Mythology: जब महाबली रावण को राजा सहस्त्रार्जुन ने किया कैद, तब इस महान ऋषि ने कराया मुक्त
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Mythology: जब महाबली रावण को राजा सहस्त्रार्जुन ने किया कैद, तब इस महान ऋषि ने कराया मुक्त

Maharishi Vashishtha: सहस्त्रार्जुन की वीरता के सामने वीर पुरुष ही नहीं देवता भी नत मस्तक होते थे, किंतु वीर सहस्त्राजुर्जन से जब महर्षि पुलस्त्य ने रावण को छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने तनिक भी विचार करने की बजाय उनके संदेश को आदेश मानते हुए तुरंत ही छोड़ दिया.

Mythology: जब महाबली रावण को राजा सहस्त्रार्जुन ने किया कैद, तब इस महान ऋषि ने कराया मुक्त

Rishi Pulastya: सप्तऋषि मंडल के एक अन्य ऋषि हैं पुलस्त्य, यह भी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं और अपनी तपस्या, ज्ञान तथा दैवीय शक्तियों के माध्यम से जगत के प्राणियों के कल्याण में लगे रहते हैं. स्वभाव से इतने दयालु कि वह दुष्ट व्यक्ति को भी अभय दान दे देते हैं. एक बार लंकाधिपति महाबली रावण और उसके राक्षसों की दुष्टता इतनी अधिक बढ़ गई कि लोगों का जीवन ही मुश्किल हो गया. उसकी दुष्टता के चलते ही परमवीर सहस्त्रार्जुन ने रावण को अपने यहां बंदी बनाकर कैद खाने में डाल दिया था. 

सहस्त्रार्जुन की वीरता के सामने वीर पुरुष ही नहीं देवता भी नत मस्तक होते थे, किंतु वीर सहस्त्राजुर्जन से जब महर्षि पुलस्त्य ने रावण को छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने तनिक भी विचार करने की बजाय उनके संदेश को आदेश मानते हुए तुरंत ही छोड़ दिया. 

ऋषि पुलस्त्य की कई स्त्रियां और उनसे कई पुत्र थे. इन्हीं में से एक पुत्र दत्तोलि थे, जो स्वायंभुव मनवन्तर में अगस्त्य के नाम से प्रसिद्ध हुए. इन्हीं की एक पत्नी हविर्भू से विश्रवा का जन्म हुआ, जिसके कुबेर, रावण आदि पुत्र हुए थे. 

ऋषि पुलस्त्य की उदारता की एक कथा और बतायी जाती है. इस कथा के अनुसार, महर्षि वशिष्ठ के शक्ति सहित सौ पुत्रों नरभोजी राक्षस कल्माषपाद ने खा लिया. इस पर महर्षि वशिष्ठ शक्ति की पत्नी अदृश्यंती को लेकर हिमालय में चले गए. एक दिन उस सुनसान स्थान पर वेदाध्ययन की ध्वनि सुन महर्षि वशिष्ठ कौतूहल से देखने लगे पर उन्हें कोई नहीं दिखा. तब अदृश्यंती ने बताया उसके गर्भ में शक्ति का पुत्र है, यह आवाज उसी की है. जन्म के बाद उसका नाम पराशर पड़ा और जब उसे अपने पिता की हत्या की जानकारी हुई तो राक्षसों के नाश के लिए वह यज्ञ करने लगा. इस पर महर्षि वशिष्ठ के परामर्श से ऋषि पुलस्त्य का अनुरोध मानकर पराशर ने यज्ञ बंद कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर पुलस्त्य ने उन्हें सभी शास्त्रों का ज्ञान दिया. जो ज्योतिष के ज्ञाता ऋषि पराशर के नाम से विख्यात हुए.

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