Ravan Purva Janam Story: रावण-कुंभकरण क्या पूर्व जन्म में भी राक्षस ही थे, उनके वध के लिए श्री हरि को आखिर क्यों लेना पड़ा अवतार
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Ravan Purva Janam Story: रावण-कुंभकरण क्या पूर्व जन्म में भी राक्षस ही थे, उनके वध के लिए श्री हरि को आखिर क्यों लेना पड़ा अवतार

Shrimad Bhagwat Mahapuran: क्या लंकापति रावण और उसका भाई कुंभकरण हर जन्म में राक्षस ही थे. आखिर क्या वजह थी कि उनका संहार करने के लिए खुद भगवान विष्णु को मानव अवतार लेना पड़ा. आइए आज हम इस बारे में विस्तार से आपको बताते हैं. 

Ravan Purva Janam Story: रावण-कुंभकरण क्या पूर्व जन्म में भी राक्षस ही थे, उनके वध के लिए श्री हरि को आखिर क्यों लेना पड़ा अवतार

Ravan Kumbhakaran Purva Janam Story: यह बात तो सब जानते हैं कि धरती से राक्षसों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने श्री राम का अवतार लेकर रावण (Ravan), उनके भाई कुंभकरण (Kumbhakaran) और अन्य वंशजों का वध किया था. लेकिन क्या रावण और कुंभकरण पूर्व जन्म में भी राक्षस ही थे. अगर वे राक्षस नहीं थे तो फिर कौन थे. उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि उन्हें मुक्ति देने के लिए खुद भगवान विष्णु को भूलोक पर आना पड़ा. आइए जानते हैं रावण और कुंभकरण के पूर्व जन्म के इतिहास में. 
 
भारतीय पौराणिक शास्त्र ‘श्रीमद्भागवत महापुराण’में दोनों भाइयों के पूर्व जन्मों के बारे मे बताया गया है. इस पुराण के मुताबिक रावण भले ही लंका में राक्षसों का राजा और कुंभकरण उसका भाई था लेकिन पूर्व जन्म में वे दोनों ही राक्षस नहीं थे. असल में वे भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ लोक के द्वारपाल थे. उस समय उनका नाम जय (Jai) और विजय (Vijay) हुआ करता था. 

द्वारपालों के जवाब से मुनि हो गए कुपित

कहा जाता है कि एक बार सनतकुमार, सनातन, सनन्दन और सनक नाम के 4 मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने बैकुंठ लोक में पहुंचे. उन्होंने प्रभु के दर्शन करने के लिए धाम के अंदर जाने की कोशिश की तो दोनों द्वारपालों ने उन्हें रोक लिया. जय और विजय ने मुनियों से कहा कि अभी भगवान के विश्राम का समय है. इसलिए पहले उनसे अनुमति ले लें, उसके बाद आप उनके दर्शन कर लें. इस पर चारों मुनि कुपित हो गए.

राक्षस बनने का दे दिया श्राप

मुनियों ने कहा कि भगवान से तो कोई कभी भी मिल सकता है. उनसे मिलने के लिए भला किस तरह की अनुमति की जरूरत होगी. मुनियों के कहने के बावजूद जब दोनों द्वारपाल रास्ते से नहीं हटे तो कुपित मुनियों ने गुस्से में भरकर श्राप दिया कि तुम भले ही बैकुंठ लोक के द्वारपाल हो लेकिन तुम्हारा आचरण राक्षसों जैसा है. इससे अच्छा है कि तुम राक्षस ही बन जाओ. मुनियों के श्राप से दोनों द्वारपाल घबरा गए और अपनी करनी के लिए क्षमा मांगने लगे. 

द्वारपालों के क्षमा मांगने से पिघले मुनि

उनके लगातार क्षमा मांगने से मुनियों का हृदय पिघल गया और उन्होंने कहा कि हमारा श्राप खाली नहीं जा सकता. इसलिए अब तुम्हें 3 जन्मों तक राक्षस बनकर ही रहना होगा. इन तीनों जन्मों में तुम्हें तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु ही अपने हाथों से मुक्ति देंगे. उसके बाद ही तुम इस श्राप से मुक्त हो पाआओगे. इसके बाद मुनियों के श्राप से ग्रसित जय और विजय ने पहला जन्म हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के रूप में लिया. उस जन्म में भगवान विष्णु ने नरसिंह भगवान का अवतार धारण कर दोनों भाइयों को श्राप से मुक्ति दिलाई थी.

श्री हरि ने दिलाई श्राप से मुक्ति

इसके बाद उन्होंने दूसरा जन्म रावण (Ravan) और कुंभकरण (Kumbhakaran) के रूप में लिया. इस जन्म में उनको मोक्ष प्रदान करने के लिए श्री हरि ने भगवान श्री राम के रूप में धरती पर अवतार लेकर उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई. इसके बाद उनका तीसरा जन्म शिशुपाल और दंतवक्र के हुआ. वे भले ही साधारण मानव थे लेकिन उनकी करनी राक्षसों वाली थी. जिसके बाद भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काटकर तीसरे जन्म में भी मुनियों के श्राप से मुक्ति दिलाई. तीन जन्मों तक मुनियों का श्राप भुगतने के बाद वे भगवान श्री हरि के द्वारपाल के रूप में वापस बैकुंठ लोक पहुंच गए. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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