हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेंगे महासागर! दुनिया को तबाही से बचाने का गजब प्लान
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हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेंगे महासागर! दुनिया को तबाही से बचाने का गजब प्लान

जलवायु संकट से दुनिया तबाह होने का खतरा है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने दुनिया को तबाही से बचाने के लिए अनोखी योजना बनाई है. वे वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को महासागरों की तलहटी में फंसाना चाहते हैं.

हवा में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेंगे महासागर! दुनिया को तबाही से बचाने का गजब प्लान

वैज्ञानिकों को लगता है कि जलवायु संकट का हल महासागरों की तलहटी में मिल सकता है. तलहटी में जमा बेसाल्ट चट्टानों में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को फंसाने की क्षमता है. ये हमारे वायुमंडल से ऊष्मा को फंसाने वाली गैस को हटाने में काम आ सकते हैं. वैज्ञानिकों की एक टीम चुनिंदा लोकेशंस पर तैरते हुए ऑफशोर रिग बनाना चाहती है. अभी ऐसे रिग्स के जरिए समुद्र के नीचे से तेल निकाला जाता है, लेकिन ये उसमें CO2 इंजेक्ट करेंगे.

समुद्र में उतराते हुए ये स्टेशन खुद की विंड टर्बाइनों से चल सकते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, ये आकाश से (यहां तककि समुद्री पानी से भी) कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेंगे और इसे समुद्र तल के छेदों में पंप कर देंगे. वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट को 'सॉलिड कार्बन' कह रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि वे जो CO2 इंजेक्ट करेंगे, वह हमेशा के लिए समुद्र की तलहटी में चट्टान के रूप में जमा रहेगी.

कार्बन के वापस लौटने की टेंशन नहीं!

प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक मार्टिन शेर्वाथ ने बिजनेस इनसाइडर से बातचीत में कहा कि 'इससे कार्बन स्टोरेज बहुत टिकाऊ और सुरक्षित हो जाता है.' स्टोरेज के अन्य तरीकों के उलट, हमें कार्बन के वायुमंडल में वापस लौटने और उससे ग्लोबल तापमान में इजाफे के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होगी. वैज्ञानिकों को प्रोटोटाइप टेस्ट करने के लिए लगभग 60 मिलियन डॉलर चाहिए.

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वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बेसाल्ट चट्टानें, स्थायी रूप से पृथ्वी के सभी जीवाश्म ईंधनों से निकलने वाले कार्बन से ज्यादा कार्बन जमा कर सकती हैं. इसका मतलब यह नहीं कि जीवाश्म ईंधन को अंधाधुंध जलाना सुरक्षित है. वैज्ञानिकों की जैसी योजना है, जरूरी नहीं कि वह तकनीकी, राजनीतिक और आर्थिक रूप से संभव हो. इस योजना को आगे बढ़ाना धीमा और बेहद खर्चीला होगा.

चुनौतियों के बावजूद, वैज्ञानिकों को लगता है कि कुछ रिग्स से ही काफी अंतर पड़ सकता है. शेर्वाथ के मुताबिक, दुनिया लगभग 20 साल में जितना कार्बन उत्सर्जित करती है, उतना तो कनाडा के पश्चिमी तट पर स्थित वैंकूवर द्वीप के पास कैस्केडिया बेसिन में ही जमा किया जा सकता है.

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इस योजना के पीछे का विज्ञान क्या है?

वैज्ञानिकों की यह योजना एक रासायनिक प्रतिक्रिया पर आधारित है, जो पहले से ही प्राकृतिक रूप से होती है. बेसाल्ट चट्टान बेहद प्रतिक्रियाशील, धातुओं से भरी हुई होती है जो आसानी से CO2 को पकड़ लेती है. यह रासायनिक रूप से CO2 के साथ मिलकर कार्बोनेट खनिज बनाती है. बेसाल्ट टूट भी जाता है और उसमें छेद हो जाते हैं जिससे नए कार्बोनेट्स के लिए भरने के लिए पर्याप्त जगह बन जाती है.

आइसलैंड में, CarbFix नाम के प्रोजेक्ट ने इस प्रक्रिया का एक छोटा वर्जन साबित भी किया है. इसमें CO2 को पानी में घोला जाता है (जिसे स्पार्कलिंग वाटर कहते हैं) और इसे भूमिगत बेसाल्ट में इंजेक्ट किया जाता है. दो साल के भीतर CO2 गैस खनिज के रूप में बदल जाती है और गहराई में चट्टान बन जाती है.

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