Chandrayaan 3 Mission Propulsion Module: आपको याद होगा कि किस तरह इसरो ने चांद की सतह से विक्रम लैंडर को उठाकर किस तरह तय जगह से दूसरी जगह स्थापित कर दिया था. अब प्रोपल्शन मॉड्यूल को धरती की कक्षा में स्थापित कर बड़ी कामयाबी हासिल की है. अब भारत ना सिर्फ चांद की सतह पर किसी चीज को उतार सकता है बल्कि उसे वापस भी ला सकता है.
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Chandrayaan 3 Mission Latest News: 23 अक्टूबर 2023 को इसरो ने इतिहास रच दिया था. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर को मक्खन की तरह उतारा था. इसरो की यह कामयाबी इसलिए खास थी कि क्योंकि पहली बार चांद के दक्षिणी ध्रुव पर किसी देश का मिशन कामयाब हुआ. विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने अपने मिशन को सफलता के साथ अंजाम भी दिया. इन सबके बीच नवंबर के महीने में जब प्रज्ञान को उठाकर उसकी अपनी जगह से करीब 40 सेंटीमीटर दूर जब दूसरी जगह स्थापित किया गया तो उम्मीद जग गई कि हम सिर्फ चांद पर उतर ही नहीं सकते बल्कि वापस धरती पर भी आ सकते हैं जिसे हॉप एक्सपेरिमेंट कहा जाता है. अब इसरो ने प्रोपल्शन मॉड्यूल को धरती की कक्षा में स्थापित कर एक और कामयाबी हासिल की है.
धरती की कक्षा में प्रोपल्शन मॉड्यूल
प्रोपल्शन मॉड्यूल को चांद की कक्षा से धरती की कक्षा में इस तरह लाया गया है कि वो किसी सैटेलाइट से ना टकराए. बता दें कि इसरो ने पहले इसकी कोई योजना नहीं बनाई थी. इसरो ने पीएम को धरती की कक्षा में वापसी के लिए अक्टूबर के महीने से कोशिश शुरू कर दी थी. ट्रांस अर्थ इंजेक्शन प्रयास में पहले पीएम ने चांद के चार चक्कर लगाए और फिर धरती की कक्षा के लिए रवाना हो गया. पीएम पर SHAPE पेलोड योजना के अनुसार काम कर रहा है. इसरो की फ्लाइंग एयरोडॉयनमिक्स टीम ने इस ऑपरेशन के लिए एक बेहतरीन विश्लेषण उपकरण विकसित किया है. इसके जरिए स्पेस को एक्सप्लोर करने में मदद मिलेगी.
14 जुलाई को चंद्रयान 3 मिशन का हुआ था आगाज
देश के पहले सफल चंद्र लैंडिंग मिशन, चंद्रयान -3 का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के पास एक नरम लैंडिंग का प्रदर्शन करना और लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान पर लगे उपकरणों का उपयोग करके प्रयोग करना था. अंतरिक्ष यान था 14 जुलाई, 2023 को SDSC, SHAR से LVM3-M4 वाहन पर लॉन्च किया गया था, 23 अगस्त को, विक्रम लैंडर ने चंद्रमा पर अपनी ऐतिहासिक लैंडिंग की और उसके बाद अज्ञात चंद्र दक्षिणी ध्रुव का सर्वेक्षण करने के लिए प्रज्ञान रोवर को तैनात किया गया था. इसरो की यह कामयाबी इसलिए भी खास थी क्योंकि स्पेस जगत में कामयाबी का झंडा गाड़े रूस को नाकामी मिली थी. यही नहीं इसरो ने कम बजट में इस मिशन को कामयाब बना यह साबित कर दिया कि कम संसाधन में भी बेहतर नतीजे लाए जा सकते हैं.