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नई दिल्ली: मंगल ग्रह (Mars) पर जीवन के प्रमाण की खोज के तहत एक विचित्र तरह का लंबा सफेद बादल देखने को मिला है. पिछले कई वर्षों से ये बादल मंगल के आसमान में अक्सर देखने को मिल रहे हैं. लेकिन अब जाकर इस बादल का रहस्य खुला है. इस रहस्य को सुलझाने में भारत के मंगलयान की भी अहम भूमिका है.
इस बादल की उत्पत्ति सौर मंडल के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पहाड़ के आसपास ही होती है. ये लंबा सफेद बादल बेहद रहस्यमयी था. वैज्ञानिकों ने इसे पहले भी कई बार देखा था. आइए जानते हैं इस बादल से जुड़े सभी रहस्य के बारे में.
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गौरतलब है कि मंगल ग्रह पर सौर मंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है. इसका नाम ओलिंपिस मॉन्स (Olympus Mons) है. कहते हैं कि यह ज्वालामुखी सौर मंडल का सबसे ऊंचा पहाड़ है. यह मंगल ग्रह के दक्षिणी हिस्से में स्थित है. इसके ऊपर से हर साल एक सफेद बादल की लंबी सी पूंछ मंगल ग्रह पर देखने को मिलती है.
आपको जानकार हैरानी होगी कि ओलिंपिस मॉन्स (Olympus Mons) के ऊपर बनने वाला यह सफेद बादल हर दिन करीब 80 बार बनता और बिगड़ता है. जैसे- पिछली बार इसकी पूंछ की लंबाई 1800 किलोमीटर थी और इसकी चौड़ाई 150 किलोमीटर थी. इस बादल को अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) कहते हैं.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर (Mars Express Orbiter - MEO) ने अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) की तस्वीर ली है. MEO में विजुअल मॉनिटरिंग कैमरा (VMC) ने इसकी तस्वीरें और वीडियो बनाया है.
यूरोपियन स्पेस एजेंसी और नासा के वैज्ञानिकों ने इस सफेद बादल स्टडी की तो पता चला कि यह बादल सूरज के उगने से पहले बना था. यह करीब ढाई घंटे तक मंगल ग्रह की सतह पर दिखाई देता रहा. ये खूबसूरत स दिखने वाला बादल 600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से अपने सिरे से पूंछ की तरफ बह रहा था. इसके बाद यह अपनी उत्पत्ति वाली जगह से अलग हो गया और धूप खिलने तक गायब हो गया.
लाल ग्रह पर बने अर्सिया मॉन्स एलॉन्गेटेड क्लाउड (Arsia Mons Elongated Cloud) को ओरोग्राफिक (Orographic) बादल भी कहते हैं. ये सतह पर दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर बहता है. धरती पर भी कई बार ऐसे बादल बनते हैं लेकिन इनकी लंबाई-चौड़ाई इतनी ज्यादा नहीं होती. न ही मंगल ग्रह पर बने इस सफेद बादल की तरह धरती के बादल डायनेमिक होते हैं.
इस बादल की स्टडी के लिए पांच सैटेलाइट्स का उपयोग किया है उसमें भारत का मंगलयान (Mars Orbiter Mission) भी शामिल हैं. बाकी चार मिशन हैं- नासा का MAVEN, MRO, Viking-2 और मार्स एक्सप्रेस ऑर्बिटर. मंगलयान से प्राप्त तस्वीरें भी इस बादल और इसकी उत्पत्ति के जगह की तस्वीरें ले चुका है. जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने इसरो से मांगा था.
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