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नई दिल्ली: पिछले एक वर्ष से अधिक समय से वुहान (Wuhan) में कोरोनो वायरस के प्रकोप से निपट पाने में अक्षम रहने और वायरस की उत्पत्ति और उसके स्रोत की जानकारी छिपाने के लिए चीन की दुनिया भर में आलोचना हो रही है. पिछले साल जनवरी में डॉ ली वेनलियांग (Dr li Wenliang) की मृत्यु की खबर फैलने के बाद आलोचना की एक नई लहर फैल गई. डॉ ली वेनलियांग (Dr li Wenliang) ही वे व्यक्ति थे जिन्होंने सबसे पहले दुनिया को कोविड-19 (Covid-19) की उत्पत्ति के बारे में आगाह किया था.
इसके जवाब में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ऑनलाइन माध्यमों पर बढ़ती आलोचना से निपटने के लिए मीडिया कंटेंट की सेंसरशिप बढ़ा दी है. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) इन आलोचनाओं को पार्टी के लिए खतरा मानते हैं. चीनी सरकार शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से अपनी खामियों या गलतियों को स्वीकार करेगी. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा से अपने ऊपर लगे आरोपों और संलिप्तताओं से ध्यान भटकाने के लिए घरेलू स्तर पर राष्ट्रवादी भावनाओं का दुरुपयोग करने की कोशिश करती है और एक आम दुश्मन पर आरोप मढ़ने का प्रयास करती है, जिसे पार्टी की गलतियों के लिए दोषी ठहराया जा सके.
कोविड-19 को दुनियाभर में फैलाने और वायरस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने के बाद चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन प्राप्त करने के लिए ‘वैक्सीन कूटनीति’ का सहारा लेना शुरू कर दिया है. वायरस उत्पन्न करने वाला देश होते हुए भी चीन वायरस से पीछा छुड़ाने वाला पहला देश बन गया था. इसके चलते, अन्य देशों और कंपनियों की तुलना में चीन बहुत पहले टीके पर शोध शुरू कर सका. इसी के साथ, महामारी के शुरुआती चरणों में चीन को वायरस का स्ट्रेन उपलब्ध होने का भी अतिरिक्त लाभ मिला.
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रिपोर्टों के अनुसार, चीन सरकार ने अपनी वैक्सीन कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सद्भावना हासिल करने को इतना अधिक महत्व दिया कि उसने अपने घरेलू वैक्सीन अभियान से भी समझौता करने से गुरेज नहीं किया. चीन ने घरेलू स्तर पर दिए गए कोविड-19 टीकों की तुलना में कहीं अधिक संख्या में टीके की खुराकों का निर्यात किया है. 15 फरवरी तक, चीन ने कम से कम 46 मिलियन कोरोना वायरस टीके और टीके की सामग्री विभिन्न देशों को निर्यात की थी. चीनी सरकार कई अन्य देशों को लाखों खुराकें भेजने की योजना पर काम कर रही है.
कोरोना वायरस वैक्सीन के लिए शोध और निवेश करने में अक्षम मध्य और निम्न-आय वाले देश चीनी कोरोना वैक्सीन प्राप्त करने के लिए तत्परता से आगे आए. लेकिन दुनिया को चीनी कोरोना वायरस वैक्सीन से पाट देने की चीनी योजना महज तिलिस्म साबित हुई. चीन अपनी ‘सॉफ्ट पावर’ को बढ़ाने के लिए कोविड-19 वैक्सीन का इस्तेमाल सौदेबाजी के लिए कर रहा है, जिससे मध्यम और निम्न-आय वाले देश वैक्सीन प्राप्त कर चीन के कर्जदार बन जाएं.
रिपोर्टों के अनुसार, पिछले साल जुलाई में चीन सरकार ने लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर कर्ज देने की घोषणा की थी, जिसका उपयोग चीन-निर्मित वैक्सीन खरीदने के लिए किया जाना था. अनिवार्य रूप से, लैटिन अमेरिकी और कैरेबियाई देशों को चीन अपनी वैक्सीन खरीदने के लिए कर्ज दे रहा था. दिसंबर की शुरुआत में, इंडोनेशिया को चीन द्वारा निर्मित सिनोवैक वैक्सीन की करीब 1.2 मिलियन खुराकें मिलीं. चीन के अपरीक्षित टीके पर अपना सब कुछ झोंक कर नि:संदेह ही इंडोनेशिया जोखिम भरा कदम उठा रहा है. उसे उम्मीद है कि सिनोवैक एशिया में कोविड-19 के प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद करेगा. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की यह मदद बिना शर्त नहीं है.
