छतरपुर जिले के परा गांव की रहने वाली ममता को पढ़ाई का ऐसा जुनून है कि जन्म से हाथ नहीं होने के बावजूद उसने अब तक की पढ़ाई और परीक्षा हाथ ना होने के बावजूद पैरों से लिख कर पूरी की है.
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हरिश गुप्ता, छतरपुर: यदि मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत और जज्बा हो तो कोई भी अशक्तता बाधा नहीं बन पाती. मध्य प्रदेश की एक बेटी अपने बेमिसाल हौसले और जज्बे के कारण पूरे देश के लिए मिसाल पेश कर रही है.
छतरपुर जिले के परा गांव की रहने वाली ममता को पढ़ाई का ऐसा जुनून है कि जन्म से हाथ नहीं होने के बावजूद उसने अब तक की पढ़ाई और परीक्षा हाथ ना होने के बावजूद पैरों से लिख कर पूरी की है. स्थानीय महाराजा कॉलेज में बीए की पढ़ाई कर रही ममता को जिला मुख्यालय में द्वितीय वर्ष की परीक्षा दे रही है.
बाएं पैर से कॉपी में लिख रही है उत्तर
ममता का एक छोटा अविकसित सा हाथ है, जिसमें पंजे की बजाए एक नाममात्र की अंगुली है. वह नगर के महाराजा कॉलेज, छतरपुर से बीए प्रथम वर्ष की वार्षिक परीक्षा बाएं पैर से कॉपी में उत्तर लिख कर दे रही है. कृषि पर जीविको पार्जन करने वाले देशराज पटेल की बेटी का उसके परिवार वाले काफी ध्यान भी रखते हैं. पढ़ाई के प्रति उसकी ललक को देखकर उसके पिता ने उसे स्थानीय शासकीय प्राथमिक विद्यालय में नामांकन करवाया. इस दौरान उन्हें लोगों के कई सवालों का भी सामना करना पड़ा.
चुनौती को ममता ने स्वीकारा
मीडिया से बातचीत में ममता ने बताया कि उसने अपनी इस अशक्तता को ईश्वर की मर्जी और एक चुनौती समझ कर स्वीकारा. अपनी पढा़ई की शुरुआत के दौरान से पैर से लिखने का अभ्यास किया. काफी कठिनाई के बाद मेहतन रंग लाई. स्कूल में पैर से लिखते देख स्कूल के बच्चे और गांव के लोग मुझे कौतूहल भरी नजरों से देखते थे. लेकिन मेरा हौसला भी बढ़ाते थे.
दिव्यांगता के बावजूद लक्ष्य को पाने का किया प्रयास
ममता ने यह भी कहा कि मेरी इस शारिरीक कमी के लिए ईश्वर भी दोषी नहीं है. आज के समय में अच्छे खासे हाथ पैर वाले बच्चे ढंग से पढ़ाई नहीं कर पाते और अपने माता पिता का सिर दर्द बने हैं. जबकि मैंने दिव्यांगता के बावजूद लक्ष्य को पाने के लिए हमेशा प्रयास किया.
वहीं, ममता के कॉलेज के प्रोफेसर सुमति प्रकाश जैन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि लेज प्रशासन ने उसे हर तरह का सहयोग और मार्गदर्शन दिया है.