ब्लैक होल की तस्वीर 8 टेलीस्कोप की मदद से ली गई. 8 टेलीस्कोप को दुनिया के आठ अलग-अलग जगहों पर लगाया गया था.
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नई दिल्ली: 10 अप्रैल 2019 को विज्ञान की दुनिया में हमेशा याद रखा जाएगा. पहली बार दुनिया के सामने ब्लैक होल की तस्वीर आई है जो अब तक केवल एक कॉन्सेप्ट था. एक कहावत है 'जो हम देखते हैं, उस पर विश्वास करते हैं'. खासकर, विज्ञान की दुनिया में कुछ ऐसा ही है. ब्लैक होल की पहली तस्वीर को विज्ञान के क्षेत्र में इतनी बड़ी सफलता क्यों माना जाता है, इसका सबसे बड़ा कारण है कि इसकी तस्वीर लेना नामुमकिन था. किसी भी चीज की तस्वीर तभी ली जा सकती है, जब वहां से लाइट रिफ्लेक्ट होती है. लेकिन, ब्लैक होल अंतरिक्ष का वह स्थान है जहां गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ज्यादा होता है. यहां से लाइट भी नहीं गुजरती है, मतलब यह लाइट को सोख लेता है. इसलिए, इसकी तस्वीर लेना नामुमकिन था.
जैसा कि बताया गया है कि ब्लैक होल की तस्वीर लेना नामुमकिन था, ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे यह तस्वीर ली गई. ब्लैक होल की तस्वीर 8 टेलीस्कोप की मदद से ली गई. 8 टेलीस्कोप को दुनिया के आठ अलग-अलग जगहों पर लगाया गया था. दो टेलीस्कोप को मेक्सिको और हवाई के वोल्कानो, एरीजोना के पहाड़ों, नेवाडा के स्पैनिश सीरा, चिली के अटकामा डेजर्ट और अंटार्कटिका पर लगाया गया था.
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यह ब्लैक होल M87 गैलेक्सी का हिस्सा है. करीब 200 वैज्ञानिकों की टीम ने 10 दिनों तक टेलीस्कोप के नेटवर्क से M87 गैलेक्सी का स्कैन किया. इससे जो सूचनाएं सामने आ रही थीं, उसे दुनिया के अलग-अलग सेंटर पर स्टोर किया जा रहा था.
वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लैक होल का आकार इतना बड़ा है कि उसे देख पाना नामुमकिन जैसा था. उसके आकार के बारे में इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूर्य के आकार भी उसके सामने बहुत छोटा है. दूसरी बड़ी समस्या यह भी थी कि ब्लैक होल जिस सराउंडिंग में घिरी है वहां बहुत ज्यादा लाइट है, जिसकी वजह से उसे देख पाना और ज्यादा मुश्किल हो रहा था.
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बता दें, ब्लैक होल करीब 500 मिलियन ट्रिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसका भारत सूर्य के भार से 6.5 बिलियन (अरब) गुना ज्यादा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सबसे बड़ा ब्लैक होल होगा. आकार की बात करें तो यह पृथ्वी के आकार का 30 लाख गुना ज्यादा बड़ा होगा.