Ram Ji Mantra: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान करते रहें इन चमत्कारी मंत्रों का जाप, प्रसन्न हो जाएंगे प्रभु राम
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Ram Ji Mantra: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान करते रहें इन चमत्कारी मंत्रों का जाप, प्रसन्न हो जाएंगे प्रभु राम

Ram Ji Magical Mantra: भगवान श्री राम को प्रसन्न करने के लिए आज 22 जनवरी प्राण प्रतिष्ठा के समय विधिपूर्वक राम जी की पूजा करें और साथ ही इन चमत्कारी मंत्रों का जाप करें. इससे जल्द ही प्रभु राम आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे. 

 

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Prana Pratisha Mantra Jaap: आज 22 जनवरी को अभिजीत मुहूर्त में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है. अयोध्या में प्रभु श्री राम के आगमन को लेकर लोगों में उत्साह देखने लायक है. 500 साल बाद भारतवासियों का ये सपना सच होने जा रहा है. ये बहुत ही ऐतिहासिक दिन है. बता दें कि आज दिन में प्राण प्रतिष्ठा होगी और शाम के समय श्री राम ज्योति जलाई जलाई जाएगी. 

अगर आप भी प्रभु श्री राम की कृपा प्राप्त कर सकते हैं. जी हां, आज के दिन घर पर प्रभु राम की विधि-विधान से पूजा करने के बाद मंत्रों का जाप करने से भगवान राम की कृपा पाई जा सकती है. बता दें कि पूजा के बाद भगवान श्री राम की आरती पढ़ें. 

भगवान श्री राम के मंत्र 

सर्वार्थसिद्धि श्री राम ध्यान मंत्र -

ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,

लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम !

श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः !

समस्या से मुक्ति के लिए -

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।

लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।

सुख-शांति के लिए मंत्र -

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।

गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।

बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

भगवान राम के सरल मंत्र

|| श्री राम जय राम जय जय राम ||

|| श्री रामचन्द्राय नमः ||

भगवान श्रीराम की आरती

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

 

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