सावधान! भारत में बिक रहीं 'मेड इन पाकिस्तान' क्रीम्स, गोरे होने की बजाय आप बन जाएंगे रोगी
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सावधान! भारत में बिक रहीं 'मेड इन पाकिस्तान' क्रीम्स, गोरे होने की बजाय आप बन जाएंगे रोगी

पाकिस्तान भारत समेत दुनियाभर के देशों में गोरा बनाने के नाम पर मौत का सामान बेच रहा है.

पाकिस्तान में निर्मित अनीजा गोल्ड ब्युटी क्रीम अमेजन इंडिया पर बिक रही है.

नई दिल्ली: अगर आप भी Skin Whitening Cream यानी त्वचा को गोरा बनाने वाली क्रीम लगाने के शौकीन हैं तो आपको हमारा ये विश्लेषण ज़रूर पढ़ना चाहिए. त्वचा को गोरा बनाने का वादा करने वाली Creams के विज्ञापनों में आपने अक्सर देखा होगा कि इन क्रीम्स को लगाने वाली महिला या पुरुष को फटाफट कामयाबी मिल जाती है और ये लोग रातों रात स्टार बन जाते हैं. अगर आप भी इस तरह के विज्ञापनों से प्रभावित हैं तो हम आपको बता दें कि ये उत्पाद (Products) आपके चेहरे को गोरा बनाने की बजाय आपको जीवन भर के लिए रोगी बना सकते हैं.  

भारत समेत दुनियाभर के देशों में गोरा बनाने के नाम पर मौत बिक रही है. दुकानों से लेकर ऑनलाइन पोर्टल पर स्कीन लाइटिंग के नाम पर धड़ल्ले से पारा (Mercury) युक्त क्रीम बिक रही है. सरकार द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद भारत ही नहीं, दुनियाभर में ऐसी क्रीम का बड़ा बाजार है.

रिपोर्ट में हुआ यह खुलासा
12 देशों के मर्क्युरी प्रदूषण पर काम करनेवाली संस्था ग्लोबल अलायंस ऑफ एनजीओ फॉर जीरी मर्कियुरी वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट में यह सामने आया है. स्टडी में 158 स्कीन लाइटिंग क्रीम के सैंपल लिए गए, जिनमें से 95 सैंपल में मर्क्युरी की मात्रा 40 पीपीएम से 113000 पीपीएम के तक पाई गई है. भारत में कलेक्ट की गई स्कीन लाइटनिंग क्रीम में मर्क्युरी अलार्मिंग लेवल 48 पीपीएम से 113000 पीपीएम तक पाया गया जो कि कानूनी लिमिट 1 पीपीएम (प्रति मिलियन) से कई ज्यादा है.

एशिया में बनाए जाते हैं प्रोडक्ट
भारत में स्कीन लाइटनिंग क्रीम के सैंपल ऑनलाईन पोर्टल और दुकान से कलेक्ट किए गए, जिनमें से अमेजन से क्रीम के 9 सैंपल, फ्लिपकार्ट से 2 सैंपल और गफ्फार मार्केट से 5 सैंपल लिए गए. स्टडी के मुताबिक, अधिकतर प्रोडक्ट एशिया में बनाए जाते हैं, जिनमें पाकिस्तान में 62 फीसदी, थायलैंड में 19 फीसदी और चीन में 13 फीसदी हैं. 12 देशों में 158 सैंपल टेस्ट किए गए जिनमें से 60 फीसदी प्रोजक्ट में mercury की मात्रा तय मानक 1 पीपीएम से कहीं ज्यादा पाई गई. भारत से 16 स्कीन लाइटनिंग प्रोडक्ट को टेस्ट किया गया है.

- 10 सैंपल अमेजन से खरीदे गए जिनमें  mercury की मात्रा 46.95 पीपीएम से 113833.33 पीपीएम थी.
- 4 सैंपल गफ्फार मार्केट से खरीदे गए जिनमें mercury की मात्रा 48.17पीपीएम से 110000 पीपीएम थी.  
- फ्लिपकार्ट से खरीए गए 2 सैंपल में mercury की मात्रा 65 पीपीएम से 10000 पीपीएम थी.
- mercury  की मात्रा 48 पीपीएम से 113000 पीपीएम के बीच होना तय मानक 1 पीपीएम से कहीं ज्यादा थी.

mercury के लिए टेस्ट की गई क्रीम और उन्हें बनानेवाले देश:-
अनीजा गोल्ड ब्युटी क्रीम - पाकिस्तान- अमेजन इंडिया  - 54.60 ppm
फेस फ्रेश वाइटनिंग क्रीम - पाकिस्तान- अमेजन इंडिया  - 97906 ppm
फैजा ब्यूटी वाइटनिंग क्रीम - पाकिस्तान- गफ्फार मार्केट - 50ppm
पार्ली क्रीम - पाकिस्तान- गफ्फार मार्केट - 113833ppm

स्टैंडर्ड का गंभीर उल्लंघन
भारत समेत दुनिया के 110 देश मिनामाटा कनवेंशन से बंधे हैं, जिसके तहत कॉस्मेटिक में मर्क्युरी की मात्रा तय करने और धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल पूरी तरह बंद किया जाना तय हुआ था. इसके बावजूद विश्वभर की सरकारों द्वारा प्रतिंबधित अवैध और अधिक mercury  मात्रा से बने प्रोडक्ट लोकल बाजार और ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर बिक रहे हैं जो कि नेशनल स्टैंडर्ड का गंभीर उल्लंघन है.

मर्क्युरी से कैंसर का खतरा
Mercury एक तरह का न्यूरोटॉक्सिन है जो किडनी, लिवर और गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचाता है. रिसर्च में पाया गया कि Mercury यानी पारा शरीर में जाने पर कैंसर की वजह भी बन सकता है.

त्वचा से जुड़ी बीमारियां
WHO के मुताबिक, क्रीम में पाया जाने वाला Mercury यानी पारा त्वचा से जुड़ी बीमारियां देने के साथ साथ डिप्रेशन, घबराहट और peripheral neuropathy जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है. WHO के मुताबिक के मुताबिक, चीन में 40 प्रतिशत महिलाएं और भारत में 61 फीसदी लोग त्वचा को गोरा बनाने वाली क्रीमों का इस्तेमाल करते हैं.

अंग्रेज़ों के ज़माने से गोरे रंग की चाहत
क्रीम और cosmetic Products में पाया जाने वाला पारा अक्सर पानी में मिल जाता है और ये पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है. यानी गोरापन पाने की आपकी चाहत आपके आस पास के पर्यावरण को काला कर देती है. भारत में Cosmetic Products में mercury के इस्तेमाल की इजाजत नहीं है. भारत में फेयरनेस क्रीम के कारोबार की शुरुआत 1975 में हुई थी, लेकिन गोरा रंग पाने की चाहत भारतीयों के दिलों में अंग्रेज़ों के ज़माने से है.

 

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