माता का वो शक्तिपीठ जहां पूरी होती है अधूरी मनोकामना, मत्स्य पुराण में भी स्वरूप का वर्णन
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माता का वो शक्तिपीठ जहां पूरी होती है अधूरी मनोकामना, मत्स्य पुराण में भी स्वरूप का वर्णन

मंदिर में दो मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें से छोटी मूर्ति मां भगवती की है जिन्हें आदि शक्ति के नाम से जाना जाता है, कहते हैं कि मां भगवती सतयुग में अवतरित हुईं और ये उनकी स्वयंभू पीठ है.

आरा की अधिष्ठात्री देवी मां अरण्या भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करतीं हैं.....

नई दिल्ली : बिहार के भोजपुर जिले में आरा और आरा की अधिष्ठात्री मानी जाने वाली मां अरण्य देवी. जिनके दर्शन आज हम आपको करवाने वाले हैं. बिहार में चार स्थानों पर माता सती के शरीर के अंग गिरे थे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई.

  1. भगवती सतयुग में अवतरित हुईं 
  2. अरण्या देवी का धाम शक्ति पीठ
  3. भक्तों की मनोकामना होती है पूरी

उन्हीं में आरा की अरण्य देवी भी हैं. आरा को शोध संगम क्षेत्र के मान से जाना जाता था. जिसका वर्णन त्रिपुरा रहस्य और मत्स्य पुराण में भी मिलता है. माना जाता हैं कि यहां माता सती की दाहिनी जंघा गिरी थी. 

'शक्ति पीठ भी सिद्धपीठ भी है तीर्थस्थल'
प्राचीन समय में गंगा और सोन नदी के संगम पर अरण्य वन था. अरण्य का अर्थ होता है जंगल, घने जंगल में स्थापित यह शक्ति पीठ भी है और सिद्धपीठ भी. भारत का ये अद्वितीय स्थल भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए जाना जाता है. 

'भक्तों की अधूरी कामना यहां होती है पूरी'
यहां भक्तों और साधक की हर तरह की साधना पूरी होती है. माता भक्तों की अधूरी कामनाएं पूरी करती हैं.

'सतयुग से लेकर कलियुग तक की मान्यता'
मंदिर में दो मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें से छोटी मूर्ति मां भगवती की है जिन्हें आदि शक्ति के नाम से जाना जाता है, कहते हैं कि मां भगवती सतयुग में अवतरित हुईं और ये उनकी स्वयंभू पीठ है.

'धर्मराज युधिष्ठिर ने की मंदिर की स्थापना'
जबकि बड़ी मूर्ति मां अरण्य देवी की है, माना जाता है अरण्य देवी के मंदिर की स्थापना द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने की. मंदिर में स्थापित ये मूर्तियां शिव शक्ति स्वरूप में हैं. यानी यहां पर शिव और शक्ति दोनों का वास है. 

'इन तिथियों में पूजन का विशेष फल'
सोमवार और शुक्रवार को मंदिर में पूजन की विशेष मान्यता है. चतुर्दशी को, आमवस्या, पूर्णिमा आदि तिथियों पर यहां भक्त विशिष्ट पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. मंदिर में अरण्य देवी के अलावा कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं हैं. 

'इस तरह से बंद हुई यहां बलि की प्रथा'
लेकिन 1953 में मंदिर के निर्माण के समय यहां केवल अरण्य देवी और गणेश भैरव की प्रतिमा थी. मां अरण्य देवी के दरबार में पहले बलि भी दी जाती थी. लेकिन बाद में जब मंदिर में माता लक्ष्मी, भगवान नारायण की स्थापना हुई, श्रीराम-लक्ष्मण दरबार बना और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति स्थापना हुई तब से बलि प्रथा बंद कर दी गई.

'भगवान गणेश और भैरव दर्शन जरूरी'
मंदिर की मान्यता है कि यहां विराजित भगवान गणेश और भैरव बाबा के दर्शन के बिना कोई साधना सिद्ध नहीं होती. भैरव बाबा के दरबार में भक्त मांगलिक कार्यों के लिए भी आते हैं. माता के दर्शन से पहले भक्तों को भगवान गणेश और भैरव बाबा के दर्शन करना अनिवार्य है. 

मंदिर में विशेष पर्वों पर लाखों की संख्या में क्षद्धालु आते हैं. प्रतिदिन यहां हजारों भक्त आस्था विश्वास के साथ दर्शन करने आते हैं. माता का मंदिर आस्था के जयघोष से भक्तिमय हो जाता है. आरा की अधिष्ठात्री आरा की रखवाली करती हैं और भक्तों के दुख हर कर उन्हें शक्ति प्रदान करने वाली हैं.

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