Trending Photos
पॉडकास्ट:
नई दिल्ली: कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist Party Of China) के अधिवेशन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) का रुतबा, चीन के सबसे बड़े नेता माओ त्से तुंग (Mao Zedong) के बराबर कर दिया गया है और इसी के साथ राष्ट्रपति पद पर उनके तीसरे कार्यकाल का रास्ता भी खुल गया है यानी अब शी जिनपिंग चीन में सर्वशक्तिशाली बन जाएंगे. चीन की सत्ता पर शी जिनपिंग के इस नियंत्रण का असर भारत और दुनिया पर क्या होगा? आज हम इसका विश्लेषण करेंगे, लेकिन पहले आप ये पूरी खबर समझिए.
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist Party of China) का चार दिवसीय महाअधिवेशन एक ऐतिहासिक अंदाज में समाप्त हुआ. इस अधिवेशन में उस Historical Resolution यानी ऐतिहासिक प्रस्ताव को पास कर दिया गया, जिसके तहत अब चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति माओ त्से तुंग के बराबर दर्जा दिया जाएगा. सरल शब्दों में कहें तो चीन के इतिहास में शी जिनपिंग का कद अब माओ त्से तुंग जितना बड़ा होगा और मौजूदा राजनीतिक परिस्थियों में वो चीन के सर्वोच्च नेता भी माने जाएंगे. यानी अब सही मायनों में चीन, चीन ना रह कर शी जिनपिंग का एक देश बन जाएगा. हालांकि यहां आपको ये समझना चाहिए कि शी जिनपिंग दूसरे माओ त्से तुंग क्यों बनना चाहते हैं?
चीन के 100 वर्षों के कम्युनिस्ट इतिहास में माओ त्से तुंग अकेले ऐसे नेता हैं, जो आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहे. उनके पास इतने विशेष अधिकार और शक्तियां थीं कि उनके गलत फैसलों और नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत भी किसी में नहीं थी. वो खुद ही जनता थे, खुद ही सरकार थे और खुद ही पूरा देश थे. और यही वजह है कि शी जिनपिंग भी इसी तरह शासन करने के लिए खुद को माओ त्से तुंग की तरह स्थापित करना चाहते हैं. और ऐसा तभी हो सकता है, जब वो भी चीन के आजीवन राष्ट्रपति बन जाए. तो ये होगा कैसे, इसे समझना होगा.
देखें वीडियो
चीन में एक ही पार्टी का सिद्धांत हैं और ये पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist Party of China) है और इसकी सेंट्रल कमेटी ही चीन में सारे बड़े फैसले लेती है. ये ऐतिहासिक प्रस्ताव भी इसी कमेटी ने पास किया है, जिसमें कुल 370 लोग हैं. यही 370 सदस्य अगले साल यानी साल 2022 में इस बात का निर्णय लेंगे कि चीन का नया राष्ट्रपति कौन होगा. अब सोचिए जिस कमेटी ने शी जिनपिंग को माओ त्से तुंग के बराबर दर्जा दिया है, वो कमेटी राष्ट्रपति के लिए उनका चुनाव नहीं करेगी तो किसका करेगी.
असल में ये एक सुनियोजित प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसके तहत पहले इसी कमिटी ने साल 2018 में उस प्रस्ताव को मंजूर किया, जिसके तहत चीन में 10 साल के बाद राष्ट्रपति पद छोड़ने की शर्त हटा ली गई थी. फिर ऐतिहासिक प्रस्ताव पास करके शी जिनपिंग (Xi Jinping) को चीन के कम्युनिस्ट इतिहास में सर्वोच्च नेता घोषित कर दिया गया और अगले साल यही कमेटी बतौर राष्ट्रपति उनके तीसरे कार्यकाल को भी मंजूरी दे देगी और आने वाले भविष्य में 68 वर्षीय शी जिनपिंग खुद को इतना मजबूत कर लेंगे कि उनके लिए हर पांच साल में अपना कार्यकाल बढ़वाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. आप कह सकते हैं कि वहां राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया एक रस्म अदायगी तक सीमित हो जाएगी.
