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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के ज्योतिषाचार्य पंडित देवस्य मिश्र की मानें तो माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ (Sakat Chauth Vrat 2021) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. इस साल सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी, 2021 दिन रविवार को रखा जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश (Lord Ganesha) की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. सकट चौथ के दिन चंद्रमा (Moon) को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता है. सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi), वक्रतुण्डी चतुर्थी, माही चौथ या तिलकुटा चौथ (Tilkuta Chauth) के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि संतान की लंबी उम्र की कामना (Long life of children) के लिए महिलाएं सकट चौथ का व्रत रखती हैं.
पंडित मिश्र की मानें तो 31 जनवरी रविवार को रात 8 बजकर 24 मिनट पर चतुर्थी तिथी प्रारंभ होगी जो अगले दिन 1 फरवरी सोमवार को शाम 6 बजकर 24 मिनट तक जारी रहेगी. सकट चौथ के दिन चंद्रमा के उगने का समय (Moon Rise Time) रात 8 बजकर 40 मिनट है. वैसे तो पूजा-पाठ सामान्य तरीके से ही किया जाता है लेकिन भगवान गणेश को खासतौर पर इस तिलकुट का भोग लगाया जाता है. अगर आप चाहती हैं कि सकट चौथ व्रत का संपूर्ण फल आपको प्राप्त हो तो आपको कौन सी कथा (Story) सुननी चाहिए और किस तरह से आरती (Aarti) करनी चाहिए इस बारे में हम आपको बता रहे हैं.
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किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां (एक खास तरह की भट्ठी जिसमें मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं) लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरंभ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई।
बुढ़िया का एक ही बेटा था जो उसके जीवन का सहारा था, पर राजा की आज्ञा ये सारी चीजें नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''
सकट के दिन बुढ़िया के बेटे को आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
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संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ के दिन व्रत कथा के बाद भगवान गणेश की आरती की जाती है जो इस प्रकार है:
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय गणेश...
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय गणेश…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥ जय गणेश...
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतवारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय गणेश…
सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