सिंगापुर स्थित यूसुफ इशाक इंस्टीट्यूट द्वारा दिसंबर 2020 में प्रकाशित एक पेपर में कहा गया कि चीन अपने क्षेत्रीय एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अपने टीके के दान का उपयोग करने का इरादा रखता है. इस एजेंडे में दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित और संवेदनशील विषय प्रमुखता से शामिल हैं.
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चीन ने ब्राजील को वैक्सीन की 46 मिलियन और तुर्की को 50 मिलियन खुराक प्रदान करने के लिए भी समझौते किए हैं. ‘कैनसिनो बायोलॉजिक्स’ ने भी चीनी सेना की मदद से एक और संभावित कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है. साथ ही, मैक्सिको को वैक्सीन की 35 मिलियन खुराक भेजने की भी योजना है.
चीन की इन कोशिशों ने कर्ज में फंसाने और चिकित्सा-संबंधी नैतिकता के बारे में दुनियाभर में चिंताएं पैदा कर दी हैं. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीन कूटनीति देशों को प्रभावित और नियंत्रित करने के लिए चीन की चाल है. यह ठीक वैसा ही तरीका है जिसके तहत इनफ्रास्ट्रक्चर के लिए विकासशील देशों द्वारा कर्ज़ लिए जाने से चीन के प्रति उनकी निर्भरता और बढ़ गई है.
कुछ अन्य विशेषज्ञों को डर है कि चीन ने कमजोर देशों को प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया है क्योंकि चीनी वैक्सीन से संबंधित डेटा को अभी तक पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं किया गया है. 31 जुलाई 2020 को अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फॉसी ने कहा, 'मेरे अनुसार, परीक्षण करने से पहले वितरित करने के लिए वैक्सीन तैयार होने का दावा करना बेहद समस्याजनक है.'
आमतौर पर परीक्षण की अनुमति देने से पहले टीकों पर कई वर्षों का शोध और अनुसंधान किया जाता है. चीनी कोविड-19 वैक्सीन को सिनोवैक बायोटेक नामक चीन की एक सरकारी कंपनी द्वारा विकसित किया गया है. चूंकि कंपनी राज्य-संचालित है, इसमें पारदर्शिता का आभाव है- जिसका अर्थ है कि चीनी वैक्सीन के बारे में डेटा अभी उपलब्ध नहीं कराया गया है.
‘नेचर’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूएई और बहरीन ने बताया कि वैक्सीन की प्रभावकारिता 86% है, जो अपने आप में अजीब है. वैक्सीन निर्माताओं ने यूएई और बहरीन में आयोजित वैक्सीन परीक्षणों के परिणामों की पुष्टि नहीं की है.
वैज्ञानिक पत्रिका ‘द लांसेट’ के अनुसार, चीनी वैक्सीन निर्माताओं ने केवल पहले और दूसरे चरण के परीक्षणों के परिणामों को दुनिया के सामने रखा है. 80% प्रभावकारिता का दावा करने वाले तीसरे चरण के परीक्षण का डेटा अभी भी सार्वजनिक किया जाना बाकी है.
चीनी टीके का परीक्षण ब्राजील में भी किया जा रहा था. ब्राजील के शोधकर्ताओं ने परिणामों को सामने नहीं आने दिया है. पारदर्शिता की इस कमी ने एक बार फिर रहस्यों को छिपाने की कोशिश करने के चीन के नापाक मंसूबों को सामने ला दिया.
न्यूयॉर्क स्थित काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में वैश्विक स्वास्थ्य के वरिष्ठ फेलो यानजोंग हुआंग ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि टीके से संबंधित घोटालों पर चीन के इतिहास को देखते हुए चीनी वैक्सीन के बारे में व्यक्त की जा रही चिंताएं बिल्कुल जायज हैं.
