शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे, लेकिन बहुत कम लोग ही इनके बारे में जानते हैं. भगवान शिव के इन अवतारों का रहस्य क्या है और 19 में से 10 अवतारों के बारे में हम आपको बता रहे हैं. तो चलिए शुरुआत करते हैं 1. वीरभद्र अवतार से. पुराणों के अनुसार भगवान शिव का वीरभद्र अवतार दक्ष के यज्ञ में माता सती द्वारा अपनी देह का त्याग करने पर हुआ था. जब भगवान शिव को यह बात पता चली तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के ऊपर पटक दिया. इस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए. शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया.
भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार को जब पता चला कि शनिग्रह की दृष्टि के कारण उनके पिता जन्म से पूर्व ही उन्हें छोड़कर चले गए तो उन्होंने क्रोध में आकर शनि को नक्षत्र मंडल से दिरने का श्राप दे दिया. बाद में उन्होंने शनि को क्षमा किया. पिप्पलाद अवतार का स्मरण कर लेने भर से ही शनि की पीड़ा दूर हो जाती है. भगवान शिव सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका नंदी अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों में प्रेम का संदेश देता है. नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है.
भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है. ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप का दोष लगा तब काशी में भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली. इसलिए काशी के लोग भैरव की भक्ति अवश्य करते हैं. तो वहीं अश्वत्थामा की बात करें तो महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भगवान शंकर के अंश अवतार थे क्योंकि शिव जी को पुत्र के रूप में पाने के लिए द्रोणाचार्य ने घोर तपस्या की थी. ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं.
भगवान शंकर का छठा अवतार है शरभावतार जिन्होंने भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार के क्रोध को शांत किया था. लिंग पुराण के अनुसार, हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था. लेकिन हिरण्यकश्यप के वध के बाज भी नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो भगवान शिव शरभ के रूप में नृसिंह के पास पहुंचे और उन्हें शांत करने की कोशिश की. लेकिन नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ. तब शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े, तब भगवान नृसिंह का क्रोघ शांत हुआ. भगवान शंकर का सातवां अवतार गृहपति है. विश्वानर नाम के मुनि और उनकी पत्नी शुचिष्मती की इच्छा थी कि उन्हें शिव के समान पुत्र हो. इसके लिए उन्होंने घोर तप किया. उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्म लिया जिसका नाम ब्रह्मा जी ने गृहपति रखा.
भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख माना जाता है. दुर्वासा ऋषि बहुत ही क्रोधी थे. उन्होंने देवराज इंद्र को श्राप दिया, जिसके कारण समुद्र मंथन करना पड़ा. इसके अलावा भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण की मृत्यु का कारण भी दुर्वासा ऋषि ही थे. वृषभ अवतार लेकर भगवान शंकर ने विष्णु जी के पुत्रों का संहार किया था. धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां कई पुत्र उत्पन्न किए, जिन्होंने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव मचाया. इससे घबराकर ब्रह्माजी शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे. तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया.
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है. इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था. जब भगवान विष्णु ने श्रीराम का अवतार लिया तो अपने प्रभु की सेवा और सहायता के लिए ही भगवान शिव ने माता अंजनी के गर्भ से महाबलशाली हनुमान जी का अवतार लिया था.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)
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