28 अक्टूबर को पड़ेगा प्रदोष व्रत, जानें कामना के अनुसार कब और कैसे शुरू करें
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28 अक्टूबर को पड़ेगा प्रदोष व्रत, जानें कामना के अनुसार कब और कैसे शुरू करें

भगवान शिव और पार्वती की साधना से जुड़ा प्रदोष व्रत जिस दिन पड़ता है, उस दिन संबंधी ग्रह की शुभता भी दिलाता है.

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत अक्टूबर माह की 28 तारीख को पड़ने जा रहा है. यह पावन व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पड़ता है. यह व्रत जिस दिन पड़ता है, उस दिन के देवता एवं ग्रह का आशीर्वाद भी प्रदान करता है. जैसे इस बार बुधवार के दिन पड़ने वाला बुध प्रदोष व्रत साधक को बुध ग्रह की शुभता भी प्रदान करने वाला होगा.

  1. शिव की कृपा पाने के लिए सबसे पहले चंद्रदेव ने रखा था प्रदोष व्रत
  2. सूर्यास्त और रात्रि के संधिकाल को प्रदोष कहा जाता है
  3. मनोकामना के अनुसार शुभ दिन से ही शुरू करें प्रदोष व्रत

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चंद्रदेव ने रखा था पहला प्रदोष व्रत
मान्यता है कि प्रदोष व्रत को सबसे पहले चंद्रदेव ने किया था, जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रमा का क्षय रोग खत्म हो गया था. त्रयोदशी के दिन किया जाने वाला प्रदोष व्रत सौ गायों के दान के बराबर पुण्य प्रदान करता है. वैसे तो प्रदोष-व्रत को किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है लेकिन कामना विशेष के लिए इसे दिन विशेष को ही प्रांरभ करना चाहिए.

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कामना के अनुसार शुरू करें प्रदोष व्रत
प्रदोष व्रत को अलग-अलग कामना के लिए किया जाता है. आप भी जानिए भक्तों की अलग-अलग इच्छाएं.

सुख-सौभाग्य के लिए 
यदि आपको सुख-सौभाग्य और संपत्ति आदि की कामना है तो जिस त्रयोदशी को शुक्रवार पड़े, उस दिन से प्रदोष व्रत रखना प्रारंभ करें.

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लंबी उम्र पाने के लिए 
यदि आप लंबी आयु की कामना रखते हैं तो आपको जिस त्रयोदशी के दिन रविवार पड़े, उस दिन से यह व्रत प्रारंभ करना चाहिए.

संतान सुख के लिए
पुत्र प्राप्ति या संतान सुख के लिए प्रदोष का पावन व्रत शुक्लपक्ष की जिस त्रयोदशी को शनिवार पड़े, उस दिन से व्रत शुरू करना चाहिए.

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कर्ज से मुक्ति के लिए
यदि तमाम प्रयासों के बावजूद आपके सिर से कर्ज का बोझ नहीं दूर हो रहा है तो आप जिस त्रयोदशी को सोमवार पड़े, उस दिन से इस पावन व्रत को प्रारंभ करें.

प्रदोष व्रत की पूजा विधि
प्रदोष व्रत वाले दिन प्रदोष काल में स्नान-ध्यान करके भगवान शिव की बिल्ब पत्र, कमल या फिर दूसरे किसी पुष्प से जो उपलब्ध हो, धतूरे के फल, आदि से पूजा करनी चाहिए. शिव संग माता पार्वती की पूजा करना बिल्कुल न भूलें.

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पूजन के बाद रुद्राक्ष की माला से 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का कम से कम एक माला जप करें. पूजन के पश्चात भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके सभी को प्रसाद बांटें और किसी ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, दक्षिणा आदि दान दें.

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