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Ganesh Stotra Path: हिंदू धर्म शास्त्रों में गणेश पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. शास्त्रों में गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना गया है. कहते हैं कि किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य की शुरुआत अगर गणेश पूजन के साथ की जाए, तो व्यक्ति के सभी कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं और हर कार्य में सफलता मिलती है. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से गणेश चतुर्थी की शुरुआत होती है.
बता दें कि इस बार 7 सितंबर से गणेश महोत्सव की शुरुआत हो रही है. 10 दिवसीय महोत्सव का समापन 17 सितंबर को होगा. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये 10 दिन घर में बड़ी धूम-धाम के साथ बप्पा की स्थापना की जाती है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति डेढ़ दिन, तीन दिन और सात दिन तक गणपति की स्थापना करना चाहते हैं, तो अपनी श्रद्धा के अनुसार कर सकते हैं. लेकिन घर में बप्पा की स्थापना करने से पहले कुछ नियमों को जान लेना बेहद जरूरी है.
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इसलिए की जाती है बप्पा की स्थापना
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बप्पा को लेकर ऐसी मान्यता है कि घर में दुख और कष्टों से मुक्ति के लिए गणपति की स्थापना का विधान है. घर में बप्पा की स्थापना करने से सुख-समृद्धि का वास होता है. जीवन में व्यक्ति को कभी धन की कमी नहीं होती. इस 10 दिनों में बप्पा को प्रसन्न करने के लिए कई ज्योतिषीय उपायों का जिक्र किया गया है.
इसके साथ ही गणेश चतुर्थी से लेकर अनंनत चौदस तक गणेश स्त्रोत का पाठ किया जाए, तो व्यक्ति को बप्पा का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
अगर व्यक्ति कर्ज के बोझ में दबा हुआ है, तो उसे ये 10 दिन नियमित रूप से गणेश ऋणमुक्ति स्त्रोता का पाठ करना चाहिए. इससे जल्द ही कर्ज से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुखों की एंट्री होती है.
Ganpati Strotra (गणपति स्तोत्र)
ध्यान : ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्
मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:,
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे.
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:,
दारिद्रयं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)