Chaitra Navratri 3rd Day: चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है. 9 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष का शुभारंभ हुआ. आज नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी जी की पूजा करने का विधान है. कल यानी चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां दुर्गा के तृतीया स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी. आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा कैसे उत्पन्न हुईं.
चिरकाल में महिषासुर असुर का आतंक बहुत ज्यादा बढ़ने लगा था. इस असुर ने तीनों लोक में काफी तबाही मचाई थी. महिषासुर अपनी शक्तियों का उपयोग स्वर्ग को अपनाने पर करना चाहता था. स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमाने पर लगभग सफल होने वाला ही था तो स्वर्ग के देवी-देवता भयभीत हो गए. स्वयं स्वर्ग इंद्र नरेश भी इस महिषासुर के आंतक से चिंतित हो गए थे.
महिषासुर के आंतक से चिंतित होने के बाद मदद के लिए सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास गए. ब्रह्मा जी ने कहा कि इस असुर का अंत करना आसान नहीं है. ब्रह्मा जी ने सभी देवी-देवता को देवों के देव महादेव के पास जाने को कहा. महादेव के शरण में जाने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की सहमति ली और कैलाश पर्वत पहुंच गए. स्वयं स्वर्ग इंद्र नरेश ने भोलेनाथ को महिषासुर के आतंक के बारे में बताया.
नरेश इंद्र की बात सुन महादेव क्रोधित हो गए और उन्होंने कहां कि असुर को अपनी शक्तियों को गलत इस्तेमाल करने का परिणाम जरूर मिलेगा. इसके बाद ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु भी क्रोधित हो गए जिससे तेज ऊर्जा प्रकट हुई. इस ऊर्जा में एक देवी उत्पन्न हुईं. भगवान शिव ने देवी को अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र और स्वर्ग नरेश इंद्र ने घंटा दे दिया.
इसके बाद देवी मां को देवताओं से अस्त्र और शस्त्र मिल गए. फिर माता ने त्रिदेव से अनुमति लेकर असुर से युद्ध के लिए ललकारा. शास्त्रों के मुताबिक कालांतर में मां चंद्रघंटा और महिषासुर के मध्य भीषण युद्ध हुआ था. इसके बाद महिषासुर का वध देवी ने कर दिया.
महिषासुर का वध करने के बाद तीनों लोकों में देवी के जयकारे लगने लगे. तभी से मां चंद्रघंटा की पूजा-उपासना की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां चंद्रघंटा की जो पूजा करता है उसके दूख-कष्ट खत्म हो जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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