पौष माह में मनाए जाने वाले इस त्योहार के संक्रांति नाम का तात्पर्य संक्रमण काल से है. बता दें संक्रांति पर देश के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग परंपराएं प्रचलित हैं
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नई दिल्लीः मकर संक्रांति का त्योहार ध्यान आते ही हमारे मन में सबसे पहले दो चीज ही आती हैं. एक इस त्योहार में बनने वाली खिचड़ी और दूसरी रंग बिरंगी पतंग. मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है, जो देश के हर हिस्से में अलग-अगल तरह से मनाया जाता है. पौष माह में मनाए जाने वाले इस त्योहार के संक्रांति नाम का तात्पर्य संक्रमण काल से है. बता दें संक्रांति पर देश के अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग परंपराएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक पतंगबाजी और खिचड़ी भी है. बता दें बिहार के मिथिलांचल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे हिंदी भाषी राज्यों के कई हिस्सों में इस दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
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वहीं तिल और गुड़ के लड्डू की परंपरा तो देश के लगभग हर प्रांत में फैली है. इसलिए इस दिन भगवान और पितरों को तिल दान किया जाता है. यही कारण है कि इसे लोग मकर संक्रांति के अलावा तिल संक्रांति भी कहते हैं. मकर संक्रांति में देश के कई शहरों में पतंग उड़ाने की परंपरा प्रचलित हैं इसी कारण इस त्योहार को पतंग पर्व भी कहा जाता है.
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मकर संक्रांति में खिचड़ी का महत्व
मकर संक्रांति के त्योहार से पहले घरों में कई सारे पकवान बनाए जाते हैं, लेकिन इस दिन खिचड़ी बनाने का सबसे अधिक महत्व है. साल भर में आपने भले ही कितनी ही बार खिचड़ी खाई हो लेकिन मकर संक्रांति जैसी खिचड़ी का स्वाद आपको सिर्फ मकर संक्रांति के मौक पर ही मिल सकता है. इस दिन खिचड़ी बनने के कारण देश के कई स्थानों में इसे खिचड़ी पर्व के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन सिर्फ चावल और उरद की दाल की ही खिचड़ी बनाई जाती है. मान्यता है कि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है.
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खिचड़ी बनने की परंपरा को शुरु करने वाले बाबा गोरखनाथ थे. ऐसी मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय में गोरखनाथ के योगियों को भोजन नहीं मिला था जिसके कारण वे शारीरिक रूप से कमजोर पड़ने लगे थे. इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था. इससे शरीर को तुरंत उर्जा भी मिलती थी. नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया. बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा. बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का अंश भी माना जाता है.
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यह है पतंग उड़ाने का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने को लोग धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानते हैं. पतंग उड़ाने की प्रचलित कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरुआत भगवान ने थी. ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान राम ने पहली बार इस त्योहार में पतंग उड़ाई थी तो वह पतंग इंद्रलोक में चली गई थी. भगवान राम की इस परंपरा को लोग आज भी श्रद्धा भाव के साथ मनाते हैं. भारत देश में लोग पतंग उड़ाने को शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानते हैं. पतंग उड़ाने से कई सारे शारीरिक व्यायाम होते हैं जिससे शरीर पूरी तरह से स्वस्थ रहता है.