Ganesh Kavach: हर बाधा से मुक्ति निश्चित, बुधवार को गणेश जी की पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ
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Ganesh Kavach: हर बाधा से मुक्ति निश्चित, बुधवार को गणेश जी की पूजा के समय करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ

Ganesh Kavach Path: बुधवार का दिन भगवान गणेश जी को समर्पित है. शुभ काम में सिद्धि प्राप्ति के लिए बुधवार के दिन व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से पुण्य-प्रताप से साधकर को सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है. साथ ही, बुध ग्रह को मबजूती मिलती है. 

 

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Wednesday Upay: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. बुधवार का दिन भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना का दिन है. इस दिन शुभ कामों में सिद्धि प्राप्ति के लिए व्रत रखने की सलाह दी जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से पुण्य-प्रताप की प्राप्ति होती है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है. बुधवार के दिन व्रत रखने से कुशाग्र और मधुरभाषी होते हैं.  साथ ही, कुछ ज्योतिष उपाय से कुंडली में बुध ग्रह से भी मजबूती मिलती है.  

अगर आप भी जीवन में सुख और संकटों से घिरें हैं और निजात पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करें. इसके साथ ही उन्हें मोदक, दूर्वा, बेसन के लड्डू, पीले रंग के फूल आदि चीजें अर्पित करें. गणेश जी की पूजा के बाद मंत्र जाप और गणेश कवच का पाठ करना विशेष रूप से लाभदायी प्रदान करता है.    

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गणेश कवचम्

ध्यायेत् सिंहगतं विनायकममुं दिग्बाहुमाद्ये युगे,

त्रेतायां तु मयूरवाहनममुं षड्बाहुकं सिद्धिदम्।

द्वापरे तु गजाननं युगभुजं रक्ताङ्गरागं विभुं,

तुर्ये तु द्विभुजं सितांगरुचिरं सर्वार्थदं सर्वदा ॥

विनायकः शिखां पातु परमात्मा परात्परः।

अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं महोत्कटः॥

ललाटं कश्यपः पातु भ्रूयुगं तु महोदरः।

नयने फालचन्द्रस्तु गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ॥

जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं गिरिजासुतः।

वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु दुर्मुखः ॥

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श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां चिन्तितार्थदः।

गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो गणञ्जयः॥

स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ विघ्नविनाशनः।

हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान् ॥

धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं विघ्नहरः शुभः।

लिंगं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो महाबलः ॥

गणक्रीडो जानुजंघे ऊरू मङ्गलमूर्तिमान्।

एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ सदाऽवतु॥

क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी आशाप्रपूरकः।

अंगुलींश्च नखान् पातु पद्महस्तोऽरिनाशनः॥

सर्वांगानि मयूरेशो विश्वव्यापी सदाऽवतु।

अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः सदाऽवतु॥

आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः पृष्ठतोऽवतु।

प्राच्यां रक्षतु बुद्धीशः आग्नेयां सिद्धिदायकः॥

दक्षिणस्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु गणेश्वरः ।

प्रतीच्यां विघ्नहर्ताव्याद्वायव्यां गजकर्णकः॥

कौबेर्यां निधिपः पायादीशान्यामीशनन्दनः ।

दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ सन्ध्यासु विघ्नहृत्॥

राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः ।

पाशाङ्कुशधरः पातु रजस्सत्वतमःस्मृतिम् ॥

ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां कीर्तिं तथा कुलम्।

वपुर्धनं च धान्यं च गृहदारान् सुतान् सखीन् ॥

सर्वायुधधरः पौत्रान् मयूरेशोऽवतात्सदा ।

कपिलोऽजाविकं पातु गजाश्वान् विकटोऽवतु॥

भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे धारयेत् सुधीः।

न भयं जायते तस्य यक्षरक्षपिशाचतः ॥

त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु वज्रसारतनुर्भवेत्।

यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन फलं लभेत् ॥

युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं चाप्नुयाद्द्रुतम् ।

मारणोच्चाटनाकर्षस्तंभमोहनकर्मणि ॥

सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम्।

तत्तत्फलमवाप्नोति साध्यको नात्रसंशयः ॥

एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः ।

कारागृहगतं सद्यो राज्ञावध्यश्च मोचयेत् ॥

राजदर्शनवेलायां पठेदेतत् त्रिवारतः।

स राजानं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां जयेत् ॥ 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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