देवभूमि हिमाचल (Himachal) में कई देवी-देवताओं का वास है और उन पर लोगों की अटूट आस्था का इतिहास भी काफी पुराना है. ऐसे ही एक देवता हैं जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के सबसे बड़े अराध्य देवता हैं राजा घेपन. जी आध्यात्म में आज हम 'राजा घेपन के मंदिर' का इतिहास और महत्ता जानेंगे.
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नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का जनजातीय जिला लाहौल स्पीति (Himachal's Lahaul and Spiti) अपने सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. लाहौल स्पीति में प्रकृति ने अपना समूचा सौंदर्य लुटाया है. इस इलाके के बर्फ से ढके पहाड़ बरबस ही आने वालों को आकर्षित कर लेते हैं. लेकिन लाहौल स्पीति की पहचान सिर्फ बर्फ और पहाड़ ही नहीं हैं.
लाहौल स्पीति एक और कारण से प्रसिद्ध है और वो है यहां के देवता 'राजा घेपन का मंदिर' (Raja Ghepan Ka Mandir). राजा घेपन का मंदिर इस घाटी में आस्था का एक बड़ा केंद्र है. दूर-दूर से श्रद्धालु देवता राजा घेपन के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं. तो आइए आपको बताते हैं इस एक हजार साल से भी ज्यादा पुराने 'राजा घेपन के मंदिर' (Raja Ghepan Temple) के बारे में.
पूरी होती हैं मुरादें
यहां आए श्रद्धालुओं का कहना है कि राजा घेपन से जो भी मन्नत मांगी जाए, वो जरूर पूरी होती है. राजा घेपन की महिमा कुछ ऐसी है कि दूर-दूर से लोग उनके दर्शन करने के लिए लाहौल स्पीति पहुंचते हैं. यहां तक कि राजा घेपन के दरबार में किसी भी जाति या धर्म का कोई भेद नहीं होता. देवता राजा घेपन के इस मंदिर में हर धर्म के लोग सिर झुकाते हैं. ये लाहौल का सबसे बड़ा मंदिर है.
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मंदिर का इतिहास
इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि एक समय में राक्षसों का बहुत आतंक था. राक्षस स्थानीय लोगों को बहुत ज्यादा परेशान किया करते थे. तब राजा घेपन ने घाटी में राक्षसों का नाश किया था. इसलिए यहां उनकी बहुत अधिक मान्यता है. श्रद्धालु बताते हैं कि यहां एक समय में राक्षस बहुत तांडव करते थे. राजा घेपन की स्थापना के बाद यहां शांति आ गई.
राजा घेपन का एकमात्र मंदिर
लाहौल के सीसू गांव में स्थित राजा घेपन का मंदिर, उनका एकमात्र मंदिर है. देवता राजा घेपन लाहौल स्पीति के सबसे बड़े देवता हैं. वे हर तीन साल बाद एक भव्य रथ यात्रा करते हैं और घाटी में रहने वाले अपने सभी श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं. रथ यात्रा की ये परंपरा सदियों पुरानी है जो कि दो महीनों से ज्यादा समय तक चलती है. इस साल भी इस रथयात्रा का आयोजन हो रहा है.
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मान्यता है कि इस रथयात्रा के दौरान राजा घेपन लाहौल के वासियों के लिए एक सुरक्षा घेरा बना देते हैं. इस घेरे से श्रद्धालुओं को राजा घेपन की अगली यात्रा तक के लिए सुरक्षा मिलती है. राजा घेपन अपनी इस यात्रा के दौरान कई पड़ावों से गुजरते हैं. हालांकि इस साल कोरोना (Coronavirus) के चलते आशंका जताई जा रही है कि देवता राजा घेपन की रथयात्रा हर बार जितनी लंबी चल सकेगी या नहीं.
देवता राजा घेपन को प्रसाद में ताजा मक्खन चढ़ाया जाता है. साथ ही इलाके के पालतू पशुओं के ताजे दूध का भी उन्हें भोग लगता है.
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देवता राजा घेपन के दर्शनों के लिए लाहौल स्पीति कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग से - निकटतम हवाई अड्डा भुंतर एयरपोर्ट है जो कि स्पीति से लगभग 245 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां उतरने के बाद सार्वजनिक परिवहन के माध्यम जैसे टैक्सी या बस से शेष बची दूरी को कवर कर सकते हैं.
रेल मार्ग से - नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिंदर रेलवे 339 किमी की दूरी पर स्थित है. अगला निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ में है. रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी के द्वारा शेष बची दूरी को कवर कर सकते हैं.
बस मार्ग से - लाहौल स्पीति सड़क मार्ग से दिल्ली, शिमला, मनाली जैसे कई बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है.
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