मकर संक्रांति के दिन लगता है 'आशिकों का मेला', कपल्स आते हैं पूजा करने; जानें मंदिर का इतिहास
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मकर संक्रांति के दिन लगता है 'आशिकों का मेला', कपल्स आते हैं पूजा करने; जानें मंदिर का इतिहास

Natbaba Temple: मकर संक्रांति के पर्व पर यूपी के बांदा में एक अनोखा मेला लगता है. यहां ऐतिहासिक भूरागढ़ दुर्ग में 'आशिकों का मेला' लगता है. अपने प्रेम को पाने के लिए हजारों जोड़े इस दिन यहां आकर विधिवत पूजा करते हैं और मन्नत मांगते हैं. 

मकर संक्रांति के दिन लगता है 'आशिकों का मेला', कपल्स आते हैं पूजा करने; जानें मंदिर का इतिहास

Makar Sankranti: मकर संक्रांति के पर्व पर यूपी के बांदा में एक अनोखा मेला लगता है. यहां ऐतिहासिक भूरागढ़ दुर्ग में 'आशिकों का मेला' लगता है. अपने प्रेम को पाने के लिए हजारों जोड़े इस दिन यहां आकर विधिवत पूजा करते हैं और मन्नत मांगते हैं. हर साल इस किले के नीचे बना नटबाबा के मंदिर में मेला लगाया जाता है. मेले में दूर–दूर से लोग आते हैं. कहते हैं कि यह जगह प्रेम करने वालों के लिए इबादगाह से कम नहीं है. जहां आकर उन्हें लगता है कि इस जगह मन्नत मांगने से उन्हें उनका मनचाहा प्रेम मिल जाएगा. हालांकि, इस मंदिर और नटबाबा के बारे में आपको इतिहास में कुछ नहीं मिलेगा. लेकिन बुंदेलियों के दिलों में आपको नटबाबा की कहानी जरूर मिलेगी.

क्या है नटबाबा मंदिर की कहानी?

माना जाता है कि तकरीबन 600 साल पहले महोबा जिले के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे. किले से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गांव में रहने वाला नट जाति का 21 साल का युवक किले में नौकर था. किलेदार की बेटी को नट बीरन से प्यार हो गया, जिसके बाद वह अपने पिता यानी किलेदार से नट से शादी करवाने के लिए जिद्द करने लगी. नोने अर्जुन सिंह ने अपनी बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पार बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी सूत की रस्सी (कच्चे धागे की रस्सी) पर चढ़कर किले तक आएगा, तभी उसकी शादी राजकुमारी के साथ करायी जाएगी.

बीरन ने नोने अर्जुन सिंह की शर्त मान ली. खास मकर सक्रांति के दिन वह सूत पर चढ़कर किले तक आने लगा. चलते–चलते उसने नदी पार कर ली. लेकिन जैसे ही वह किले के पास पहुंचा, नोने अर्जुन सिंह ने किले से बंधे सूत के धागे को काट दिया. बीरन ऊंचाई से चट्टानों पर आ गिरा और उसकी मौत हो गयी. जब नोने अर्जुन सिंह की बेटी ने किले की खिड़की से बीरन की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान पर उसकी भी मौत हो गयी. दोनों प्रेमियों की मौत के बाद किले के नीचे ही दोनों की समाधि बना दी गयी, जिसके बाद इसे मंदिर के रूप में बदल दिया गया.

किले को माना जाता है- बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक

भूरागढ़ का किला सिर्फ एक इतिहास का पन्ना या टुकड़ा नहीं है, जोकि वक्त के साथ पुराना हो जायेगा या ढह जायेगा. यह बलिदान, देशभक्ति, संप्रभुता और समानता का प्रतीक है. यह किला उस लड़ाई का गवाह है जहां अलग–अलग संप्रदायों, नस्लों, समुदायों, धर्मों के लोगों ने एक दूसरे का हाथ थाम, विदेशी शासकों के खिलाफ लंबी जंग लड़ी थी. इसी लड़ाई में ब्रिटिश शासन से आजादी प्राप्त करने के लिए बांदा को भारत का पहला शहर बनाया गया था. बांदा का इतिहास अभी और आने वाली कई पीढ़ियों को गौरवांवित होने का मौका देता रहेगा!

रिपोर्ट: अतुल मिश्रा

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