुकसान पहुंचाया। बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेरने में येदियुरप्पा की अहम भूमिका रही।
भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा ने भी माना कि हम अपने मुद्दों को उठाने में नाकाम रहे और विकास कार्यो के बारे में जनता को बताने में अक्षम रहे। भाजपा को ग्रामीण एवं शहरी दोनों इलाकों में जबरदस्त नुकसान हुआ है। यह भाजपा के लिए काफी दुखद स्थिति है क्योंकि कर्नाटक के सहारे यह दक्षिण में अपना आधार बनाने की कोशिश कर रही थी। बीजेपी को मिली इस करारी शिकस्त के बाद यह उनके लिए आत्मविश्लेषण का वक्त है।