अगर शी जिनपिंग (Xi Jinping) अगले 15 सालों तक भी चीन के राष्ट्रपति बने रहे, तो इसका दुनिया और भारत पर क्या प्रभाव होगा? अब आप ये समझिए. भारत के लिए सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि वो शी जिनपिंग के कार्यकाल में सीमा विवाद को लेकर ज्यादा आशावान नहीं होगा. चीन की विस्तारवादी भूख की वजह से वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control) पर गतिरोध लंबे समय तक बना रहेगा और शी जिनपिंग की पूरी कोशिश होगी कि वो अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख की तरफ से भारत पर दबाव बना कर रखे. भारत के साथ चीन उन देशों पर भी दबाव बनाएगा, जिसका उसके साथ सीमा को लेकर विवाद है. कुल मिला कर शी जिनपिंग का कार्यकाल बढ़ने से चीन की सेना पहले से और ज्यादा आक्रामक हो जाएगी और दुनिया में शांति पसंद देशों के लिए ये अच्छा संकेत नहीं होगा.
शी जिनपिंग (Xi Jinping) के आजीवन राष्ट्रपति बनने से एक बड़ा नुकसान ये भी होगा कि दुनिया को चीन के बारे में कभी कोई सही और सटीक जानकारी नहीं मिल पाएगी. चीन की आतंरिक व्यवस्था गोपनीय होने से दुनिया कभी उसके बारे में कोई सही आंकलन नहीं कर पाएगी और ये बहुत खतरनाक होगा. कोरोना वायरस (Coronavirus) की महामारी में दुनिया ये देख चुकी है. अगर चीन ने इस वायरस की उत्पत्ति को रहस्य बना कर नहीं रखा होता और WHO जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को निष्पक्ष जांच करने दी होती तो आज दुनिया के पास इस बीमारी के बारे में और अधिक जानकारी होती और भविष्य में ऐसी बीमारियों से लड़ने की योजना भी बनाई जा सकती थी, लेकिन चीन द्वारा सबूतों को गोपनीय रखने से ऐसा नहीं हो पाया. और शी जिनपिंग जैसे जैसे और मजबूत होंगे, वहां से खबर खोद कर निकालना और मुश्किल हो जाएगा.
इसके अलावा इससे आतंकवाद के भी अच्छे दिन आ जाएंगे. अगर शी जिनपिंग के पास चीन की सत्ता का पूरा नियंत्रण हुआ तो फिर अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को उसकी तरफ से खुला समर्थन दिया जाएगा, जो पूरी दुनिया में आतंकवाद एक्सपोर्ट करते हैं. इसके अलावा दुनिया शायद फिर कभी आतंकवादियों को प्रतिबंधित नहीं कर सकेगी, क्योंकि चीन अपनी ताकत से ऐसा होने नहीं देगा. जैसा कि वो आतंकवादी मसूद अजहर के मामले में करता आया है. चीन अब तक तीन बार मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में ब्लैक लिस्ट करने से बचा चुका है. अमेरिका और भारत जैसे देशों के साथ चीन का टकराव बढ़ने से दुनिया में आर्थिक अनिश्चितता भी बढ़ेगी और Trade War का ख़तरा बना रहेगा.
इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का मुद्दा कभी चीन के एजेंडे में नहीं होगा. इसके संकेट पिछले दिनों स्कॉटलैंड के ग्लासगो में हुए COP-26 समिट से ही मिल गए थे, जिसमें शी जिनपिंग ने हिस्सा नहीं लिया था. इसमें चुनौती ये है कि अगर चीन ने जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई तो इसकी कीमत सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि एशिया के दूसरे देशों को भी चुकानी होगी. चीन के लोगों के लिए भी शी जिनपिंग (Xi Jinping) का आजीवन राष्ट्रपति बनना दुर्भाग्यपूर्ण होगा. इससे वहां तानाशाही बढ़ जाएगी, नागिरकों को उनके मूलभूत अधिकार नहीं मिलेंगे और सरकार और शी जिनपिंग के खिलाफ बोलने वालों को फांसी की सजा सुना दी जाएगी.
दुनिया में चीन द्वारा होने वाली जासूसी और साइबर हमले भी बढ़ जाएंगे, जिनसे आपका जीवन सीधे तौर पर प्रभावित होगा. इसके अलावा लंबे समय तक शी जिनपिंग (Xi Jinping) के राष्ट्रपति बने रहने से दुनिया में अस्थिरता का माहौल भी पैदा होगा. इससे अमेरिका के साथ चीन के रिश्तों में तनाव और बढ़ सकता है कुल मिला कर कहें तो चीन में आज जो भी हो रहा है, वो भारत ही नहीं दुनिया के लिए भी चिंताजनक है.
लाइव टीवी