टिक-टिक, टिक-टिक...चांद पर कितने बजे हैं, अब चलेगा पता; मून खुद कहेगा- अपना टाइम आएगा
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टिक-टिक, टिक-टिक...चांद पर कितने बजे हैं, अब चलेगा पता; मून खुद कहेगा- अपना टाइम आएगा

How to Measure Moon Time: लोकल टाइम हासिल करने के लिए, देशों को UTC से कुछ घंटों को घटाना या जोड़ना पड़ता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे 0 डिग्री देशांतर मध्याह्न रेखा से कितने समय क्षेत्र दूर हैं, जिसे ग्रीनविच मध्याह्न रेखा भी कहा जाता है. 

टिक-टिक, टिक-टिक...चांद पर कितने बजे हैं, अब चलेगा पता; मून खुद कहेगा- अपना टाइम आएगा

Moon Time Standard: इंटरनेशनल एस्टोनॉमिकल यूनियन ने पिछले ही हफ्ते चांद के लिए मानक समय तय करने का प्रस्ताव दिया था. दरअसल इसी साल अप्रैल में अमेरिका के वाइट हाउस ने आधिकारिक तौर पर नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी NASA को चांद के लिए टाइम स्टैंडर्ड बनाने को कहा था. चलिए समझते हैं कि आखिर चांद के लिए मानक समय यानी स्टैंडर्ड टाइम बनाने की जरूरत क्यों आ पड़ी और ये कैसे बनाया जा सकता है.

मगर पहले समझिए कि धरती का स्टैंडर्ड टाइम कैसे काम करता है. दुनिया का समय कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) के जरिए चलता है, जिसे पेरिस का इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेजर तय करता है. वर्ल्ड टाइम के लिए पूरी दुनिया यूटीसी पर हामी भरती है. 

लोकल टाइम हासिल करने के लिए, देशों को UTC से कुछ घंटों को घटाना या जोड़ना पड़ता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे 0 डिग्री देशांतर मध्याह्न रेखा से कितने समय क्षेत्र दूर हैं, जिसे ग्रीनविच मध्याह्न रेखा भी कहा जाता है. अगर कोई देश ग्रीनविच मध्याह्न रेखा के पश्चिम में स्थित है, तो उसे UTC से घटाना होगा, और अगर कोई देश मध्याह्न रेखा के पूर्व में स्थित है, तो उसे जोड़ना होगा.

चांद का समय तय करने की क्यों आई जरूरत?

हालांकि यूटीसी का इस्तेमाल चांद का समय तय करने के लिए नहीं हो सकता. वह इसलिए क्योंकि चांद पर वक्त धरती से अलग होता है. 

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में एस्ट्रोफिजिक्स की प्रोसेफर कैथरीन हेमन्स ने कहा, 'ब्रह्मांड में प्रकृति का एक मूलभूत पहलू यह है कि समय पक्का नहीं है. यह हमें धरती पर रहने वाले लोगों के लिए पागलपन जैसा लगता है क्योंकि समय के बारे में हमारा अनुभव यह है कि यह लगातार चलता रहता है. लेकिन अगर आप चंद्रमा पर जाते हैं, तो आपकी घड़ी धरती पर रहने की तुलना में थोड़ी तेज़ चलती है. यह आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी के सिद्धांत का नतीजा है जो हमें बताता है कि ग्रैविटी स्पेस और समय को मोड़ता है. चूंकि चंद्रमा पर ग्रैविटी कम है, इसलिए धरती पर समय की तुलना में वहां समय थोड़ा तेज़ चलता है'.

दूसरे शब्दों में कहें तो OSTP मेमो के मुताबिक, चंद्रमा पर किसी शख्स के लिए, अर्थ-बेस्ड क्लॉक 'एडिश्नल पीरियॉडिक वेरिएशन' के साथ, प्रति धरती दिवस औसतन 58.7 माइक्रोसेकंड खोती हुई महसूस होगी.

ये वक्त बेहद कम लग सकता है लेकिन यह उस स्थितियों में दिक्कतें पैदा कर सकता है, जैसे जब स्पेसक्राफ्ट चांद पर लैंड करेगा, किसी खास वक्त पर डेटा, कम्युनिकेशन और नेविगेशन ट्रांसफर करेगा.

कैसे चांद पर समय तय किया जाएगा?

चांद के लिए टाइम स्टैंडर्ड तय करना फिलहाल साफ नहीं है. हालांकि एक ओएसटीपी अधिकारी ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि धरती की तरह चांद की सतह पर भी एटॉमिक घड़ियां लगाई जा सकती हैं ताकि टाइम स्टैंडर्ड पता किया जा सके 

साल 2023 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि चांद की सतह पर कम से कम तीन एटॉमिक घड़ियां लगाने की जरूरत है जो चांद की प्राकृतिक गति से चलेंगी और जिसके आउटपुट को एक एल्गोरिदम के जरिए संयोजित करके अधिक सटीक वर्चुअल घड़ी तैयार की जाएगी.

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