Cactus Farming: रेगिस्तान का सुनहरा भविष्य है 'हरा सोना', इसकी खेती से बदलेगी किसानों की जिंदगी!
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Cactus Farming: रेगिस्तान का सुनहरा भविष्य है 'हरा सोना', इसकी खेती से बदलेगी किसानों की जिंदगी!

Cactus Farming: ये वातावरण से कार्बन मोनो ऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को कम करने में बेहद मददगार हैं. वहीं, रेगिस्तान के भीषण सूखे में कैक्टस की खेती से पशु चारे की कमी को दूर की जी सकती है.

Cactus Farming: रेगिस्तान का सुनहरा भविष्य है 'हरा सोना', इसकी खेती से बदलेगी किसानों की जिंदगी!

Cactus-The Farming of Future: हमारे घरों में अक्सर कैक्टस के कई तरह के पौधे गमलों में लगे रहते हैं. कैक्टस को देखकर आमतौर पर कभी-भी बहुत अच्छी फीलिंग नहीं आती, लेकिन कहा जाता है कि ये पौधे घर को बुरी नजर से बजाते हैं. ये तो हुई मान्यताओं की बात, लेकिन अब वास्तव में ये पौधे रेगिस्तान (Desert) की आर्थिक स्थिति पर लगी बुरी नजर को बजाएंगे.

हमें मालूम है आपको पढ़कर यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन ये सच हैं. बेहद विपरीत स्थितियों में उगने वाला कैक्टस किसानों की जिंदगी बदल देगा. आइए जानते हैं कैसे बनेगा कैक्टस रेगिस्तान का सुनहरा भविष्य...

कैक्‍टस की खेती
कैक्टस का इस्तेमाल पशु चारे, चमड़ा बनाने, दवाईयां बनाने, हेल्दी रेसीपी और ईंधन बनाने में भी किया जाता है. इसका उपयोग आयुर्वेदिक औषधी के तौर पर भी किया जाता है. बंजर और कम उपजाऊ जमीन पर उगने वाला कैक्टस 'हरा सोना'कहलाता है. इनका इस्तेमाल जूस, मुरब्बा, कैंडी, लाल कलर की डाई के अलावा तेल, शैंपू, साबुन और लोशन जैसे सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में किया जाता है. एक तरफ तो कैक्टस की खेती के फायदों से दुनिया अंजान है. वहीं,  मैक्सिको (Mexico) ने वक्त रहते इसकी वैल्यू को समझकर कैक्टस की व्यावसायिक खेती करना शुरू कर दिया है.

कैक्टस की व्यावसायिक खेती के फायदे
पूरी दुनिया में कैक्टस की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से अपुंशिया फिकस-इंडिका किस्म की कमर्शियल खेती की जा सकती है. यह कैक्टस पीयर और इंडियन फिग यानी नागफनी के नाम से विश्व प्रसिद्ध है. दरअसल, कैक्टस की ये किस्में कांटे से मुक्त होती हैं. इनकी खेती में पानी का इस्तेमाल न के बराबर ही होता है. ऐसे में कम पानी में उगने के बावजूद कैक्टस पानी का बेहतरीन स्रोत है.

ये पशु चारे और जैव ऊर्जा या जैव ईंधन का प्रमुख स्रोत है. इसके सेवन से पशुओं के गर्मियों में होने वाली डीहाइड्रेशन से बचा सकते हैं. खेतों की बाड़बंदी के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे आवारा पशु खेतों में घुसकर फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते. वहीं, कैक्टस की ये किस्में कटाई के बाद दोबारा पनप जाती है.

भविष्य की खेती
एग्रीकल्चर एकस्पर्ट की मानें तो कैक्टस को भविष्य की खेती कहा जाना गलत नहीं होगा. अब तक इन कांटेदार पौधों को बेमतलब ही समझा जाता था, लेकिन दुनिया में बड़े-बड़े देशों ने कैक्टस की व्यावसायिक खेती के जरिए नया मुकाम हासिल किया और इसे वैल्यूबल बना दिया.  आपको बता दें कि मैक्सिको में जैव ईंधन के तौर पर कैक्टस का इस्तेमाल किया जाता है. वहां बड़ी कंपनियां इसकी खेती और प्रोसेसिंग के जरिए अरबों रुपया कमा रही हैं. 

कैक्टस का लेदर 
वियतनाम को कैक्टस ऑयल का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश माना जाता है. इतना ही नहीं यूरोप में भी कैक्टस ऑयल की बड़ी डिमांड रहती है, जो 800 यूरो (लगभग 64,735 रुपये) प्रति लीटर के भाव पर बिकता है. चीन में कैक्टस हर्बल कलर्स के लिए कैक्टस की खेती की जाती है. भारत के रेगिस्तान में भी कैक्टस की खेती फल, औषधी और पशु चारा पूर्ति के मकसद से की जाती है.

अब तक तो कैक्टस के हर्बल और कमर्शियल बेनिफिट्स दुनिया भर में पूरी तरह से पहुंचे भी नहीं थे कि मैक्सिको के दो उद्यमियों ने मार्केट में कैक्टस का चमड़ा पेशकर सभी को अंचभित कर दिया. इससे पूरी दुनिया हैरान होने के साथ ही बेहद खुश भी हुई, क्योंकि इससे ना सिर्फ करोड़ों जानवरों की बलि चढ़ने से रोका जा सकेगा, बल्कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकेगा. 

इकोफ्रेंडली है कैक्टस लेदर 
इस पर हुई एक रिसर्च में कैक्टस से तैयार चमड़ा पूरी तरह एनवायमेंट फ्रेंडली और बायोडिग्रेडेबल बताया गया है. कैक्टस लेदर से तैयार किए गए प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल आप 10 वर्षों तक कर सकेंगे. ये लेदर बेहद कंफर्टेबल होने के साथ ही अभी से इसकी इंटरनेशनल फैशन इंडस्ट्री में ऑरिजनल चमड़े से ज्यादा डिमांड बताई जा रही है.

ऐसे में अब जरूरत है कि भारत भी रेगिस्तान में कैक्टस की खेती को बढ़ावा देकर नए कीर्तिमान स्थापित करके इस रेस में शामिल हो जाए. हालांकि, सरकार ने इसके लिए पहल शुरू कर दी है और जैव-ईंधन और जैव-उर्वरक के उत्पादन में कैक्टस के व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने की संभावनाएं तलाशने का काम शुरू कर दिया है. इससे कैक्‍टस की मांग बढ़ने से किसानों को मुनाफा होगा. वहीं, जैव ईंधन का उत्‍पादन बढ़ने से भारत को कच्‍चे तेल के आयात पर कम खर्च करना पड़ेगा.

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