जानिए क्या है रामार्चा पूजन, अयोध्या में भूमि पूजन से पहले हुआ अनुष्ठान

मंगलवार को भूमिपूजन के अन्य विधानों के क्रम में रामार्चा पूजा की गई. पांच घंटे तक चली इस पूजा को छह पुजारियों ने मिसकर कराया. वैदिक मान्यता है इस महायज्ञ को करने से मनुष्य भगवद्धाम को प्राप्त करता है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Aug 4, 2020, 07:05 PM IST
    • मंगलवार को भूमिपूजन के अन्य विधानों के क्रम में रामार्चा पूजा की गई
    • पांच घंटे तक चली इस पूजा को छह पुजारियों ने मिलकर कराया
जानिए क्या है रामार्चा पूजन, अयोध्या में भूमि पूजन से पहले हुआ अनुष्ठान

अयोध्याः पांच अगस्त यानी बुधवार को श्री राम जन्मभूमि में भूमि पूजन कार्यक्रम होने वाला है. इसके पहले जोर-शोर से तैयारियों के बीच कुछ अन्य धार्मिक अनुष्ठान अयोध्या में शुरू किए जा चुके हैं. इसी सिलसिले में मंगलवार को भूमिपूजन के पूजा पाठ के क्रम में श्रीरामार्चा पूजा की गई. वैदिक परंपराओं के आधार को मानें तो रामार्चा पूजा सबसे महत्वपूर्ण विधान है. 

पांच घंटे तक चली पूजा
जानकारी के मुताबिक, मंगलवार को भूमिपूजन के अन्य विधानों के क्रम में रामार्चा पूजा की गई. पांच घंटे तक चली इस पूजा को छह पुजारियों ने मिलकर कराया. वैदिक मान्यता है इस महायज्ञ को करने से मनुष्य भगवद्धाम को प्राप्त करता है और सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं.

रामार्चा पूजन में भगवान राम, राजा दशरथ, रानी कौशल्या की पूजा होती है. इसके साथ ही श्रीराम के चार अवतारों की भी पूजा होती है.

 

श्रीराम के सहायक धर्मात्माओं की भी होती है पूजा
रावण से युद्ध के समय जिन लोगों ने श्रीराम की मदद की थी, उनकी भी पूजा इस रामार्चा पूजन में होती है. इनमें हनुमान, नल नील, सुग्रीव, जामवंत, विभीषण समेत सभी धर्मात्मा शामिल हैं.

जितने भी धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं उनमें भी श्री रामार्चा पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है, शुद्ध अन्त:करण से पूजा करने पर इच्छित मनोकामना पूर्ण होती है. 

यह होती है रामार्चा पूजन विधि
श्री रामार्चा पूजन में देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, तांबे का लोटा, जल का कलश, दूध, देव मूर्ति को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र व आभूषण चढ़ाए जाते हैं. चावल, कुमकुम, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध भी रखे जाते हैं,

तुलसीदल, तिल, जनेऊ के अलावा प्रसाद के लिए फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान, दक्षिणा यानी द्रव्य यानी वो सभी सामग्रियाँ जो विग्रह मूर्ति पूजा के लिए ज़रूरी हो वो शामिल की जाती हैं उनकी उपस्थिति अनिवार्य होती है. 

अवध और मिथिला क्षेत्र में यह पूजन पद्धति सोलह संस्कार में भी शामिल होती है. जनकपुर में ये विवाह से पहले जनेऊ संस्कार के पहले भी कराया जाता है. 

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