संयुक्त राष्ट्र समर्थित कोवैक्स पहल के माध्यम से कोविड-19 टीके की एक मिलियन खुराक दिसंबर 2020 तक कंबोडिया को मिलनी थी. बहरहाल, कंबोडिया ने दोहराया कि वह चीन की सिनोवैक वैक्सीन का उपयोग नहीं करेगा.
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने कहा कि कंबोडिया एक कूड़ेदान और टीका परीक्षण करने का स्थान नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि जब तक कोविड-19 के टीके को डब्ल्यूएचओ और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थानों से मंजूरी नहीं मिल जाती, तब तक कंबोडियाई नागरिक घर बैठने और 'फेस मास्क पहनने' के लिए तैयार हैं.
चीन ने अफ्रीकी देशों को फंसाने के लिए भी वैक्सीन कूटनीति का उपयोग करने का प्रयास किया है. चीन ने ठाना था कि वह अफ्रीका को चीन निर्मित टीके दे कर अफ्रीकी महाद्वीप पर कोरोनो वायरस के उन्मूलन में मदद करेगा. स्वास्थ्य कूटनीति के माध्यम से अफ्रीका में अपनी स्थिति मजबूत करने और राजनैतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए चीन टीकों का लालच लगातार दे रहा है.
वैक्सीन को वैश्विक जन-सामग्री बनाने के अपने प्रयास के तहत चीनी विदेश मंत्रालय ने अब तक 19 अफ्रीकी देशों को मदद करने की बात की है. अभी हाल ही में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चीनी कोरोना वायरस वैक्सीन लगाए जाने के 48 घंटों के भीतर ही कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए.
परोपकार के बहाने कोविड-19 के टीके बांटने के चीनी प्रयासों ने एशिया में भी तनाव पैदा कर दिया है. चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ गया है और दोनों देशों के बीच वैक्सीन की खुराक देने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है. थोड़े समय में ही भारत ने वैक्सीन निर्माण की अप्रत्याशित क्षमता विकसित की है और साथ ही एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए भी करार किया है.
इतिहास के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का संचालन करने के अलावा भारत ने दुनियाभर के देशों को लगभग 60 मिलियन कोरोनो वायरस टीकों की खुराक दान करने में भी अतुलनीय सफलता हासिल की है. भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसे वैक्सीन निर्माता हर दिन 2.5 मिलियन कोरोना वायरस वैक्सीन का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति भी अपना दायित्व निभा रहा है.
भारत द्वारा शुरू की गई 'वैक्सीन मैत्री' पहल की चारों तरफ सराहना की जा रही है. भारत की सफल और व्यावहारिक वैक्सीन कूटनीति ने चीन की वैक्सीन कूटनीति और सद्भावना बढ़ाने के लिए वैक्सीन का लाभ उठाने के उसके प्रयासों पर बढ़त हासिल की है.
चीन की ‘वैक्सीन डिप्लोमैसी’ की हताश चाल के अलावा भी चीन ने कई और प्रयास किए हैं जिससे वह अपनी प्रारंभिक विफलताओं से दूर करने का विमर्श खड़ा कर सके और दोष मढ़े जाने से बच सके. 2020 के मध्य में चीन ने ‘मास्क डिप्लोमेसी’ के शिगूफे की भी शुरुआत की थी, जिसके तहत बीजिंग ने महामारी से पीड़ित देशों को पीपीई किट और मास्क मुहैया कराए थे. लेकिन समर्थन हासिल करने की बीजिंग की कोशिशों को तब झटका लगा था, जब यूरोपीय देशों ने चीन द्वारा भेजे गए उपकरणों की घटिया गुणवत्ता को देखते हुए उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.
तीसरे चरण के परीक्षण परिणामों को छिपाने की चीन की कोशिशों से लगता है कि वह अपने ‘मास्क डिप्लोमेसी’ की गलती को दोहरा सकता है. लेकिन इस बार इन देशों के नागरिकों को चीन के अपरीक्षित वैक्सीन से उपजे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को भी भुगतना पड़ेगा.